(बहरहाल अपने टेबल के सामने के एक अकेला कुर्सी पर बैठे वही हो रहा था जिसका अंदाज़ा उसको पहले से था,लेकिन निश्चय ही वह दिल से यह नहीं चाहता था-वह उसी टाइप्ड लेटर का दूसरा कॉपी पढ़ रहा था जिसका पहला कॉपी उसके हाथों में रखा सर्द खा रहा होगा।एक बार फिर एक उष्ण कल्पना जो वह अपने चिठ्ठी के लिए चाह रहा था के साथ वह अपने कुंवारे चिठ्ठी को पढने लगा-जिसकी बारात शायद फिर कभी मुकाम नहीं पायेगी.....)
प्रिय,
मुझे मेरे इस शब्द के लिए माफ कर देना।सर्वप्रथम मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मेरा मकसद इस पत्र के माध्यम से किसी भी प्रकार से तुम्हें परेशान करना नहीं है।आजकल हमारे आसपास लड़कियों को लेकर घट रही घटनाओं ने मुझे तुम्हें टोकने से बार बार रोका।मुझे डर था कि कहीं मुझे गलत नहीं समझ लिया जाए।और फिर यह डर लड़कियों के सुरक्षा हेतु आवश्यक भी हैं।परन्तु मेरे अन्दर कुछ ऐसी भावनाएं थी जो मुझे तुम तक पहुचानी थी और उस भावना को तुम तक पहुंचने से ये डर रोक न सका।परन्तु मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूँ कि मेरा तुम्हें परेशान करने का कोई इरादा नहीं है और उम्मीद करता हूँ कि तुम इसे गलत अर्थो में ना लोगी।
नि:संदेह इस पत्र के प्रत्येक शब्द को तुम तब बेहतर तरीके से महसूस कर पाओगी जब तुम प्रेम के उन गहराई में उतर जाओगी जो गहराई हमारे दरमियान हैं।यकीनन मैं सोच नहीं पा रहा कि मैं क्या लिखूँ,ऐसा लगता है कि कई सारे प्रश्न हैं जो मन में उठते हैं परन्तु जुबान तक नहीं आ पाते।
चन्द हफ्ता पहले तक हमारे बीच कुछ नहीं था,मेरी दुनिया तुमसे बिल्कुल जूदा थी।परन्तु जब मैं उस दिन को याद करता हूँ जब तुमने अपने पास के कुत्ते से मेरा पिछा छुड़ाया था तो सबकुछ अजीब सा लगता हैं।ऐसा लगता है जैसे उस दिन के बाद एक हलचल ने दिल में जगह बना ली हो।
यकीनन मैं इसे समझ भी नहीं पाता कि यह क्या हो रहा है?मैं महसूस करता हूँ कि मुझे कोई डोर तुम्हारी ओर खिच रही हैं और मैं हर पल तुम्हारी ओर खिचा चला आ रहा हूँ।मेरी अजिब सी बेचैनी जो तुम्हे एक नजर देख लेने भर से शांत हो जाती है,ऐसा क्यों होता है?
