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Showing posts from June, 2018

भूटान यात्रा (भाग-५)

भूटान में कुछ-कुछ दूरी पे "Election Advertisement Board" लगे है।जिसका इस्तेमाल चुनाव के समय पोलिटिकल पार्टी करती है।इधर-उधर पोस्टरबाजी करना कानूनन जुर्म है। फ़ोटो : ACP  भारत तो पोस्टरबाजी में अच्छा रैंक रखता है। # ACP _in_Bhutan 

अभी अभी तो मिले थे.

भाग : 17 मैंने पहाड़ों की ओर देखा, सारा आकाश जैसे पहाड़ों के कांधे पर बैठा था और पहाड़ चाँद की रोशनी में किसी जादू सा दिख रहा था। रात के तकरीबन ढाई बजे होंगे, बहुत देर तक सोने के असफल प्रयास के बाद मैं कमरे से बाहर निकल आया। बाहर निकलते ही और अधिक ठंड लगने लगी थी। पहाड़ों की ठंडी देख लगता, ठंड राजाओं का मौषम है। गर्मी में तो एक उबाऊ होती है, फिर भी आप अपना काम कर लेते है पर सर्दी में बस आप आग के पास बैठे रहना पसंद करते है। बात करते रहना पसंद करते है, और कुछ भी करने  के बजाए आपको आराम ज्यादा प्रिय लगती है। पूरा दिन गर्म पानी और चाय पीते रहो और बस उंगलियां बाहर निकाल लेखन का मजा लेते रहो। तो शायद इस कारण भी नींद नहीं आ रही थी कि कल सुबह मुझे इस जगह को छोड़ देना है। मैं कम्बल में खुद को जकड़े हुए यह भी सोच रहा था कि इस सपनों की नगरी से वापस आखिर क्यों जाना! रात की अपनी खूबसूरती होती है, और रात पहाड़ों के लिए सृंगार जैसे है, रात के आने से पहाड़ों की खूबसूरती बढ़ जाती है। और यही खूबसूरती मुझे यहाँ से बांध रही थी। पर हम जहां पैदा होते है, ताउम्र उस जगह की छाप हमपर पड़ी की पड़ी रह जाती है।

no money for return

भाग : 16 मैंने टैक्सी के आगे वाली सीट पर अपना बैग रख दिया और पीछे आकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद एक लड़के की आवाज से मेरा ध्यान टूटा "भईया, बैग पीछे रख दूँ क्या?" मैंने एक नजर उसकी ओर देखा, लगभग मेरी ही उम्र का वह, एकपल को मुझे लगा कि यह टैक्सी यूनियन से ही होगा और जस्ट सेटअप कर चला जाएगा। पर उसके हावभाव से तुरंत ही मुझे रियलाइज हुआ कि अरे ये तो ड्राइविंग करेगा। मैंने उससे पूछा, कि क्या तुम ड्राइव करने वाले हो? और उसने गाड़ी स्टार्ट करते हुए हामी भरा। मेरे मुंह से तुरंत निकला "वेट!" मुझे लगा कि टैक्सी यूनियन में जाकर मैं ड्राइवर चेंज करवा आता हूँ। वॉलेट गुम होने के कारण मैं थोड़ा उदास भी था, और जल्दी से जल्दी मोनेस्ट्री पहुँच कर अपने रूम में वॉलेट के लिए नजर दौड़ाना चाहता था। ऐसे में तकरीबन सत्तर किलोमीटर मुझे उस लड़के की ड्राइविंग में सफर करना था और वो भी पहाड़ पर। इसलिए मुझे लग रहा था कि एक्सपेरेंसिव ड्राइवर को लेना सेफ होगा। न जाने मुझे क्या सुझा कि, मैंने बैग को उठाकर पीछे रखा और बोला, 'चलो!' Photo #ACP पहाड़ों में गाड़ी चलाना अनुभव की बात तो है

पहाड़ों का खिलाड़ी.

