भाग : 9
सुबह ब्रेकफास्ट करने ही वाला था, कि बस आ गयी। रोकोंगपिओ से जो बस खुलती है वह सिद्धों तक जाती है, पर चूंकि सिद्धों आर्मी एरिया है इसलिए वहाँ रह नहीं सकते। मैंने सिद्धों से पहले वाली गाँव, चांगो में रात बिताई थी। परंतु बस सिद्धों तक जाती है और ड्राइवर और कंडक्टर रात को वहीं आर्मी कैम्प में रहते है, बदले में आर्मी का सामान यहाँ से वहाँ वे पहुंचा दिया करते है।
सुबह में बस सिद्धों से वापस चांगो आती है और फिर आगे का सफर सिद्धों होकर ही शुरू होती है।
रोकोंगपिओ से जब यात्रा शुरू हुई थी, तब से ही बातचीत के कारण ड्राइवर और कंडक्टर से अच्छी जान पहचान हो गयी थी, इसलिए शाम को उन्होंने जब चांगो में उतारा, तब उन्होंने बेहद आस्वस्ति में कहा कि कल सुबह आपको नहीं छोड़ेंगे, आप जागकर तैयार रहना। दरअसल दिन भर में काज़ा के लिए बस दो बसें थी, एक सुबह और दूसरी दोपहर। दोपहर वाली से जाता तो देर शाम को काज़ा पहुंचता जो मैं चाहता नहीं था। और इधर सुबह वाली बस 7 बजे ही थी, इसलिए मैं थोड़ा बहुत भयभीत था कि कहीं मैं सुबह में सोया ही न रह जाऊं। इसलिए मैंने ड्राइवर और कंडक्टर दोनों से साफ तौर पर कह दिया कि जाना आपके साथ ही है कल, इसलिए जगा न रहूं तो जगा दीजिएगा।
Photo #ACP |
रात को जिनके यहाँ रुका था, उनसे भी कह दिया कि सुबह में जगा देने को। दरअसल यात्रा में मैं खुद बहुत अवेयर रहता हूं। फिर भी आसपास को अपने विश्वास में लेना ज्यादा अच्छा होता है।
सुबह मैं खुद जग गया था। ठंड में और अधिक सोने का मन करता है। और फिर नहाने का भी मन नहीं होता। पर जब भी आलस फील हो रहा हो, नहाना सबसे उपयुक्त है।
नीचे आया तो रेस्टोरेंट वाले भईया (जिनके यहाँ रात को रुक था) जिद्द करने लगे कि ब्रेकफास्ट कर लूं। जब आप खुद की खोज में निकलते है तो आप ऐसे लोगों को भी ढूंढ़ पाते है जो आपके करीबी बन जाते है। परिवार का दायरा हमने बहुत सीमित करके रखा है, तो यात्रा में आप अपने परिवार की दायरा को भी बढ़ा पाते है। लोग मिलते जाते है और बहुत जल्दी वे पारिवारिक दायरे में आ जाते है।
वे कुछ बना ही रहे थे कि बस आ गयी। ड्राइवर और कंडक्टर बाहर निकल कर आये, उन्होंने साथ मे चाय पी। मैंने कहा, थोड़ी देर और रुकते है नास्ता कर लेता हूँ। ड्राइवर उठते हुए बोले "अरे भईया, चलिए! आपको आज कुछ नया खिलाते है।"
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