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Showing posts from August, 2017

तुम नहीं समझोगी

जब हर बार थक जाता है जिस्म नींद की आगोश में जब ऊब सा जाता है बदन सोये-सोये यूँ ही खोए से तब कुछ देर के लिए ही सही यह दूरी मिलों लंबी जान पड़ती है लगता है एक-एक पल एक अरसा सा है जिसमें मैं निरंतर जलता जा रहा हूँ।। नींद की यह अपनी खूबी है कि वहाँ कोई सीमा नहीं ना ही कोई बंधन है।। तुमने आज संदेशा भिजवाया है कि तुम शनिचर की संध्या पे मिलोगी पर मैं तुम्हें कैसे बताऊँ कि आज तो मंगलवार ही है।। क्या तुम कभी मंगलवार से शनिचर के बीच की दूरी को समझ पाओगी तुम गणित लगा पाओगी कि इन दिनों में कितने घंटे होते है और उन घंटो में कितनी मिनटे होती है और क्या ये भी महसूस कर पाओगी कि उन प्रत्येक मिनट के हर एक सेकंडों में मैं कैसे जलता हूँ? और क्या तुम मेरे शरीर के उस ताप को सहन कर पाओगी? जब तुम आओगी तब यह ताप मिश्रित सुख की ठंडक में बदल चुका होगा जिसकी छाव में बैठकर हम घंटों बातें करेंगे मैं भूल जाऊंगा कि तुम्हारे विरह में मैं कैसे जल रहा था मैं यह भी भूल जाऊंगा कि अब से कुछ ही देर बाद तुम चली जाओगी और फिर से वही आग मुझे झुलसायेगी

कभी तो तुम भी कुछ बोलोगी !

अक्सर मैं तुमसे कुछ सुनने के लिए बहुत ज्यादा बोल जाता हूँ मैं बोलता जाता हूँ कि, तुम भी बोलोगी और तुम सुनती जाती हो सिवाय अच्छा है, बढ़िया है कहने के। अक्सरहां जब भी मैंने तुम्हें मैसेज किया है यही उम्मीद किया है कि आज मैं जी भर के तुम्हें सुनूँगा पर उम्मीदों का स्तर भी तो हम तक ही सीमित होता है इसलिए कभी तुम मेरी इस उम्मीद को पूरी नहीं कर पाई फिर भी मैं आज भी आशांवित हूँ किसी दिन तुम जी भर कर बोलोगी और मैं तुम्हारा श्रोता होऊँगा सिवाय यह कहने के कि अच्छा है बढ़िया है।। कोई किसी को क्यों सुनना चाहता है मेरे लिए यह प्रश्न अब महत्वपूर्ण नहीं रह गया है बल्कि इसके कि कोई किसी के सामने खुलता क्यों नहीं वह अपने सुख-दुख क्यों नहीं बाँटना चाहता निश्चित ही मैं तुम्हारा कल का बना दोस्त नहीं हूँ और न ही वर्षों से तुम्हें जानने वाला कोई शख्स पर मैं तुम्हारा प्रेमी हूँ जो तुम्हारे बारे में ही जानना चाहता है उसके लिए देश दुनिया अब उतना ही पराया है जितना कि किसी विरही के लिए दूर का कोई गाँव और सबकुछ मैं तुम्हीं से जान लेना चाहता

बाली

किसी जन्म में मैं तुम्हारी कानों की बाली रहा होऊँगा फिर कभी कुछ यूं हुआ होगा कि तुम्हारी जुल्फ़े बाली में फस गई होगी और फिर तुम जुल्फों को छुड़ाने के लिए जितना खीचती हो मैं उतना ही दूखता हूँ।।

चुड़ैल

रात का कोई तीसरा पहर रहा होगा।मुझे याद है पिछले तीन-चार सालों में मैं कभी इस पहर में नहीं जागी थी और अगर संयोग से जग भी गयी थी तो उठ कर बाहर नहीं आ गयी थी। तो उस रात मैं जग कर टॉयलेट की ओर बढ़ गयी थी।देर रात को जब भी सोने जाती थी तो देखती थी कि टॉयलेट की लाइट जल रही है।वहां कोई स्विच नहीं होता था कि लाइट को बंद किया जा सके।इसलिए टॉयलेट की लाइट पूरी रात जलती ही रहती। तो उस दिन भी टॉयलेट की लाइट जल रही थी पर रात का तीसरा पहर था न ! टॉयलेट की लाइट टॉयलेट की चौखट न लाँघ पाई थी।मैं जैसे ही चौखट के ठीक पहले तक पहुंची थी मेरा पैर एक सिर से टकराया था और पैर कुछ बालों में उलझ गए थे।मैं सीधा कमरे की ओर भागी थी पर लगा था कि वह सर मेरे साथ तक कुछ दूर तक खिंचा आ गया था। मैं कमरे में आ तो गयी थी पर मुझे नींद न आयी।लगा जैसे वहां कोई चुड़ैल थी।अगले दिन मुझे पीजी छोड़ देना था और यह पिछले तीन साल पहले ही तय कर लिया गया था।मैं सुबह सुबह चुपचाप चली आयी थी पर उस रात को वहां नहीं छोड़ पायी।वह भी साथ आ गयी।

