Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2018

काज़ा के कुत्ते.

भाग : 12 और अब छह दिनों के बाद भटकता हुआ दिन के लगभग 11 बजे काज़ा पहुंचा। काज़ा पहुंचने के दौरान अनायास ही मैं सोचता रहा था कि काज़ा के बाद क्या करूँगा। पर अगले ही पल उतने ही आसानी से मैं इस बात को पीछे भी कर देता और सोचता आगे देखेंगे। यात्रा करते हुए मैं इन अनायास प्रश्नों से भी मुक्त होने के प्रयास में रहता हूँ जो जाने अनजाने हमारी सुरक्षा को लेकर मन मे चलती रहती है। अब इतना समझ गया था कि प्रकृति सबका ख्याल रखती है इसलिए कुछेक बातों को उनके भरोसे छोड़ देना चाहिए। शाम तक कहीं न कहीं ठिकाना मिल ही जाएगा। चोंगा से जिस बस में बैठा था, उसी बस में पीछे रिकोंगपिओ से भी आया था। सो इस दौरान ड्राइवर व कंडक्टर से अच्छी दोस्ती हो गयी थी। उन्हीं लोगों ने बताया कि काज़ा में अक्षय कुमार शूटिंग के लिए आये हुए है और इस वजह से वहां बहुत भीड़ है और सारे होम स्टे व होटल भी बुक होंगे। मैं आगे कुछ सोच ही रहा था कि उन्होंने कहा या तो आप मूड चले जाओ या समनम। वहां आप मोनेस्ट्री में रह लेना या सस्ता होम स्टे मिल जाएगा आपको। आईडिया अच्छा लगा, और पता चला वह बस ही काज़ा से चार बजे कुंगरी गांव की ओर जाएंगी। मै

जब हिमालय मेरे लिए, मॉडलिंग कर रहा था.

भाग : 11 यूँ तो हिमालय की खूबसूरती रिकोंगपिओ से ही नजर हटने नहीं देती पर जैसे जैसे हम काजा की तरफ बढ़ते है हिमालय का आकर, कई सुंदर रूपों में बदलता जाता है। खासकर नाको के बाद, पहाड़ एक जैसा नहीं रहता। कभी आप घाटी में होते है तो कभी पहाड़ों की ऊंचाई पे। कभी पहाड़ बर्फों से ढ़का होता है तो कभी अपने शुष्क रूप में। ताबा के बाद तो मौषम का रुख और सुहावना हो जाता है। नीला आसमान, स्लेटी कलर का पहाड़ और नीचे नदी के बगल से होकर गुजरते हम। सबकुछ मिलकर एक ऐसा सिने मैटिक दृश्य बनता है जिसे आप कैमरे में कैद कर लेने को उतावला हो उठते है। कई दफ़े मन होता है कि बस से उतर जाए और नदी किनारे जाकर बैठ जाए। या सबकुछ शूट कर ले। Photo #ACP खासकर जब मैं चांगो से काज़ा की ओर निकला तो दृश्य बेहद सुंदर व आकर्षक थे। ऐसा लग रहा था जैसे सारी प्रकृति उकसा रही हो कि आप उन्हें अपनी आंखों में कैद कर लो। शुरुआती द्वंद के बाद मैं इस बात को लेकर क्लियर हो गया कि मैं यहाँ ज्यादा फ़ोटो वोटो लूंगा। जो सहजता से क्लिक हो जाएगा, वही काफी है। और शायद इसी वजह से काज़ा पहुंचने तक मैंने कहीं भी कैमरे का यूज़ नहीं किया। जो भी क्

Himalyan Girl

भाग : 10 Photo #ACP हिमालय में कई गाँव ऐसे है, जहां की जनसंख्या या तो पचास है या उससे भी कम। किसी गाँव में बामुश्किल दस लोग है परंतु सभी गाँवों में बिजली और सड़क पहुँचाई गयी है। चाहे वो कितनी भी ऊंचाई पर हो या नीचे। #ACP_in_Hiamalaya

चलिए आपको कुछ नया खिलाते है.

