भाग : 16
मैंने टैक्सी के आगे वाली सीट पर अपना बैग रख दिया और पीछे आकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद एक लड़के की आवाज से मेरा ध्यान टूटा "भईया, बैग पीछे रख दूँ क्या?"
मैंने एक नजर उसकी ओर देखा, लगभग मेरी ही उम्र का वह, एकपल को मुझे लगा कि यह टैक्सी यूनियन से ही होगा और जस्ट सेटअप कर चला जाएगा। पर उसके हावभाव से तुरंत ही मुझे रियलाइज हुआ कि अरे ये तो ड्राइविंग करेगा। मैंने उससे पूछा, कि क्या तुम ड्राइव करने वाले हो? और उसने गाड़ी स्टार्ट करते हुए हामी भरा। मेरे मुंह से तुरंत निकला "वेट!"
मुझे लगा कि टैक्सी यूनियन में जाकर मैं ड्राइवर चेंज करवा आता हूँ। वॉलेट गुम होने के कारण मैं थोड़ा उदास भी था, और जल्दी से जल्दी मोनेस्ट्री पहुँच कर अपने रूम में वॉलेट के लिए नजर दौड़ाना चाहता था। ऐसे में तकरीबन सत्तर किलोमीटर मुझे उस लड़के की ड्राइविंग में सफर करना था और वो भी पहाड़ पर। इसलिए मुझे लग रहा था कि एक्सपेरेंसिव ड्राइवर को लेना सेफ होगा।
न जाने मुझे क्या सुझा कि, मैंने बैग को उठाकर पीछे रखा और बोला, 'चलो!'
Photo #ACP |
पहाड़ों में गाड़ी चलाना अनुभव की बात तो है ही पर मैंने महसूस किया था कि यह एक तरह का टैलेंट भी है। एक तरफ न जाने कितने खतरनाक मोड़ होते है पहाड़ों में तो दूसरी तरफ खाई। और कभी कभी तो अचानक से कोई गाड़ी सामने आ जाती है। फिर टैलेंट के लिए न तो उम्र की अपनी कोई फिक्स जगह है और न ही किसी सिर्टीफिकेट की। उसकी उम्र देखकर लगता था, निश्चित ही उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं होगी।
जैसे ही टैक्सी ने पहाड़ों पर रफ्तार पकड़ी, मेरा ध्यान फिर से वॉलेट पर चला गया। जब सुबह के तकरीबन नौ बजे काज़ा पहुंच गया तब कोई भी बस मनाली के लिए नहीं थी। मुझे अगली सुबह तक बस या शेयरिंग टैक्सी का वेट करना था, सारे टैक्सी व बस सुबह 7 बजे से पहले पहले ही मनाली के लिए निकल जाती है। जबकि मैं काज़ा में रुकना नहीं चाहता था। सो मैं यूनियन गया और मनाली के बाबत टैक्सी को लेकर बात करने लगा। संयोग से दो लोग और जाने वाले थे। मैंने कहा, ये तो अच्छा है। यूनियन वाले ने कहा, आपको दो हज़ार पे करने होंगे। मैंने कहा, बस में 400 लगते है और शेयरिंग टैक्सी में 600, मैं आपको 1500 तक दे सकता हूँ। थोड़ी देर तक पता नहीं वह क्या हिसाब लगाता रहा फिर बोला, ठीक है। और जब बारी आयी पे करने की तो मैंने पाया कि, अरे मेरा वॉलेट तो है ही नहीं। सारे कैश और कार्ड्स उसी में थे। मेरा परेशान चेहरा देख कर वह स्थिति को समझ गया और बोला, यहां चोरी नहीं हो सकता भईया, पहाड़ो में ऐसा नहीं होता, जरूर जहां आप रुके थे वहीं भूल आये होंगे।
मैंने पहले अपना सारा बैग उधेरा। फिर पूरा माथा दौड़ाना शुरू किया, कि लास्ट टाइम कहाँ वॉलेट का यूज़ किया था। आदतन कहीं से भी निकलने से पहले मैं रूम भी अच्छी तरह चेक कर लेता हूँ, फिर?
मैंने बैग के अलग अलग जेबीयों को खंगाला और लगभग दो हज़ार रुपए ही वहां से निकले। इतने में मैं दिल्ली तो लौट ही नहीं पाऊंगा, 1500 तो टैक्सी वाले को ही देने होंगे मनाली तक के लिए। फिर?