पता नहीं! तुम्हारी असाधारण व्यक्तित्व मुझे तुमसे इस प्रकार बांधे रखती हैं कि मैं चाहकर भी इससे अलग नहीं हो पाता।शाम की डुबती किरणों के बीच जब मैं तुम्हें बच्चों को पढाते हुए देखता हूँ तो ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे अन्दर एक किरण सी जल गई हैं।सूर्य के प्रथम किरण से पहले ही तुम्हें देखने की जगी इच्छा सूर्य के अन्तिम किरणों के बाद भी कायम रहती हैं।
मैं नहीं जानता कि तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो और क्या फिल करती हो? मैं तो यह भी नहीं जानता कि तुम कौन हो और फिर मैं यह जानना भी नहीं चाहता क्योंकि मेरी नजरो में जो तुम्हारी पहचान है वो इन सारी बातों से अलग है।मुझे तो केवल यह लगता है कि तुम वह हो जिसके दिदार को मैं बेताब रहता हूँ और तुम्हें जाते हुए देख जब मैं दिल को आवाज लगाता हूँ तो तुम तुरंत पिछे मुड़ती हो।
यकीनन मेरी नजरों में तुम्हारी यही पहचान हैं और इससे ज्यादा तुम्हारी पहचान की मुझे आवश्यकता भी नहीं।हो सकता है कि यह मेरी फैन्टासी हो और तुम्हारे साथ ऐसा न होता हो।क्योंकि जरूरी तो नहीं कि तुम्हारे अन्दर भी वहीं फिलींग उठती हो जो मेरे अन्दर हैं परंतु कुछ तो है तुम्हारे अन्दर जो तुम्हारी आँखे बयाँ कर देती हैं।ऐसा भी हो सकता है कि मेरे शब्द ने तुम्हारी नैतिकता को चुनौती दी हो पर मेरा ऐसा कोई इरादा था नहीं।मैंने तो केवल वहीं कहा जो मेरे अन्दर चल रहा है और मेरी आँखों में बेचैनी बनकर उभर रहा है।
मैं यह नहीं कहता कि तुम भी मुझसे प्यार करो;यह फैसला तो तुम्हारा होगा परन्तु एक बार मेरी आँखों में जरूर झाक लेना।आश्वस्त हो लेना कि सचमुच मेरी आँखों में तुम्हारा प्यार झलकता हैं या नहीं।
मैं इन बातों को तुमसे बात करके प्रत्यक्ष तरीके से भी कह सकता था परन्तु इसके लिए ना तो तुम तैयार थी और ना ही मैं क्योंकि हमारे आसपास के लोग इतने समझदार न हुए हैं कि वे हमें गलत न समझते।
खैर,एक लड़की के तौर पर तुम्हारे लिए यह और मुश्किल भरा पल होता।मैं यह उम्मीद नहीं करता कि तुम्हारी ओर से कोई जवाब आये,अगर मैंने ऐसी उम्मीद की तो फिर मैं तुम पर एक बन्धन बन जाउगा जो गलत हैं।मैंने तो तुम्हारी आँखे देखी हैं जो कभी झूठ बोल ही नहीं सकती।तुमसे कहने को मेरे पास कभी शब्द की कमी न पड़ेगी परन्तु तेजी से भागती इस दुनिया में तुम्हारे लिए पत्र पढना कैसा अनुभूति होगा मैं तो नहीं जानता न।हो सकता है कि तुम बोर हो रही होगी या फिर तुम्हें अच्छा भी लग रहा होगा परन्तु मुझे लगता है कि सही और गलत से दूर जो दुनिया हैं,हमें वहाँ पहुँचना हैं और मैं हमेशा तुम्हारा इन्तजार वहीं करूँगा।
चन्द हफ्ता पहले तक हमारे बीच कुछ नहीं था,मेरी दुनिया तुमसे बिल्कुल जूदा थी।परन्तु जब मैं उस दिन को याद करता हूँ जब तुमने अपने पास के कुत्ते से मेरा पिछा छुड़ाया था तो सबकुछ अजीब सा लगता हैं।ऐसा लगता है जैसे उस दिन के बाद एक हलचल ने दिल में जगह बना ली हो।
यकीनन मैं इसे समझ भी नहीं पाता कि यह क्या हो रहा है?मैं महसूस करता हूँ कि मुझे कोई डोर तुम्हारी ओर खिच रही हैं और मैं हर पल तुम्हारी ओर खिचा चला आ रहा हूँ।मेरी अजिब सी बेचैनी जो तुम्हे एक नजर देख लेने भर से शांत हो जाती है,ऐसा क्यों होता है?