भाग : 9 सुबह ब्रेकफास्ट करने ही वाला था, कि बस आ गयी। रोकोंगपिओ से जो बस खुलती है वह सिद्धों तक जाती है, पर चूंकि सिद्धों आर्मी एरिया है इसलिए वहाँ रह नहीं सकते। मैंने सिद्धों से पहले वाली गाँव, चांगो में रात बिताई थी। परंतु बस सिद्धों तक जाती है और ड्राइवर और कंडक्टर रात को वहीं आर्मी कैम्प में रहते है, बदले में आर्मी का सामान यहाँ से वहाँ वे पहुंचा दिया करते है। सुबह में बस सिद्धों से वापस चांगो आती है और फिर आगे का सफर सिद्धों होकर ही शुरू होती है। रोकोंगपिओ से जब यात्रा शुरू हुई थी, तब से ही बातचीत के कारण ड्राइवर और कंडक्टर से अच्छी जान पहचान हो गयी थी, इसलिए शाम को उन्होंने जब चांगो में उतारा, तब उन्होंने बेहद आस्वस्ति में कहा कि कल सुबह आपको नहीं छोड़ेंगे, आप जागकर तैयार रहना। दरअसल दिन भर में काज़ा के लिए बस दो बसें थी, एक सुबह और दूसरी दोपहर। दोपहर वाली से जाता तो देर शाम को काज़ा पहुंचता जो मैं चाहता नहीं था। और इधर सुबह वाली बस 7 बजे ही थी, इसलिए मैं थोड़ा बहुत भयभीत था कि कहीं मैं सुबह में सोया ही न रह जाऊं। इसलिए मैंने ड्राइवर और कंडक्टर दोनों से साफ तौर पर कह दिया

चांगो में सेब का सुंदर बागान.

भाग : 8 रोकोंगपिओ से निकलने के बाद बस बहुत कम देर के लिए पूह में रुकी। पहाड़ों के मध्य में बसा छोटा सा पूह दूर से बेहद खूबसूरत दिखता है। जब पूह में रुका था, पाया कि यहां से एकसाथ पहाड़ियों की चोटी की सुंदरता भी दिखती है और बगल के खाई में नीचे सतलज नदी की गहराई भी। बहुत ही छोटी और सुंदर जगह है पूह, जो किसी सपनों की नगरी सी लगती है। न बड़े-बड़े घर और न ही बड़ी बड़ी आकांक्षा। पूह तकरीबन दोपहर में पहुंचा था, और कुछ खा-पीकर आगे बढ़ आया। इस दरमियां एक वृद्ध महिला के बगल में जा बैठा। बात करने पर पता चला उनका घर नोवा से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर है और वह एक छोटी सी गाँव मे रहती है जहाँ बेहद सुंदर सेब का बागान है। उन्होंने मुझसे पूछा, मैं इधर कहाँ घूम रहा हूँ। एकपल को मैं जवाब के लिए तैयार नहीं था। मैंने कह दिया, बस यूं ही देश को देख समझ रहा हूँ। मेरे जवाब में वह मुस्कुराई और बोली, मैं बनारस गयी हूँ और हरिद्वार भी। फिर उन्होंने मेरे घर परिवार के बारे में पूछा। बात करने पर वह मेरी नानी जैसी लग रही थी, इसलिए उनसे बात करना किसी पुरानी किताब को पढ़ने जैसे लग रहा था। Photo  #ACP नोवा से कुछ प

"global citizen"

भाग : 7 यह किन्नौर डिस्ट्रिक्ट का कोई चेक पोस्ट था। चाइना बॉर्डर के करीब होने के कारण यह पूरा एरिया सेंसिटिव माना जाता रहा है। बस तब रिकोंगपिओ से आते हुए इधर से ही गुजर रही थी। और फिर बस ड्राइवर ने अचानक बस को किनारे लगाया और बोलता हुआ नीचे उतर गया कि बाहरी लोग परमिट चेक करवा लें। बाहरी से उसका मतलब विदेशी लोगों से था। कुछ देर के बाद मैं बस के गेट के पास आया ही था कि एक आर्मी वर्दी वाले आये और उन्होंने मुझसे आईडी दिखाने को कहा। मैंने जवाब में तुरंत कहा "sir, I am a n Indian" Photo : #ACP उन्होंने मुझे देखा। शायद मेरे बड़े बालों को ज्यादा। फिर बोले "you are an Indian?" मैं समझ गया था। मैंने अपना आधार कार्ड उनके सामने कर दिया और बोला, "I am a global citizen." वे कुछ बोले बगैर मुस्कुरा कर बस के अंदर घुस गए और मैं बाहर चला आया। # ACP_in_Himalaya https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1129040490581847&set=a.1125884770897419.1073741850.100004277203552&type=3&theater

आर्मी एरिया में कैसे पहुंचा जाए.