मैं सोचता रहा। कुछ समझ नहीं आ रही थी कि वॉलेट कहाँ गया होगा? सुबह जब आया था तो जेब मे खुले थे और बस वाले को वही दे दिया था, सो उस वक्त वॉलेट की जरूरत पड़ी नहीं। फिर, रूम भी आते वक्त देखा ही था, कहाँ गया फिर?
और अंततः मुझे कुछ नहीं सूझा, यूनियन वाले कि सलाह पर दुबारा लौटकर मोनेस्ट्री जाना और रूम में चेक करना ही मुझे सही लगा। मेरे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था, जबकि मैं यह अच्छी तरह समझ गया था कि यहाँ चोड़ी नहीं हो सकती।
"भईया, मिल जाएगी। आप चिंता मत करो"। उसने गाड़ी चलाते हुए मुझसे बात करने की कोशिश की। मैं भी यही सब सोचने के मुकाबले अब फिर से पहाड़ों का आनंद लेना चाहता था सो उससे बात करने लगा।
"अच्छी, ड्राइविंग करते हो तुम।" जवाब में केवल वह मुस्कुराया।
"कहाँ सीखा?" मैंने आगे यूँ ही प्रश्न जोड़ दिया।
"पापा ने सिखाया है। वो हमारा टैक्सी का ही बिज़नेस है। पापा सूमो चलाते है और मैं यह ऑल्टो। पर मुझे सूमो चलाना ज्यादा अच्छा लगता है।" उसने अपने बारे में कुछ बताया।
"पर पहाड़ों पर चलाना किसने सिखाया?"
"पापा ने पहाड़ों पर ही ट्रेनिंग दी थी, भईया।"
"अरे, भईया भईया मत बोलो यार। हमारी सेम ही उम्र है"
"आप कितने के हो?"
"22"
"18, आप मुझसे चार साल बड़े हो।" उसने पूरा गणित बैठा दिया था। मैंने कोई जवाब नहीं दिया और पहाड़ो की ओर ही देखता रहा। अब भी अवचेतन में, वॉलेट का गम चल घूम रहा था।
"शादी हो गयी आपकी?" उसने पूछा।
"अरे अभी कहाँ! तुम्हारी?"
"हां, मेरी तो हो गयी।"
"अरे वाह! लव मैरिंज किया?" मेरा सजह ही जिज्ञासा हुआ पूछने को।
"नहीं नहीं। पहाड़ों में लव मैरिज नहीं होता। हम अपने फादर के चॉइस से ही करते है। यहां हम अपनी पसंद से कुछ नहीं कर सकते, लड़की भी नहीं ला सकते।" उसने पहाड़ों का समाजशास्त्र बताया।
मैंने कहा, " तुम प्रेम कर सकते थे और जब फैमली नहीं मानती तो लड़की को भगा कर शादी कर लेते।"
"ऐसा हम नहीं कर सकते, वरना फिर कभी हमें हमारा पहाड़ों का समाज नहीं अपनाएगा।"
"अच्छा। और अगर मैं किसी पहाड़ी लड़की से लव कर लूं तो? मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।
"आप तो बाहर के हो। आप भगा के ले जा सकते हो।" उसने भी मुस्कुराते हुए कहा।
मैंने सहसा ही बात का रुख मोड़ा "आराम से चलाओ। कोई जल्दी नहीं है।"
अगले एक घंटे बाद हम मोनेस्ट्री पहुंच गए थे। जैसे ही मैं वहां पहुंचा, सीधा दौड़ता हुआ अपने रूम में गया। वहां कुछ नहीं था। एक पल को फिर मैं हताश हुआ पर अगले ही पल मैंने मैटरेस से चादर हटाया, वॉलेट वहीं पड़ा था। पता नहीं कब मैंने बेड शीट के अंदर वॉलेट रख छोड़ा था। एकपल को लगा कितना स्टुपिट हूँ मैं। उधर नन्स सब इकठ्ठा हो गयी थी, कि क्या हुआ कि मैं लौट आया? सबकुछ सही तो है न!
मैंने कहा, "सब ठीक है।"
https://www.facebook.com/aaryan.anish/posts/1133715310114365
Comments
Post a Comment