'अरे आकाश!जगो भी'
माँ की आवाज मेरे कानों में पड़ी।मैंने कोई जवाब दिए बिना करवट बदल ली।
माँ की आवाज मेरे कानों में पड़ी।मैंने कोई जवाब दिए बिना करवट बदल ली।
'पापा बुला रहे हैं'
'माँ!सोने दो न'
मैंने दूसरी बार करवट बदली।और तकिए में सर गोत लिया।
मैंने दूसरी बार करवट बदली।और तकिए में सर गोत लिया।
'जामिया की लिस्ट आ गई हैं।तुने तो कहा था कि कुछ लिखा ही नहीं'
'सही तो कहा था।लिस्ट देखना भी नहीं'
'मैने तो मान ही लिया था पर तेरे पापा ने देखा'
'वो कुछ बोल भी रहे थे'
मैंने फिर से करवट बदली।
मैंने फिर से करवट बदली।
'हाँ'
'अब तो डाँट पड़ेगी ही..... पर वैसे क्या बोल रहे थे'
'बोल रहे थे कि तुम्हारे एडमिशन में मुझे भी साथ चलने को'
'क्या?'
मैं चौकते हुए उठ बैठा।माँ एक दम सामने खड़ी थीं।
मैं चौकते हुए उठ बैठा।माँ एक दम सामने खड़ी थीं।
'हाँ।तु पास हो गया हैं'
'मै काॅफि लाती हूँ,तु मुँह धो ले'।उनकी आवाज पीछे छूट गई।
ये कैसे हो सकता हैं जबकि मैंने एक भी प्रश्न का उत्तर दिया ही नहीं था।मैंने फिर से सर को तकिए में गोत लिया।मेरे मन में यह कौतूहल मुझे परेशान कर रही थीं कि मैं जामिया के एंट्रेंस में पास हो कैसे गया?जबकि परिणाम की मुझे खुशी होनी चाहिए थी।मैं उलझन में फँसा रहा और यही उलझन उस दिन तक के लिए दिन ब दिन उलझती ही गई;जिस दिन मैं एडमिशन के लिए जामिया पहुँचा।सभी जामिया के गेट नम्बर सात के बाहर ही खड़े थे क्योंकि अभी इंट्री नहीं हो रही थीं।मैंने पापा-मम्मी को कार के पास ही रहने को कहा और खूद भीड़ की ओर बढ़ गया।भीड़ में नजरें एक ऐसी शक्ल को ढ़ूढ़ती रही जो पहले नज़र से ही दिल और जां का क़रार छीने हुए थी।नजरें एक चेहरे से दूसरे चेहरे पर उड़ती रही,पर उस चेहरे को नहीं ढूंढ पा रही थी ,जिसका मैंने लगभग एक महीने पहले घंटों दीदार किया था।मैं टहलता हुआ,भीड़ से थोड़ा दूर हटकर बैठ गया।
इस प्रश्न का हल ढ़ूँढ़ना पूर्णतः अर्थहीन था कि मैं पास कैसे हो गया?और फिर इस चमत्कार के आशय भी मुझे समझ नहीं आ रहे थे।
मैं सर पर हाथ रखे बैठा दिमाग पर जोर डालने की कोशिश करता रहा तभी पिठ पर किसी के स्पर्श को महसूस किया।मैं पीछे की ओर मुड़ा और अवाक् रह गया।
ऐसा लगा जैसे दुपहरी पीड़ा वाली आँख को एकाएक शीतल चाँद का दर्शन मिल गया हो।
'मै काॅफि लाती हूँ,तु मुँह धो ले'।उनकी आवाज पीछे छूट गई।
ये कैसे हो सकता हैं जबकि मैंने एक भी प्रश्न का उत्तर दिया ही नहीं था।मैंने फिर से सर को तकिए में गोत लिया।मेरे मन में यह कौतूहल मुझे परेशान कर रही थीं कि मैं जामिया के एंट्रेंस में पास हो कैसे गया?जबकि परिणाम की मुझे खुशी होनी चाहिए थी।मैं उलझन में फँसा रहा और यही उलझन उस दिन तक के लिए दिन ब दिन उलझती ही गई;जिस दिन मैं एडमिशन के लिए जामिया पहुँचा।सभी जामिया के गेट नम्बर सात के बाहर ही खड़े थे क्योंकि अभी इंट्री नहीं हो रही थीं।मैंने पापा-मम्मी को कार के पास ही रहने को कहा और खूद भीड़ की ओर बढ़ गया।भीड़ में नजरें एक ऐसी शक्ल को ढ़ूढ़ती रही जो पहले नज़र से ही दिल और जां का क़रार छीने हुए थी।नजरें एक चेहरे से दूसरे चेहरे पर उड़ती रही,पर उस चेहरे को नहीं ढूंढ पा रही थी ,जिसका मैंने लगभग एक महीने पहले घंटों दीदार किया था।मैं टहलता हुआ,भीड़ से थोड़ा दूर हटकर बैठ गया।
इस प्रश्न का हल ढ़ूँढ़ना पूर्णतः अर्थहीन था कि मैं पास कैसे हो गया?और फिर इस चमत्कार के आशय भी मुझे समझ नहीं आ रहे थे।
मैं सर पर हाथ रखे बैठा दिमाग पर जोर डालने की कोशिश करता रहा तभी पिठ पर किसी के स्पर्श को महसूस किया।मैं पीछे की ओर मुड़ा और अवाक् रह गया।
ऐसा लगा जैसे दुपहरी पीड़ा वाली आँख को एकाएक शीतल चाँद का दर्शन मिल गया हो।
'आप'
'Congratulations'।उसने हाथ आगे बढ़ाया।
