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Showing posts from March, 2018

बिहार उत्सव : ये कलाकारों से मिलने का भी मेला है.

कुसुम जी कहती है  “हम अपनी परवरिश के दौरान जिन चीज़ों को अपने आसपास घटते देखते है, उसका हमारी चेतना पर गहरा असर होता है। मिथिला पेंटिंग की खूबसूरती भी इसी से बरकरार है। और हम महिलाओं ने इसको और भी खूबसूरती से रचा बसाया है।”  दिल्ली हाट के  “बिहार मेला”  में मेरे लिए मुख्य आकर्षण मिथिला पेंटिग्स रही। आज से पहले तक लगता था कि मिथिला पेंटिंग का मुख्य केंद्र ही रामायण की अलग अलग कहानियाँ है। पर आज इस मेले में भ्रमण के दौरान मिथिलांचल की विभिन्न पेंटिग्स को देख पाया जिनका विषय महज रामायण न होकर मिथिला संस्कृति की अन्य झलकियाँ भी थी। कुसुम जी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता है। और उन्होंने पेंटिंग्स के गुर अपनी सासु माँ से सीखा। वह कहती है कि “अपने परिवार में रहते हुए मैंने पेंटिग नहीं की क्योंकि वहाँ ऐसा माहौल नहीं था। बाद में शादी के बाद मैंने इसे अपनी सासु माँ से सीखा।” और इस तरह मिथिला क्षेत्र से बाहर जानेवाली लड़कियां और शादी के बाद मिथिला क्षेत्र में आने वाली महिला परंपरागत रूप से इस कला को जीवित रखे हुए है। इसी संदर्भ में यह बात बेहद उपयुक्त लगती है कि महिलाएं किसी भी कला को ज्याद

पागल खुद की भी कहां सुनता है!

Photo #ACP गली के नुक्कड़ का दुकानदार रोज सुबह-सुबह दुकान खोलकर बैठ जाता है देर रात गए तक वह वहीं बैठा होता है गली के एक छोड़ से मुख्य सड़क तक ले जाने वाला ऑटो ड्राइवर भी सुबह से शाम तक ऑटो चलाता रहता है और ऑटो में एकजैसे गाना ही बजाता है। और वो सब्जी वाला सुबह और शाम दोनों ही वक्त एक ही जगह अपनी दुकान लगाता है। रोज ऑफिस मैं एक ही रास्ते से जाता हूँ और लगभग तय समय तक घर वापस आ जाता हूँ फिर कभी कभी मेरा मन होता है कि, मैं घर से निकलूं और मेट्रो स्टेशन पर जमकर डांस करूँ और सब उदास चेहरे जैसे अचानक से खिलखिला उठे अपना बैग, टाई और जूता सब फेक दूँ या अचानक से मेट्रो में चिल्लाने लगूं और मेट्रो की वो लाल बटन झट से दबा दूँ कि सब ऑफिस जा ही न पाए और वहीं खड़े होकर एकदूसरे से पूरे दिन बात करते रहे। ऑफिस से लौटते वक्त शाम को जैसे मन होता है कि जूता वहीं सड़क पर खोलकर दूर तक पैदल चलता जाऊं और किसी अजनबी वन वे रास्ते पर निकल जाऊं जो इस शहर से दूर ले जाती हो सुबह रोज मैं ट्रैफिक में फंसता हूँ और सोचता हूँ कि अगली सुबह घर से जल्

डॉक्टर नहीं हूँ !

