'अरे आकाश!जगो भी' माँ की आवाज मेरे कानों में पड़ी।मैंने कोई जवाब दिए बिना करवट बदल ली। 'पापा बुला रहे हैं ' ' माँ ! सोने दो न' मैंने दूसरी बार करवट बदली।और तकिए में सर गोत लिया । ' जामिया की लिस्ट आ गई हैं।तुने तो कहा था कि कुछ लिखा ही नहीं ' 'सही तो कहा था।लिस्ट देखना भी नहीं ' 'मैने तो मान ही लिया था पर तेरे पापा ने देखा' ' वो कुछ बोल भी रहे थे ' मैंने फिर से करवट बदली। 'हाँ' 'अब तो डाँट पड़ेगी ही..... पर वैसे क्या बोल रहे थे ' 'बोल रहे थे कि तुम्हारे एडमिशन में मुझे भी साथ चलने को' 'क्या?' मैं चौकते हुए उठ बैठा।माँ एक दम सामने खड़ी थीं । ' हाँ।तु पास हो गया हैं' ' मै काॅफि लाती हूँ,तु मुँह धो ले'।उनकी आवाज पीछे छूट गई। ये कैसे हो सकता हैं जबकि मैंने एक भी प्रश्न का उत्तर दिया ही नहीं
चप्पा-चप्पा...मंजर-मंजर...