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Showing posts from September, 2017

"मोनालिसा जैसी तुम्हारी मुस्कान"

जब भी वह यूँ ही बैठी होती, अलग-अलग भाव में खुद का सेल्फ़ी लेती रहना उसका पसन्दीदा काम होता।अपनी फोटो खुद से ही खींचते रहना नायिका को बेहद पसन्द है। कभी-कभार वह अपनी फ़ोटो नायक को व्हाट्सएप कर देती है।और नायक अक्सर ही उसकी फ़ोटो पे कोई छोटी सी कविता दुहरा देता।एक मध्य रात्रि को नायिका ने अपनी तस्वीर नायक को भेजा।दोनों अपनी-अपनी छत पे चाँद को बादलों से आँख मिचौली करते हुए देख रहे थे।पहले तो नायिका इंतजार करती रही कि नायक फिर कोई सुंदर सा पंक्ति सुनायेगा।पर नायक को खामोश देख, उसने पूछ लिया "क्या हुआ?" नायक ने लिखा "तुम्हारी फ़ोटो निहार रहा हूँ"।नायिका का चेहरा खिला।उसने देखा चाँद के आसपास अभी बिल्कुल ही बादलों का ओट नहीं है।वह ऐसे चमक रहा है, जैसे अभी-अभी उसे अपनी चकोर की खबर हुई हो। नायिका ने लिखा "ऐसा भी क्या! रोज तो देखते हो"। उधर नायक ने महसूस किया, चाँद की दूधिया रोशनी में नायिका का दिया हुआ पश्मीना शॉल बेहद ही सुंदर लग रहा है। नायिका की आँखों में उसके सपनों का एक संसार बसता है।जिसे वह अलग-अलग किस्तों में पूरा करती है।उसका बड़ा सपना था कि डल झील ज

"बस पाँच मिनट और रुक जाओ न !"

समय से भी किसी को शिकायत हो सकती है क्या।भला इतना शांत, चुपचाप किसी भी हालात में अपने काम मे लगे रहने वाला, समय।पर अपने नायक को इनदिनों थोड़ी बहुत शिकायत है समय से। उसका मानना है कि जब भी नायिका उससे मिलने आती है, समय कुछ तेज चलने लगता है।वह नायक की परवाह ही नहीं करता।और न ही उसके प्रेम की परवाह करता है।नायक के अनुसार ऐसे किसी भी चीज़, व्यक्ति या वस्तु को समाज में रहने का कतई अधिकार नहीं है। अब नायक समय पे थोड़ा सा झल्लाता तो है पर समय का रुख वैसे ही बेपरवाह।तो नायक अंततः नायिका से ही कहता है "बस पांच मिनट और रुक जाओ न! फिर चली जाना" उस दिन नायिका उठ खड़ी हुई और जिद्द करने लगी कि आज न रुकूँगी।भला नायक का पांच मिनट कभी खत्म हुआ है।घण्टों की मुलाकात के बाद भी अंत मे जब नायिका जाने लगे तो पाँच मिनट चाहिए ही नायक को। तो नायिका जानती है इस बात को।शाम को मम्मी नवरात्रि की पूजा करेगी न, इसलिए उसका होना वहाँ जरूरी है।अब इस बात को कैसे समझाए वह नायक को।तो वह कहती है "जो बात है ऐसे ही बताओ न"।नायक कहता है "नहीं,पास आकर बैठो फिर बताऊंगा"। Photo - ACP

रेखाचित्र

बहुत ही कम दिनों तक साथ रही वह साथ के दिनों में जब भी वह मिलती घंटो कभी बातचीत में तो कभी खामोशी में कट जाती अक्सरहाँ मिलकर पता नहीं कौन सी आकृति कलम से वह मेरे शरीर के अलग-अलग भागों पे बनाया करती। कभी हाथों पे तो कभी बाहों पे कभी पैर के निचले हिस्से पे भी कुछ बना देती और मैं चुपचाप कभी उसके ठेहुने पर तो कभी उसकी गोद में सर टिकाये आंखें बंद किये रहता, आकृति बनाती हुई वह कुछ सुनाती भी रहती जैसे जो आकृति बना रही है उसके बारे में कुछ सुना रही हो मैं बहुत ध्यान से सुनता था और बाद में उस आकृति को ध्यान से घंटों देखा भी करता पर वह क्या बनाती है और क्या सुनाती है मुझे कुछ भी समझ नहीं आता बस इतना ही सोचता मैं कि जो वह बना रही है कहीं न कहीं वैसी जगह जरूर होगी और जब हम वहाँ जायेंगे तो मुझे सबकुछ समझ आ जायेगी उसकी वो तमाम बातें जो वह आकृति बनाते वक्त सुनाया करती है। अक्सर मैं एक दो दिन नहीं भी नहाता था ऐसा लगता था जब नहाऊंगा वे सुंदर आकृति मिट जायेगी थोड़ी धूंधली पड़ जाएगी और जब अगली बार मिलती वह तो मैं कहता सुनो न! ऐसे बना दो न कि, कभी मिटे ही नहीं और वह मुस्
"Love is so short, forgetting is so long"                         ~Pablo  