पता नहीं! तुम्हारी असाधारण व्यक्तित्व मुझे तुमसे इस प्रकार बांधे रखती हैं कि मैं चाहकर भी इससे अलग नहीं हो पाता।शाम की डुबती किरणों के बीच जब मैं तुम्हें बच्चों को पढाते हुए देखता हूँ तो ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे अन्दर एक किरण सी जल गई हैं।सूर्य के प्रथम किरण से पहले ही तुम्हें देखने की जगी इच्छा सूर्य के अन्तिम किरणों के बाद भी कायम रहती हैं।
मैं नहीं जानता कि तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो और क्या फिल करती हो? मैं तो यह भी नहीं जानता कि तुम कौन हो और फिर मैं यह जानना भी नहीं चाहता क्योंकि मेरी नजरो में जो तुम्हारी पहचान है वो इन सारी बातों से अलग है।मुझे तो केवल यह लगता है कि तुम वह हो जिसके दिदार को मैं बेताब रहता हूँ और तुम्हें जाते हुए देख जब मैं दिल को आवाज लगाता हूँ तो तुम तुरंत पिछे मुड़ती हो।
यकीनन मेरी नजरों में तुम्हारी यही पहचान हैं और इससे ज्यादा तुम्हारी पहचान की मुझे आवश्यकता भी नहीं।हो सकता है कि यह मेरी फैन्टासी हो और तुम्हारे साथ ऐसा न होता हो।क्योंकि जरूरी तो नहीं कि तुम्हारे अन्दर भी वहीं फिलींग उठती हो जो मेरे अन्दर हैं परंतु कुछ तो है तुम्हारे अन्दर जो तुम्हारी आँखे बयाँ कर देती हैं।ऐसा भी हो सकता है कि मेरे शब्द ने तुम्हारी नैतिकता को चुनौती दी हो पर मेरा ऐसा कोई इरादा था नहीं।मैंने तो केवल वहीं कहा जो मेरे अन्दर चल रहा है और मेरी आँखों में बेचैनी बनकर उभर रहा है।
मैं यह नहीं कहता कि तुम भी मुझसे प्यार करो;यह फैसला तो तुम्हारा होगा परन्तु एक बार मेरी आँखों में जरूर झाक लेना।आश्वस्त हो लेना कि सचमुच मेरी आँखों में तुम्हारा प्यार झलकता हैं या नहीं।
मैं इन बातों को तुमसे बात करके प्रत्यक्ष तरीके से भी कह सकता था परन्तु इसके लिए ना तो तुम तैयार थी और ना ही मैं क्योंकि हमारे आसपास के लोग इतने समझदार न हुए हैं कि वे हमें गलत न समझते।
खैर,एक लड़की के तौर पर तुम्हारे लिए यह और मुश्किल भरा पल होता।मैं यह उम्मीद नहीं करता कि तुम्हारी ओर से कोई जवाब आये,अगर मैंने ऐसी उम्मीद की तो फिर मैं तुम पर एक बन्धन बन जाउगा जो गलत हैं।मैंने तो तुम्हारी आँखे देखी हैं जो कभी झूठ बोल ही नहीं सकती।तुमसे कहने को मेरे पास कभी शब्द की कमी न पड़ेगी परन्तु तेजी से भागती इस दुनिया में तुम्हारे लिए पत्र पढना कैसा अनुभूति होगा मैं तो नहीं जानता न।हो सकता है कि तुम बोर हो रही होगी या फिर तुम्हें अच्छा भी लग रहा होगा परन्तु मुझे लगता है कि सही और गलत से दूर जो दुनिया हैं,हमें वहाँ पहुँचना हैं और मैं हमेशा तुम्हारा इन्तजार वहीं करूँगा।
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02-05-2014.
(.....बिना हस्ताक्षर की यह चिठ्ठी वह अमूमन पढ़ा करता है....कुंवारे चिठ्ठी कभी नरक नहीं जाते ऐसा वह जानता है।)
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