'किसलिए?'उसकी हाथों के स्पर्श से एक अनजाने से ऊर्जा का संचार पूरे बदन में दौर गई।
'आप पास हो गए'।उसने मुस्कुराते हुए हाथ अलग किया।
'हाँ।मैं भी कल से यही सोच रहा हूँ कि मैं पास हो गया'
'हाँ।अब इसमें सोचना क्या है।जाईए और एडमिशन लिजिए'
हम जामिया के पैरलल फुटपाथ पर आगे बढ़ते रहे।मैंने कुछ नहीं कहा।खामोशी कायम रही तभी मेरे दिमाग में कौंधा कि मेरा रिजल्ट इन्हें कैसे पता चला जबकि पहले दिन हमारी कोई बातचीत नहीं हुई थीं।
हम जामिया के पैरलल फुटपाथ पर आगे बढ़ते रहे।मैंने कुछ नहीं कहा।खामोशी कायम रही तभी मेरे दिमाग में कौंधा कि मेरा रिजल्ट इन्हें कैसे पता चला जबकि पहले दिन हमारी कोई बातचीत नहीं हुई थीं।
'आपको मेरा रिजल्ट पता कैसे चला'।मैंने उसकी ओर देखा।
वह मुस्कुराई।
'हाँ!!मेरा मतलब हैं कि मेरा राॅल नम्बर तो आपको पता था नहीं फिर'
वह मुस्कुराई।
'हाँ!!मेरा मतलब हैं कि मेरा राॅल नम्बर तो आपको पता था नहीं फिर'
'पता था'।उसने मुझे बीच में ही टोका।
'अच्छा।कैसे'?हम दोनों एक-दूसरे पर देखते रहे फिर वह सामने देखने लगी।
'याद हैं आपको इग्जाम वाले दिन आप लगातार मेरी ओर देखे जा रहे थे।मैंने सोचा कि क्या बात हो गई?मैंने सर झुका लिए।हम चलते रहे।
'आप कुछ लिख ही नहीं रहे थे।मुझे लगा आप तो गए काम से'
मैं हँसा,वह सामने देख बोलती रही।
मैं हँसा,वह सामने देख बोलती रही।
'फिर मुझे लगा कुछ तो बात है जो बन्दा इश्क में कुछ इस कदर खूद को नीलाम कर रहा है'
मैंने उसकी ओर देखा,उसने भी। .............................................................................................................................
हमारे स्वतंत्र हाथ एक दूसरे से बंध गए।एक मधुर सिहरन शरीर में दौर गई।
मैंने उसकी ओर देखा,उसने भी। .............................................................................................................................
हमारे स्वतंत्र हाथ एक दूसरे से बंध गए।एक मधुर सिहरन शरीर में दौर गई।
'फिर'।मैंने नजर हटाते हुए पूछा।
'फिर!!जब वो गार्ड साईन करने आया......'
'तो मेरी OMR सिट नीचे गिर गई'
वह मुस्कुराई।हमारे एक-एक हाथ एक-दूसरे के हाथों में थे।
वह मुस्कुराई।हमारे एक-एक हाथ एक-दूसरे के हाथों में थे।
'बिल्कूल'।
'आगे क्या हुआ!!आप तो जानते ही हैं'।
'जानता तो इतना बेचैन क्यों होता?बताईए न'।मैं रुक गया।
वह चलती रही और जब हमारे हाथ तने तो वह भी रुक गई।
वह चलती रही और जब हमारे हाथ तने तो वह भी रुक गई।
'इतना भर याद हैं कि मेरी सिट को आपने उठाया था और कुछ गौर करने.......'।
वह मेरी आँखों में झाक रही थीं।
मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया।
वह मेरी आँखों में झाक रही थीं।
मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया।
'अब क्या बताऊँ।सब तो आप समझ ही गए'
'नहीं-नहीं कहते रहिए' मैंने उसके चेहरे को अपने हाथो में लेते हुए कहा।
'संयोग से मैंने अपनी OMR सिट पर अपना राॅल नम्बर नहीं लिखी थी......'
'और आपने मेरा राॅल नम्बर अपनी OMR सिट पर लिख दी' सजल आँखों के पार वो और स्पष्ट नज़र आ रही थी।
उसने मेरे आँसू पोछे और मेरे और नजदीक आ गई।
हम एक-दूसरे को देखते रहे......हमारी आँखों से आँसू निकलते रहे।
उसने मेरे आँसू पोछे और मेरे और नजदीक आ गई।
हम एक-दूसरे को देखते रहे......हमारी आँखों से आँसू निकलते रहे।
'इतनी बड़ी कुर्बानी.....'।
'कुर्बानी नहीं।मैंने भी खूद को निलाम कर दिया'।उसने मेरे सीने पर चोट किया।
मैंने उसे खूद में भिच लिया।
'आपको इतना विश्वास था मुझपर'
'कुछ इस तरह की मैं जामिया के अन्दर और आप बाहर.........'
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