पता नहीं कहाँ से आया था और जब आया ही तो पहले क्यों नहीं। तब मैं चौथे सेमेस्टर में थीं,जब वह मेरे कॅालेज में आया था,आश्चर्य ! आश्चर्य मुझे भी हुआ था आख़िर चौथे सेमेस्टर में कोई कैसे काॅलेज में दाख़िला ले सकता हैं।और यही बात मैंने उससे मौका मिलते ही पूछ डाला।खैर,उसने जो भी बताया,मुझे कुछ समझ नहीं आया , और चूँकि मैं उसे समझना चाहती थीं सो उसके अन्य बातों को समझने में अब मेरी दिलचस्पी बढ़ गई थी। हाँ, तो वह कहता था कि उसने काॅलेज में दाखिला थोड़े ही लिया हैं,वह तो CIC से है और एक ही सेमेस्टर हमारे साथ पढ़ेगा । जबतक मैं पलट के कहती कि एक क्यों ! मैं तो चाहती हूँ कि अब तो तुम यहीं पढ़ो। और तब बुद्धू फट से बोलता 'क्या'! मैं क्या कहती; कुछ नहीं। फिर कुछ नहीं बोलता और आसमान ताकने लग जाता। कुछ पलों तक जब नहीं बोलता फिर मैं ही कहती ' मुझे देखो न'! फिर बुद्धू का वही जवाब 'क्या?'
चप्पा-चप्पा...मंजर-मंजर...