परीक्षा के परिणाम आ गए थे;मैंने पूरे सौ प्रतिशत अंक प्राप्त किए।मुझे अपने स्कूल में बुलाया गया,वहाँ जहाँ कल तक स्कूल के सभी शिक्षक मुझे जानते तक नहीं थे और आज सभी मेरी प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे।खुद कभी अपने कार्यालय से बाहर न निकलने वाले प्रधानाध्यापक ने मुझे आगे आकर बच्चों के सामने कुछ बोलने को कहा।हजार से ज्यादा अलग-अलग कतार में खड़े बच्चों ने मेरे माईक थामते ही जोरदार तालियों से मेरा स्वागत किया।मानो मैंने सौ प्रतिशत से भी ज्यादा अंक प्राप्त किए हो। मैनें बच्चों के सामने कुछ न बोल पाने की असमंजस को तोड़ते हुए लम्बा स्पीच दिया जिनमें ज्यादातर बातें यहां-वहां से सुनी हुई या फिल्मी थी।बीच-बीच में मैं रुक जाता जब बच्चे तालियां बजाने लगते।हालांकि मैं ये नहीं तय कर पाता कि वे मेरे किस तथ्य पर तालियाँ बजा रहे हैं । उन शिक्षकों की आँखों में भी मेरे प्रति गर्व का भाव था जो मुझे स्कूली दिनों में बदमाशों की श्रेणी
चप्पा-चप्पा...मंजर-मंजर...