भाग : 6 जिन जगहों पे अब मैं रातभर के लिए या कुछके घंटे के लिए भी रुक रहा था, वे सभी ही खूबसूरत थी। ऐसे में वहाँ ठहर जाने या कुछेक घंटे और अधिक रुकने का मन होना स्वाभाविक ही था। परंतु इससे ज्यादा मेरा मन लगातार चलते रहने में रम रहा था। सबसे ज्यादा मजा बस में आता जब बस पहाड़ों से होकर गुजरती। लगातार सफर में होने के बावजूद भी मुझे बस में नींद नहीं आती और मैं आश्चर्य भरी आँखों से खिड़की के बाहर झाँकता रहता। एकसाथ सबकुछ आश्चर्य से भरा था, पहाड़ की ऊंची-ऊंची  चोटी, नीचे खाई और कहीं बीच से गुजरती बस। मैं सोचता आदमी ने पहाड़ को काटा कैसे होगा, और ये सड़कें कैसी बनी होगी। ड्राइवर की कॉन्फिडेंस पर आश्चर्य होता, वह इतनी तेजी में खाई के बगल से बस निकाल लेता कि मैं डर सा जाता। रिकोंगपिओ से आगे रास्ता चुनने के लिए एक बार फिर मैं बस स्टॉप पर बैठा सोच रहा था कि आगे किधर निकला जाए। मैं सांगला जा सकता हूँ, यह भी एक टूरिस्ट स्पॉट है, मैं शिमला की ओर बढ़ सकता हूँ, फिर शिमला भी टूरिस्ट स्पॉट है और वहां भी भीड़ होगी ही। मैं टूरिस्ट स्पॉट पर जाना नहीं चाहता, एक तो ऐसी जगहें बहुत महंगी होती है, दूसरी यह क्र

आपदा ने उनका सबकुछ छिन्न लिया.

भाग : 5 सुबह आठ बजे के आसपास मेरी नींद खुली। मैंने अलसाए मन से ही मोबाइल में टाइम देखा। अभी आठ ही बज रहे थे, यानी और सोया जा सकता था। अभी तक मैं केवल तीन घंटे ही सो पाया था। रात को बस में भी ठीक से नहीं सोया था। सोचा, थोड़ी देर और सो लेता हूँ फिर अचानक से उठ बैठा और फ्रेश होने चला गया। कितनी भी नींद लगी हो, नहाने से सब गायब हो जाती है। और मैं जान गया था कि किसी भी शहर को देखने के लिए सुबह सुंदरतम समय होता है। इसलिए किसी भी हालत में मैं सोए नहीं रहना चाहता था। रिकोंगपिओ, जिसे आजतक न मैंने मैप पे देखा था और न ही इसका नाम, कहीं सुना था। भटकते हुए आज मैं यहाँ पहुंच गया था। फ्रेश होकर जब बाहर निकला और पोस्ट ऑफिस के सामने वाली गली होते हुए आगे बढ़ा, तो सबसे पहला आकर्षण रिकोंगपिओ की गलियां थी। ऊंचाई से नीचे जाने के लिए बनी छोटी-छोटी सीढ़ियों का स्लोप, जो न तो स्लोप है और न ही पूरी तरह सीढियां। चलते हुए बेहद मजेदार महसूस होती है। थोड़ी नीचे उतर कर देखा, आर्मी का एक बड़ा कैम्प है और पीछे बर्फों से ढँका पहाड़ सूरज की रोशनी में चमक रहा है। सबकुछ मिलकर एक सुंदर सिनेमैटिक दृश्य बना रहा था। मैं

