कुसुम जी कहती है “हम अपनी परवरिश के दौरान जिन चीज़ों को अपने आसपास घटते देखते है, उसका हमारी चेतना पर गहरा असर होता है। मिथिला पेंटिंग की खूबसूरती भी इसी से बरकरार है। और हम महिलाओं ने इसको और भी खूबसूरती से रचा बसाया है।”
दिल्ली हाट के “बिहार मेला” में मेरे लिए मुख्य आकर्षण मिथिला पेंटिग्स रही। आज से पहले तक लगता था कि मिथिला पेंटिंग का मुख्य केंद्र ही रामायण की अलग अलग कहानियाँ है। पर आज इस मेले में भ्रमण के दौरान मिथिलांचल की विभिन्न पेंटिग्स को देख पाया जिनका विषय महज रामायण न होकर मिथिला संस्कृति की अन्य झलकियाँ भी थी।
कुसुम जी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता है। और उन्होंने पेंटिंग्स के गुर अपनी सासु माँ से सीखा। वह कहती है कि “अपने परिवार में रहते हुए मैंने पेंटिग नहीं की क्योंकि वहाँ ऐसा माहौल नहीं था। बाद में शादी के बाद मैंने इसे अपनी सासु माँ से सीखा।” और इस तरह मिथिला क्षेत्र से बाहर जानेवाली लड़कियां और शादी के बाद मिथिला क्षेत्र में आने वाली महिला परंपरागत रूप से इस कला को जीवित रखे हुए है। इसी संदर्भ में यह बात बेहद उपयुक्त लगती है कि महिलाएं किसी भी कला को ज्यादा खूबसूरती से आगे बढ़ाती है। उसे पट्रोनॉइज करती है।
इस मेले में यूं तो कई जगह मिथिला पेंटिग्स की स्टॉल है। पर उनमें कुसुम जी का स्टॉल इस लिए भी अलग दिखता है क्योंकि उन्होंने अपनी पेंटिग्स में जिन कलर का प्रयोग किया है वे नेचुरल है और इस वजह से उनकी पेंटिग्स ज्यादा रंगीन नहीं दिखती। उनमें एक अलग ही विशिष्ट आकर्षण है।
मेले में आपको विशेष चुन्नी भी मिलेगी। चुन्नी पर की हुई कलाकृति के साथ। राजस्थान के जोधपुर में एकबार घूमते हुए मेरी नजर एक चुन्नी पर पड़ी थी। पिले कलर की उस चुन्नी पर कलाकार ने हाथ से कुछ फूलों को बनाया था। मुझे वे बेहद खूबसूरत लगी और मैंने अपनी एक महिला मित्र के लिए उसे खरीद लिया था। यहाँ इस मेले में भी कई ऐसी चुन्नी के स्टॉल्स है जहां आपको चुन्नी मिथिलाचंल की पेंटिग्स से सजी हुई मिलेगी। वे वाकई बेहद खूबसूरत दिखती है, सहज ही सहेज लेने को मन होता है।
बचपन में जब मेला जाता था तब से ही मेले को लेकर एक अवधारणा मन में बनी हुई है कि, मेला एक ऐसा जगह जहाँ आपको बहुत ही अलग अलग चीज़े देखने को मिलेगी। तो यहाँ भी “बिहार मेला” में आपको महज बिहार की ही चीज़े नहीं मिलेगी। कुछ अन्य प्रदेशों की भी झलकियाँ यहां आप देख सकते है। मसलन लखनऊ की कुर्ता भी मिलेगा और नॉर्थ-ईस्ट से कई अन्य खूबसूरत चीज़े भी। उनमें आसाम से जॉय भाई के स्टॉल पे जरूर जाए। युवक जॉय ने बांस से कई चीज़ों का निर्माण किया है। उनसे बातचीत करना भी दिलचस्प है। बांस से बनी चीज़ों के प्रति मेरा आकर्षण तब से बना हुआ है जब मेरे एक मित्र बिदित ने इसपर एक डॉक्यूमेंट्री बनाया था। लिंक यहाँ है – ( https://www.youtube.com/watch?v=bpyHjTzg6Eg&t=306s )
जॉय के दुकान से आगे ही आपको राकेश की शॉप मिलेगी। जहां आपको भिन्न आकर्षक चुन्नी व अलग अलग अन्य कपड़े मिलेंगे.
अलग अलग कला के सभी मामलों में मुझे कलाकारों से बात करना बेहद रुचिकर लगता है। मसलन हम उनके व्यू को भी समझ पाते है। इसी मेले में बिहार से ही एक अन्य कलाकार सतीश जी बताते है कि “विदेशी लोग तो पेंटिग खरीदने से पहले बहुत कुछ पूछता है। सारा कहानी ही खंगाल डालता है फिर जाकर खरीदता है। यूँ नहीं की झट देखा और खरीद लिया।”
तो आजकल स्कूल – कॉलेज में छुट्टी तो चल ही रही है। फुर्सत है तो एकबार घूम आइये। आपको भी अच्छा लगेगा और कलाकारों को भी सुकून मिलेगा। अब लोकल कलाकारों के साथ एक विडम्बना यह भी है कि पेंटिग्स खरीदने वालों तक उनकी पहुंच कम है। ज्यादातर लोग जो कला को पट्रोनॉइज करते है। वे सम्पन्न घर से होते है। और फिर उनका आनाजाना ज्यादातर गैलरियों तक होता है। जिन गैलरी तक बहुत कम लोकल कलाकारों की पहुंच है।
तो आप जा सकते है। कला का दर्शन कर सकते है। कलाकारों से बात कर सकते है। और पसन्द आयी तो कोई पेटिग्स मेले से ले आकर अपने घर की दिवाल पर सजा सकते है।
मेला 31 मार्च तक है। जगह दिल्ली हाट, नई दिल्ली | और टिकट का रुपइया मात्र 30 है। विदेशी लोगों के लिए 100 रुपया।
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