'सुनो न! कल आती हुई एक रजिस्टर लेती आना'

ट्रैफिक की भीड़ में ही नायक को याद आती कि उसका रजिस्टर भर गया है और उसे एक नया रजिस्टर लेना है।हर दफ़े वह तय करता कि कल विश्वविद्यालय मेट्रो से निकलते ही ले लेगा।और जब विश्वविद्यालय से निकल रहा होता तो मन मे ख्याल आता कि यहां शायद महंगा मिले, और अच्छा भी न हो।कभी मुखर्जी नगर चला जाऊँगा, जाता ही तो रहता हूँ। पर न कभी वह मुखर्जी नगर इधर जा पाया और न ही उसने रजिस्टर विश्वविद्यालय मेट्रो पे खरीदा।इस दरमियां कितनी रचना जो वह लिखता रजिस्टर के अभाव में शक्ल न ले सकी।उसे इस बात का खासा मलाल तो था पर फिर भी वह मानता था कि उन रचनाओं को लिखने की अभी उपयुक्त वक्त नहीं थी,शायद। बावजूद जब ट्रैफिक में उसे याद आती कि आज भी उसने रजिस्टर नहीं खरीदा है तो मन ही मन थोड़ा खिन्न महसूस होता उसे। उस शाम ITO की ट्रैफिक सामान्य दिनों से ज्यादा लंबी और उबाउं थी।बस की खिड़की से बाहर झाँकता वह रजिस्टर के बारे में ही सोच रहा था।तभी क्या न सुझा की उसने मोबाइल निकाला और व्हाट्स एप्प पे एक मैसेज लिखा- 'सुनो न! कल आती हुई एक रजिस्टर लेती आना'। उधर से जल्द ही रिप्लाई आ गयी 'मैं क्यों लेती आऊं?"
Photo - ACP बहुत सी मुलाकातों के बाद वह अंतिम मुलाकात थी जैसे जब इंतजार का सिलसिला शुरू हुआ। कभी तो तुम आने की  तमाम संभावनाओं में से किसी एक पे मुहर लगा जाओगे या यूं ही इंतजार में जिंदगी मुलाकातों की उन वक्तों को याद करते हुए ही बीत जायेगी।। #ACP   #ImagethroughmyEyes

प्रेम

चाँद अब भी कितना दूर दिखता है मुझे जबकि अभी अभी वह मेरे पास से उठकर गया है जब दूर होता है वह आसपास एक धूंधली छाया होती है उसके और जब पास होता है तब चाँदनी की रात हो जैसे बहुत बार उसके दूर चले जाने के बाद मैं सोचता हूँ आखिर रोक क्यों नहीं लिया मैंने उसे पर रोक लेना भी क्या सही होता? चले जाने पर जो उसकी खुशी है और फिर वापस आने का जो उसका उत्साह है उसी में तो हमारे प्रेम का प्रवाह है और प्रवाह को रोक लेना क्या नदी को नाला बनाना न हुआ! तो बहुत बार सोचने,मन होने के बावजूद मैं उसे नहीं रोकता मैं हर बार की जुदाई सहते हुए उसके आने के उमंग को जीना चाहता हूं मैं उस लम्हा को जीना चाहता हूँ जो उसके आने की खबर से मेरे अंदर कौंधती है मैं उसकी चेहरे के उस उत्साह को जीना चाहता हूं जो उत्साह वह हमारे रिश्ते में महसूस करती है हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता ही हमारे रिश्ते की खूबसूरती है इसलिए मैं उसे कभी नहीं रोकना चाहता यूँ ही उसके जाने के बाद की विरह को महसूस कर उसके आने के उत्साह को जीना चाहता हूँ।