आसपास सोने की कोई जगह नहीं थी

भाग : 4 तकरीबन ढाई बजे रात में बस रामपुर पहुंची। मेरी नींद लग गयी थी और जब कंडक्टर ने मुझे जगाया तो मैं जग कर बस से बाहर निकला। बस थोड़ी देर के लिए ही रुकी थी। और उस समय तक कुछेक आदमी ही बस में बच गए थे। कंडक्टर ने मुझसे आस्वस्ति के लहजे में पूछा "आपको रामपुर ही उतरना है न?" पिछले तकरीबन पंद्रह घंटे से यही कण्डक्टर बस में ड्यूटी कर रहा था जबकि इस दैरान दो ड्राइवर चेंज हो गए थे। मैंने कहा "हां, उतरना तो यहीं है। पर आप कहाँ तक जाओगे?" मेरे सवाल को उसने अपनी सवाल से काटा "आपको जाना कहाँ है?" "पता नहीं!" मैंने उतनी ही आस्वस्ति से कह दिया। रात के ढाई बज रहे थे, रामपुर छोटा सा ही एरिया था। फिर कुछ पता चल नहीं रहा था कि इस समय कहाँ जाऊं। थोड़ी देर बाद ही ड्राइवर आ गया और उसने बस स्टार्ट कर दिया। कंडक्टर ने एक नजर मेरी ओर देखा "मैंने कहा, जहां सुबह हो जाएगी वहीं उतर जाऊंगा!" वह कुछ बोले बगैर बैठ गया। और इस तरह फिर चलती बस से बाहर मैं द3खने लगा। कुछ देर में ही फिर से मेरी आंख लगने लगी। मैंने एक नजर अपनी बैग की ओर देखा, वह अब भी वैसी ही पड़ी थ

जवाब में वे केवल मुस्कुराएं

भाग : 3 जब बस सुंदरनगर तक पहुंची, तब तक मन मे बड़ी खलबली थी कि कहां आ गए, कहीं फिर मैदानों की ओर ही तो नहीं बढ़ रहे। मनाली से बस जब निकली थी और जब तक सड़क के साथ-साथ व्यास नदी का साथ था सफर दिलचस्प लग रहा था। परंतु जैसे ही मंडी होकर बस आगे सुंदरनगर की ओर बढ़ी, गर्मी और बढ़ गयी।और दूसरी ओर बस एकदम खचाखच भड़ी हुई भी थी। शाम के तकरीबन पांच बजे से बस फिर पहाड़ों की ऊंचाई पर चढ़ने लगी और तब तक भीड़ भी कम हो गयी थी। धीरे-धीरे जब बस लगभग पहाड़ की चोटी पर दौड़ रही थी, तब उत्साहित मैं कभी खिड़की के इस तरफ से पहाड़ों व खाई को देखता तो कभी उस तरफ से। होता ये की कभी खिड़की के एक साइड पहाड़ सटा होता और दूसरी साइड खाई होती फिर कुछ देर बाद जब बस मुड़ती तो परले साइड वाली खिड़की से खाई दिखती और मेरे साइड वाले से पहाड़ सटा होता। और चूंकि बस में भीड़ नहीं थी, इसलिए एक तरफ से दूसरे तरफ आना-जाना और पहाड़ों का देखना सहज था। देर शाम को बस Jhunginala में टी ब्रेक के लिए एक दुकान पर रुकी। बाद में जब मैं पे करने के लिए गया, तो दुकानदार ने पैसे लेने से यह कहते हुए मना कर दिया कि यह उनके तरफ से आगन्तुक को मुफ्त में था। तकरी

अननोन डेस्टिनेशन की ओर

भाग : 2 तकरीबन पांच-सात मिनट बाद मेरी बारी आयी, और जैसे ही मैं काउंटर पे पहुंचा, मैंने पूछा "भईया, स्पिटी के लिए बस मिलेगी?" उसने जल्दी में बोला "अभी पास खुला नहीं है।" "तो, कब खुलेगी?" "जब खुलेगी अखबार में बड़ा बड़ा लिखा आ जाएगा।" इससे आगे न तो मेरे पास कोई प्रश्न था और न ही मैं कुछ पूछना चाहता था। कल से लेकर आज तक में मैंने ओल्ड मनाली से लेकर न्यू मनाली में कितने लोगों से पास के बाबत पूछा था। सब अलग अलग जवाब देते। कोई कहता रोहतांग खुल गया है, जबकि कुंजुम पास अभी भी क्लोज है। तो कोई कहता दोनों ही बंद है। दूसरी ओर टैक्सी वाले कह रहे थे कि वे तीन हज़ार रुपए में स्पिटी छोड़ देंगे। अब जब पास ही नहीं खुला तो वे कैसे स्पिटी छोड़ देंगे, पता नहीं। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था, मैं वहीं मनाली बस स्टॉप पे बैठकर डिस्प्ले देखने लग गया। पहले बस का डिस्प्ले टाइमिंग देखता और फिर मोबाइल में मैप। इस तरह मैं समझ पाया कि स्पिटी जाने का दूसरा रूट भी है, पर वह बहुत लंबा है। मसलन अगर रोहतांग से होकर जाते है तो छह से सात घंटे (मनाली की ट्रैफिक छोड़कर) और अगर घूम कर

