जब कुछ नहीं दिखता
वह हाथ देता हूँ
पर कोई गाड़ी नहीं रोकता
देर रात हो गयी है न !
इसलिए आदमी का आदमी से भय बढ़ गया है
सड़के सुनसान है
एकाध गाड़ी तेज़ी से गुज़र जाती है
और एकाध टेडी-मेढ़ी भी
रात में किसी को किसी का परवाह नहीं
होता
और रात बनती भी तो ऐसे ही है
बहुत देर बाद एक बस उसके सामने आकर
रुकी है
ड्राइवर ने शायद उसे देख लिया हो
रात में भी कुछ लोग दूसरों को देख
लेते है
वह कहाँ जा रहा है
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
बस जहाँ भी उसे पहुँचा देगी
उससे आगे की वह सोचेगा
पर रात में सोचने भर से भी कुछ नहीं
होता
तब हमारी सोच पे भी रात का साया होता
है
इसलिए ही शायद रात ज्यादा भयानक होती
है
रात ऐसी ही हुआ करती है
यह अपने होने के क्रम में
और भयानक होती जाती है
कुछ देर के बाद ड्राइवर बस को किसी
किनारे लगा देगा
और उससे कहेगा कि तू अब चला जा
या ऐसा भी हो सकता है कि
ड्राइवर ज्यादा दयालु हो
और वह सोचे कि यह रात में कहां जायेगा?
क्योंकि रात में तो किसी को कुछ दिखता
नहीं
वो तो बस की लाइट में ड्राइवर उसको
यहां तक ले आया है,
वरना !
इसलिए हो सकता है कि
ड्राइवर उसको कहे कि तू आज रात यही बस
में सो जा
कल सुबहे निकल जाना
पर रात उसमें एक अनिश्चिन्तता ले आयी
होगी
ड्राइवर के कहने पे अगर वह वहां सो भी
जायेगा
तो भी क्या
वह रात की खौफ से आजाद हो पायेगा ?
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