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Showing posts from June, 2015

कमबख्त रास्ते का अजनबी.

पचास_ _साठ_ _ और फिर। मद्धम शाम की सुनसान सड़कों पर उसकी गाड़ी सत्तर किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भाग रही थीं और उसकी आँखें लगातार तेजी से किड़े-मकोड़े की टक्कर झेलती हुई आगे देखने की कोशिश में थी।                           दूसरी ओर,किनारे को पार करता हुआ मेढ़क सड़क के लगभग बीचोबीच पहुंचा ही था कि उसकी नज़र मेढ़क पर जा टिकी।उसे लगा कि वह बगल से निकाल लेगा और तभी मेढ़क गाड़ी के चक्के के ठीक सामने आ गया। गाड़ी और मेढ़क के बीच फासला लगभग साढ़े पाँच फुट की।और गाड़ी तेजी से आगे बढ़ती हुई।फासला घटता हुआ और कमबख्त मेढ़क बीच सड़क पर स्थिर बैठा। और फिर वह सिधा मोटर साइकिल के अगले ब्रेक को लेता हुआ पिछले ब्रेक पर खड़ा हो गया। ...........................मोटर साइकिल की लाईट अब भी जल रही थीं।मोटर साइकिल में फसे पैर को निकालते हुए व माथे की चोट को मलते हुए,मोटर साइकिल की हल्की रोशनी में उसने देखा कि मेढ़क अब भी वहीं बैठा हुआ उसकी ही ओर देख रहा है।