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Showing posts from April, 2017

एक उदास कविता

एक उदास कविता ----------------------- तो , ऐसा कभी नहीं होता था कि , तुम नहीं होती थी तुम्हारी उपस्थिति मेरी आदत थी और तुम्हारा सौंदर्य   मेरा अभिमान पर , अब तुम नहीं हो और यह मेरा सत्य है तुम्हारा सत्य तो कहीं और होना है इसलिए तुम चली गई हो सब कहते है   तुम जहाँ गयी हो लोग वहाँ से वापस नहीं आते पर यह कैसा जाना हुआ जब हम लौट कर ही ना आ पाएं इसलिए मैं इंतज़ार करूँगा कभी इस रास्ते पर तो कभी उस रास्ते पर तुम किस रास्ते गयी थी मुझे ये भी तो नहीं पता न ! ©ACP

जब कुछ नहीं दिखता

                   जब कुछ नहीं दिखता वह हाथ देता हूँ पर कोई गाड़ी नहीं रोकता देर रात हो गयी है न ! इसलिए आदमी का आदमी से भय बढ़ गया है सड़के सुनसान है एकाध गाड़ी तेज़ी से गुज़र जाती है और एकाध टेडी-मेढ़ी भी रात में किसी को किसी का परवाह नहीं होता और रात बनती भी तो ऐसे ही है बहुत देर बाद एक बस उसके सामने आकर रुकी है ड्राइवर ने शायद उसे देख लिया हो रात में भी कुछ लोग दूसरों को देख लेते है वह कहाँ जा रहा है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता बस जहाँ भी उसे पहुँचा देगी उससे आगे की वह सोचेगा पर रात में सोचने भर से भी कुछ नहीं होता तब हमारी सोच पे भी रात का साया होता है इसलिए ही शायद रात ज्यादा भयानक होती है रात ऐसी ही हुआ करती है यह अपने होने के क्रम में और भयानक होती जाती है कुछ देर के बाद ड्राइवर बस को किसी किनारे लगा देगा और उससे कहेगा कि तू अब चला जा या ऐसा भी हो सकता है कि ड्राइवर ज्यादा दयालु हो   और वह सोचे कि यह रात में कहां जायेगा ? क्योंकि रात में तो किसी को कुछ दिखता नहीं वो तो बस की लाइट में ड्राइवर उसको यहां तक ले आया है ,  वरन

यादें

                                                    यादें                                                   ***** तुम अपने जाने के बाद भी मेरी स्मृति में हमेशा जीवित रही हो मैं उनके साथ जीता-मरता रहा हूँ एक वक्त के बाद लगता रहा है कि तुम खुद ब खुद भूला दी जाओगी या कुछ ऐसा होगा कि जिंदगी की भागदौड़ में मैं तुम्हें भूल जाऊंगा पर अक्सरहां वो नही होता न जो होना चाहिए था जैसे कि निश्चित ही मुझे तुम्हें भुला देना चाहिए था क्योंकि तुम्हारी स्मृति बहुत सी ऐसी यादों को खंगाल आती है जिनमें मैं लौटना नहीं चाहता वहां सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है तुमसे बिछोह के ढ़ेरो किस्से है तो मैं उधर नही लौटना चाहता पर उन्हीं यादों में चंद यादें तुम्हारे साथ बीते पलों की है और उन खूबसूरत पलों ने ही तो स्मृति को जीवित रखा है परंतु सालो बाद आज भी वे स्मृति मुझे तन्हा कर देती है भीड़ में मैं अकेला बचा रह जाता हूँ मैं अक्सर सोचता हूँ कि तुम क्यों चली गयी पिछले कई वर्षों में मुझे यह सवाल सबसे ज्यादा परेशां करता रहा है क्योंकि कभी भी मैं इसका समुचित उत्तर नही ढूंढ़ पाया फिर भी मैं सोचता

तन्हाई

                                                        तन्हाई                                                  ****** बहुत से लोगों को मैं जानता हूँ और उनमें बहुत से लोग मुझे भी जानते है फिर भी मैं   कभी कभी अकेला बच जाया करता हूँ मेरे पास कोई नही होता और कुछ लोग पास होकर भी दूर ही होते है मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूँ जिनसे मैं चैट कर सकता हूँ फेसबुक पे मेरे छह सौ दोस्त है फिर भी कभी कभी मैं तन्हा बच जाया करता हूँ मैं चैट को ऑन कर देता हूँ और घण्टो उनमें झांकता रहता हूँ मैं तय नहीं कर पाता कि   मैं किसको मैसेज करूँ और उधर से भी किसी का मैसेज नही आता मेरे कांटेक्ट लिस्ट में भी बहुत से नंबर सेव है मैं उन गलियों में भी घूम आता हूँ और   अंत मे उकता कर मोबाइल एक साइड में रख देता हूँ पर तन्हाई मुझे कचोटती रहती है मैं समझ नही पा रहा होता हूँ कि क्या करूँ फिर मैं मोबाइल उठा लेता हूँ और सोचता हूँ कि माँ को कॉल करूँ माँ , एकमात्र है जो मुझे समझ सकती है इसलिए मैं उनको भी कॉल नही करूँगा वे भाँप जाएंगी कि मैं परेशां-प

कितना सवाल पूछता है!

सुना है, एक रात की किस्से सुनाती थी वह कहती थी,उदास था चाँद उस रात फिर कोई पूछता चाँद भी उदास होता है? तो ,वह कहती चाँद के पास भी तो उसका प्यार होता है फिर कोई पूछता तो क्या प्यार में कोई उदास होता है? तब वह कहती प्यार में तकरार भी तो होता है और फिर कोई पूछ बैठता पर इससे पहले ही वह बोल उठती उदास था चाँद उस रात फिर से कोई पूछ बैठता तो क्या चाँद का चांदनी से तकरार था? फिर वह कहती उदासी बेकारण भी तो हो सकती है फिर से कोई कहता अच्छा !! तो क्या चाँद इसलिए उदास था,क्योंकि उसके पास कोई कारण न था? वह मुस्कुराती और कहती पर फिर कोई पूछ बैठता हो सकता है चाँद इसलिए उदास था क्योंकि क्योंकि उस रात आसमान में कोई तारा भी न था? सब बोल लेते पर वह वहीं थी उसकी कहानी भी वहीं थी कि,एक रात उदास था चाँद सुना है,एक रात की किस्से सुनाती थी वह कहती थी, उदास था चाँद उस रात फिर से आगे कुछ कहती इससे पहले ही कोई कह उठता चाँद भी उदास होता है क्या? अक्सर कहा करती थी अपनी कहानी में वह कि एक रात थी और एक चाँद था और रात में फैली चाँद की उदासी थी कोई पूछता,चाँद भी उदा