रात का कोई तीसरा पहर रहा होगा।मुझे याद है पिछले तीन-चार सालों में मैं कभी इस पहर में नहीं जागी थी और अगर संयोग से जग भी गयी थी तो उठ कर बाहर नहीं आ गयी थी।
तो उस रात मैं जग कर टॉयलेट की ओर बढ़ गयी थी।देर रात को जब भी सोने जाती थी तो देखती थी कि टॉयलेट की लाइट जल रही है।वहां कोई स्विच नहीं होता था कि लाइट को बंद किया जा सके।इसलिए टॉयलेट की लाइट पूरी रात जलती ही रहती।
तो उस दिन भी टॉयलेट की लाइट जल रही थी पर रात का तीसरा पहर था न ! टॉयलेट की लाइट टॉयलेट की चौखट न लाँघ पाई थी।मैं जैसे ही चौखट के ठीक पहले तक पहुंची थी मेरा पैर एक सिर से टकराया था और पैर कुछ बालों में उलझ गए थे।मैं सीधा कमरे की ओर भागी थी पर लगा था कि वह सर मेरे साथ तक कुछ दूर तक खिंचा आ गया था।
मैं कमरे में आ तो गयी थी पर मुझे नींद न आयी।लगा जैसे वहां कोई चुड़ैल थी।अगले दिन मुझे पीजी छोड़ देना था और यह पिछले तीन साल पहले ही तय कर लिया गया था।मैं सुबह सुबह चुपचाप चली आयी थी पर उस रात को वहां नहीं छोड़ पायी।वह भी साथ आ गयी।
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