भाग : 13
जब कोई कहता है फलाना गांव पहाड़ों का अंतिम गाँव है और वहां से आगे केवल पहाड़ियां ही है तो लगता है वहां ही चल लिया जाए। ऐसे जगहों पर जाना जीवन की एक उप्लब्दी लगती है। ड्राइवर ने मूद के बारे में कुछ ऐसे ही उत्साहित होकर बताया। फिर भी मैंने कहा कि देखते है।
चार बजे की बस लगभग साढ़े चार बजे खुल गयी और फिर से सुंदर घाटियों का दौर शुरू हुआ। इस बार बस स्टैंड लेट पहुंचने के कारण मैं विंडो सीट नहीं पा सका था। इसलिए पूरे रास्ते मैं खिड़की के बाहर देखने की कोशिश करता रहता। और जब भी बस ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से घिरे घाटी के किसी गांव से गुजरती मैं सोचता यहीं रुक जाता हूँ आज।
Photo #ACP |
सूरज ढ़लते-ढ़लते मैं कुंगरी गांव में पहुंच गया था। ऊंचाई पर स्थित इस गांव की जनसंख्या ज्यादा नहीं थी। छोटी गांव थी। नीचे खूबसूरत नदी और चारोओर बर्फों से ढ़की पहाड़ी। ड्राइवर का कहना था कि मुझे मूद में उतरना चाहिए। जबकि मूद टूरिस्ट स्पॉट है, इसलिए वहां जाने की अपनी विडम्बना थी। सो मैं बस से कुंगरी ही उतर गया।
बाहर आते ही जैसे ठंड ने अचानक से हमला कर दिया हो। बहुत ज्यादा ठंड थी और मैं थरथराते हुए पहाड़ो की ओर देख रहा था, जो हल्के कोहरे में बर्फ से ढकी हुई बेहद खूबसूरत दिख रही थी। एक दोस्त की सहायता से मुझे यहाँ रहने की जगह मिल गयी। कोई शोर-शराबा नहीं। बस घाटी में नदी का बहना एक सुंदर लय की तरह कानों में पड़ रहा था। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि आगे ही समनम गाँव है, जो घाटी में बसी है और, और भी सुंदर है।
मैंने सोचा, अब कुछ दिन यहीं रहूँगा और घाटी का आनंद लेते हुए लेखन करूँगा।
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