मनाल्सु से इश्क़ और तीसरे फ्लोर का मेरा कमरा

भाग : 1 उन्होंने मुझे तीसरे फ्लोर का कमरा दिखाया और उत्साहित होकर बोले, यहाँ से पूरा पहाड़ दिखता है। मैं बाहर खड़ा पहाड़ों की ओर देखता रहा। अच्छा लग रहा था, पर मैं जानता था कि होटल का लोकेशन सही है इसलिए चार्ज भी ज्यादा होगा।परंतु फिर भी मैंने एक कोशिश की और उनकी ओर मुड़ते हुए बोला "देखिए, मैं स्टूडेंट हूँ और निश्चित ही जितना आप बताएंगे उतना मैं पे नहीं कर पाऊँगा । मैं बस हज़ार तक दे सकता हूँ।" मुझे लगता है कि स्टूडेंट्स होने पर कहीं भी डिस्काउंट पाया जा सकता है। जब आप कहते है स्टूडेंट है तो सामने वाला थोड़ा उदार हो जाता है। उन्होंने मेरी ओर देखा और पूछा "कितने दिन रहेंगे?" मैंने कहा "पता नहीं! पर आज और कल तो हूँ ही।" थोड़ी देर मेरी ओर देखने के बाद उन्होंने सहमती में सर हिला दिया। ड्रैगन गेस्ट हाउस के बाहर कॉफी शॉप पे बैठकर मैंने ऑनलाइन घंटो माथा मारा था पर प्राइस और जगह के हिसाब से कोई भी होटल या होम स्टे जंचा नहीं फिर कॉफी वाले के पास ही बैग छोड़कर होटल या होम स्टे ढूंढ़ने निकल गया था। अब तक देखे सभी होटलों में यह शानदार था। सुबह लगातार बस के घुमावदार टर्न

नाईट शिफ्ट

शुरू शुरू में हिमाक्षी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था कि मैं उसके साथ हॉस्पिटल आऊं। हाँ, मेरे जिद्द को वह टाल नहीं पाती थी। और मैं उसके साथ आ जाता। रात में बहुत कम ही पेसेंट आते। बस एकाध, पूरी रात भर में। फिर भी ऐसा नहीं होता कि वह सो जाए। और इस मामले में वह ज्यादा ही चौकस रहती। उसकी एक आदत थी, कि जब भी उसकी आंख लगने लगती, अपने बॉडी के एक हिस्से में वह जोर से चुटी काटती। ऐसा करने पर उसे लगता था कि उसकी नींद भाग जाएगी। हाँ, जब मैं साथ आने लगा तब शायद कुछ चीज़ें आसान हो गयी। मैं दुनिया भर की बातें करता रहता, और वह एकटक सुनती रहती। कभी कभी मैं इस बात पर आपत्ति भी करता कि आखिर वह क्यों कुछ नहीं बोलती। बस हाँ.... हूँ। इससे आगे भी तो कुछ होगा। पर मैं उसके साथ रहते हुए समझ गया था कि उसका कम बोलना अपने जीवन के प्रति कितना बड़ा विद्रोह है। जिस उम्र में मैं दुनिया भर की फिल्में देख रहा था, मौज मस्ती कर रहा था, उस उम्र में लड़की होने की जिम्मेदारी पूरी करने में वह लगी थी। रात दिन मेडिकल के टर्म्स में माथा फोड़ती। और एक लंबे संघर्ष के बाद उसे जो मिला है उसे वह खोना नहीं चाहती। और आज कमो-बेस वह एन्जॉ