कितनों का तो रोज इलाज करती हो तुम कभी तुम्हारा मन नहीं होता कि बीमार पड़ जाऊं और तुम्हारा भी कोई वैसे ही देखभाल करें जैसे तुम कइयों का करती हो ? Photo #ACP तुम्हारे इंस्ट्रूमेंट्स जिनसे तुम मेरी दांतो का इलाज़ किया करती हो या बात बे बात मेरे पूछने पर जिन मेडिकल टर्म्स के बारे में मुझे बताया करती हो, मुझे उसका कोई ज्ञान नहीं और  यक़ीनन मैं उन टर्म्स को याद भी नहीं रख पाता पर याद रह जाती है मुझे तुम्हारी वो हरेक एक्सप्रेशन तुम्हारी आँखों का तैरना और तुम्हारी भौंह का वो सुन्दर नृत्य मास्क से बाहर झांकती तुम्हारा चेहरा सब याद रह जाता है मुझे और मैं खुद में ही उन्हें ऐसे रिप्ले करता रहता हूँ जैसे कोई हारमोनियम पे राग छेड़ रहा हो। डॉक्टर नहीं हूँ मैं  फिर भी चाहता हूं कि कभी तुम मेरे पास बिमार पड़ जाओ और मैं तुम्हारी माथे पे गर्म पट्टी रखा करूँ तुम्हारी तलवे को सहलाते हुए तुम्हें कोई कविता सुनाऊं कोई कहानी सुनाऊं। या तुम्हें हॉस्पिटल के इस माहौल से दूर कहीं किसी ऐसे जगह पे ले जाऊं जो बसता हो तुम्हारी ख्वाबों में

बिछोह

Photo - #ACP अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें।। ~  #अहमद_फ़राज़ #ACP   #ImagethroughmyEyes

खोपड़ी है, शोर तो करेगा.

....और फिर वह दौड़ता हुआ बाहर आया और बिना कुछ बोले टोपी मेरे हाथ में पकड़ा चला गया। अंदर से लौटते हुए मैं अपना टोपी मोनेस्ट्री में ही भूल आया था। जब मैंने मोनेस्ट्री में प्रवेश किया था, तब वहां एक बड़े से हॉल में प्रार्थना हो रही थी। मैं भी वहाँ बैठ गया। मेरे आसपास बहुत से कम उम्र के बच्चे थे। और सामने बुद्ध का एक बड़ा सा प्रतिमा। सभी एक साथ कुछ बोल रहे थे। बच्चों के सामने एक किताब भी थी। पाली भाषा में। कुछ भी समझ पाने के जद्दोजहद में दिमाग प्रश्नों से भर ने लगा। मसलन इन कम उम्र के बच्चों को धर्म की शिक्षा देना क्या सही है? इन बच्चों ने अपनी राह खुद ही क्यों नहीं ढूंढी? या क्या अब तमाम उम्र ये बच्चों उन्हीं सत्य को मानेंगे जिसे बुद्ध ने सत्य कहा, और क्या ये बच्चें तमाम उम्र बुद्ध के फॉलोवर मात्र बनकर रह जाएंगे? दिमाग बहुत चंचल होता है, जहाँ जो कुछ देखता है सवाल खड़े करता है। बुद्ध ने भी कहा है प्रश्न करना जरूरी है। सवालों के तह से ही रास्ता खुलेगी। पर सवाल मन की शांति का है, प्रश्न मन को अशांत करता है। अंदर कौतूहल पैदा करता है। फिर आगे? पता नहीं। बोध गया के मु

मन

"अब एक ही मन के दो जिस्म है दुनिया में। एक मैं और दूसरी वह" # ACP  

संकरी गली

_गली को इतना संकरा नहीं होना चाहिए कि दो प्रेमी वहां इश्क़ की नींद ही न सो सके_ #ACP   #ImagethroughmyEyes

हज़ार जोड़ी आँखें

मरने से ठीक पहले उसकी एक जोड़ी आँखें हजार जोड़ी आँखों में बदल गयी। और उसने सैकड़ो जोड़ी बाँहों को भी  खुद से जुड़ते महसूस किया, मरने से ठीक पहले, वह ! एकसाथ सबको अपनी   आंखों  और  बाँहों  में  समेट लेना चाहता था।
Photo - #ACP _और अगर हज़ार जोड़ी आंखें होती, तो भी ये तुम्हें देखना ही पसन्द करती_ #ACP   #ImagethroughmyEyes
Photo - #ACP चाँद अब कितना दूर दिखता है मुझे, जबकि अभी अभी वह मेरे पास से उठकर गया है। #ACP   #ImagethroughmyEyes
Photo - #ACP "मौसम का एहसान है, कि तू मेरा मेहमान है" #ACP   #ImagethroughmyEyes
Photo - #ACP _तुम्हारे जाने के बाद आने तक बहुत सी बातें इकट्ठा हो जाती है इसलिए मैं बहुत बोलता हूं_ # ACP   # ImagethroughmyEyes