भाग : 15 शाम को यूं ही पहाड़ों से घाटी में उतर आया था। नीचे नदी किनारे व मोनेस्ट्री में कुछ वक्त बिताने के बाद कुंगरी की गलियां छानने लगा। वहां गांव की सड़क पर ही कुछ लोग क्रिकेट खेल रहे थे। मैं वहीं बैठ कर क्रिकेट देखने व अपने कैमरे में तस्वीरें क्लिक करने लगा। तब उर्जियन बैटिंग कर रहे थे सो सहसा ही गांव के एक लड़के से उनके बारे में पूछने लग गया। पता चला टैक्सी भी चलाते है। बसों में घूमते हुए एक दबी इक्छा रह गयी थी कि पहाड़ो में घूमा जाए और जहाँ तहाँ गाड़ी रोककर घाटी और  पहाड़ों का आनंद लिया जाए, जो बस में सफर करते हुए हो नहीं पाया था। Photo : Unknown क्रिकेट के बाद मैंने उर्जियन से बात की। बात करने पर उर्जियन उतने ही उदार निकले। लगभग तीस के उम्र के उर्जियन टैक्सी से इतना कमा लेते है कि पहाड़ों में जीवन शांतिपूर्ण जी सके। शेष समय में वे क्रिकेट खेलते है। तीन बच्चीयों और एक बेटे के पिता उर्जियन बताते है कि एक ही बेटा होने के कारण उनको अपनी एक बच्ची को मोनेस्ट्री भेजना होगा। पीन वैली में यह नियम है कि आपको अपने सेकेंड बेटे को मोनेस्ट्री भेजना होता है। मैंने उर्जियन को अपनी

डरावना पुल.

भाग : 14 एक पल को लगता था कि पुल पर चढ़ूँगा और यू चुटकी में उस साइड। पर पुल की हालत देख कर साहस नहीं हो रहा था। बहुत जर्जर स्थिति में थी पुल। जैसे किसी पुरानी फिल्मों का पुल हो और जैसे ही हीरो बीच नदी में पहुंचा, पुल टूट गयी। मैंने पुल के उस पार देखा, एक भी बस्ती नहीं थी। ऐसे में भय और बढ़ जा रहा था, कि कोई इधर से उधर नहीं आ जा रहा। मतलब पुल बहुत पुरानी है। पहाड़ों से उतरकर मैं नीचे घाटी में आ गया था। और नीचे जाने पर यह नदी बहती थी। Photo #ACP मैं अपने अंदर भय और साहस के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहा था। नदी ज्यादा गहरी नही लग रही थी। पानी का रफ्तार तेज जरूर था और बर्फ जैसी ठंडी भी। फिर मैंने सोचा कि अगर पुल टूट जाती है और मैं नीचे गिरता भी हूँ तो भी मैं नहीं मरूँगा। मैं किसी न किसी वजह से बच ही जाऊंगा। तभी एक जंगली कुत्ता उस साइड से दौड़ता हुआ आया और एक पल को भी रुके बगैर झट से इस पार आ गया। इससे पहले कि मन मे कुछ और बातें आती, मैं पुल की ओर बढ़ गया और रस्सी के सहारे बीच पुल तक आ गया। नीचे देखा, नदी की आवाज व रफ्तार और भी डरा रही थी। धड़कने तेज़ी से बढ़ गयी। फिर मैंने सो

हिमालय का अंतिम गांव

भाग : 13 जब कोई कहता है फलाना गांव पहाड़ों का अंतिम गाँव है और वहां से आगे केवल पहाड़ियां ही है तो लगता है वहां ही चल लिया जाए। ऐसे जगहों पर जाना जीवन की एक उप्लब्दी लगती है। ड्राइवर ने मूद के बारे में कुछ ऐसे ही उत्साहित होकर बताया। फिर भी मैंने कहा कि देखते है। चार बजे की बस लगभग साढ़े चार बजे खुल गयी और फिर से सुंदर घाटियों का दौर शुरू हुआ। इस बार बस स्टैंड लेट पहुंचने के कारण मैं विंडो सीट नहीं पा सका था। इसलिए पूरे रास्ते मैं खिड़की के बाहर देखने की कोशिश करत ा रहता। और जब भी बस ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से घिरे घाटी के किसी गांव से गुजरती मैं सोचता यहीं रुक जाता हूँ आज। Photo #ACP सूरज ढ़लते-ढ़लते मैं कुंगरी गांव में पहुंच गया था। ऊंचाई पर स्थित इस गांव की जनसंख्या ज्यादा नहीं थी। छोटी गांव थी। नीचे खूबसूरत नदी और चारोओर बर्फों से ढ़की पहाड़ी। ड्राइवर का कहना था कि मुझे मूद में उतरना चाहिए। जबकि मूद टूरिस्ट स्पॉट है, इसलिए वहां जाने की अपनी विडम्बना थी। सो मैं बस से कुंगरी ही उतर गया। बाहर आते ही जैसे ठंड ने अचानक से हमला कर दिया हो। बहुत ज्यादा ठंड थी और मैं थरथराते हुए पहा