सोया हुआ आदमी

जब सोया हुआ आदमी नींद की आगोश से जगा दिया जाता है तो भी क्या वह सपनो से बाहर आ पाता है सोने से पहले और सोने के बाद कि दुनिया में सपनों का एक संसार बसता है क्या आदमी कभी उससे मुक्त हो पायेगा या तमाम उम्र उन सपनों की लकीरें उसका पीछा करती रहेगी आदमी आधा जिंदगी जाग कर और आधा जिंदगी सोकर बिता देता है पर क्या उन जागे हुए जिंदगी में भी वह जगा होता है? या जागते हुए भी वह अपने देखे सपनों की ही दुनिया मे होता है उसका देखा सपना ही उसका संसार है बाकि जो वो देख रहा है वह तो किसी और की ख्वाबों का बासिन्दा है।

'धत्त!, उसे बंडी नहीं,कोटि बोलते है'

'अच्छा सुनो न' 'हां जी, कहिये न' 'वो जो तुमने आज पहना था न, उसमें तुम काफी खूबसूरत लग रही थी' 'अच्छा, क्या पहनी थी?' 'वही,जो सलवार के ऊपर पहनी थी न!' 'अरे क्या?' 'बंडी' 'बंडी?' 'हाँ' 'धत्त!, उसे बंडी नहीं,कोटि बोलते है'

घर

घर केवल इसलिए तो नहीं होता कि लौटकर शाम को आया जा सके कई दफ़े मैं सुबह निकल कर घर से बहुत दूर चला जाता हूँ इतना दूर कि लौटने की इक्छा ही नहीं होती पर देर सबेर घर अपने पास बुला ही लेती है घर एक जरूरत है बहुत सारी संभाली हुई जरूरत के पास लौट आने की जरूरत।। #ACP

'ऐ मोना! कुछ बोलो न!'

और उस दिन फिर से मिलने को आतुर प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को कॉल किया "मोना,आज आओगी न मिलने" और उधर से प्रेमिका ने वही कहा जो वह दो दिन से कहती आ रही थी "आज भी न मिल पाऊँगी, घर पर बहुत काम है" "अच्छा!" प्रेमी ने बुझे मन से कहा।उसे आगे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या बोले।पर वह बोलना चाहता था,सुनना भी चाहता था क्योंकि वह जानता था एक बार कॉल कट जाने के बाद वही विरह की अग्नि। कुछ देर तक तो दोनों एकदूसरे की खामोशी ही सुनते रहे।फिर प्रेमिका ही बोली "दो दिन पहले ही तो मिली थी,फिर काम खत्म होते ही आऊंगी न!" "दो दिन पहले! पता है,मोना।दो दिन में कितने पहर होते है।और उन पहरों में कितनी लम्हा होती है...."। प्रेमिका कुछ न बोली।उसने केवल अपने बेचैन प्रेमी की धड़कने सुनी। "....और मोना! अगर उन एक-एक लम्हों में हज़ार-हज़ार बार भी मेरी धड़कने धड़कती है तो तुम अंदाजा लगा पाओगी कि कितना बेचैन होता हूँ मैं तुम्हारे बगैर" प्रेमिका ने इस बार भी कुछ नहीं कहा। 'ऐ मोना! कुछ बोलो न!' "क्या बोलूं?" "कुछ भी,जो भी

मोना_लिसा

मैं किसी दिन यूं ही तुम्हारी धड़कने बन जाना चाहता हूं और चाहता हूँ तुम्हारी सीने में धड़कता रहूँ तुम जितनी भी सांसे लो ऑक्सीजन के हर उस कतरा में मैं बस जाऊ मैं चाहता हूँ कि वह दृश्य बन जाऊं जिसे देखना तुम्हें सबसे ज्यादा पसंद हो मैं हर एक उस गीत का बोल बन जाना चाहता हूं जो तुम गुनगुनाती हो। मैं ठीक वैसा ही बन जाना चाहता हूं जैसा कि कोई ख़्वाब बसता है तुम्हारी सपनों में और फिर,एकदिन मैं वह हकीकत बन जाना चाहता हूं जो तुम्हारी जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा हो।। ©ACP