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Showing posts from July, 2015

कुवांरा चिट्ठी

(बहरहाल अपने टेबल के सामने के एक अकेला कुर्सी पर बैठे वही हो रहा था जिसका अंदाज़ा उसको पहले से था,लेकिन निश्चय ही वह दिल से यह नहीं चाहता था-वह  उसी टाइप्ड लेटर का दूसरा कॉपी पढ़ रहा था जिसका पहला कॉपी उसके हाथों में रखा सर्द खा रहा होगा।एक बार फिर एक उष्ण कल्पना जो वह अपने चिठ्ठी के लिए चाह रहा था के साथ वह अपने कुंवारे चिठ्ठी को पढने लगा-जिसकी बारात शायद फिर कभी मुकाम नहीं पायेगी.....) प्रिय,   मुझे मेरे इस शब्द के लिए माफ कर  देना।सर्वप्रथम  मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मेरा मकसद इस पत्र के माध्यम से किसी भी प्रकार से तुम्हें परेशान करना नहीं  है।आजकल  हमारे आसपास लड़कियों को लेकर घट रही घटनाओं ने मुझे तुम्हें टोकने से बार  बार   रोका।मुझे  डर था कि कहीं मुझे गलत नहीं समझ लिया  जाए।और  फिर यह डर लड़कियों के सुरक्षा हेतु आवश्यक भी  हैं।परन्तु  मेरे अन्दर कुछ ऐसी भावनाएं थी जो मुझे तुम तक  पहुचानी  थी और उस भावना को तुम तक पहुंचने से ये डर रोक न सका ।परन्तु  मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूँ कि मेरा तुम्हें परेशान करने का कोई इरादा नहीं है और उम्मीद करता हूँ कि तु

यायावर

                                                           (भैया की एक कविता ) मंजिल की बात करते हो  मुझे तो रास्ते  भी न मिले है   तुम जिसे भटकना कह रहे हों   वस्तुतः वह मानसून का आमंत्रण हैं  अदृश्य ऊर्जा पर सवार- मेघ की यात्रा  अनंत के लिए   मै प्यासा बादल- सूखे की तृप्ति ही मेरी तृप्ति हैं  निस्संदेह मेरी मुक्ति भी.