और उस दिन फिर से मिलने को आतुर प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को कॉल किया "मोना,आज आओगी न मिलने"
और उधर से प्रेमिका ने वही कहा जो वह दो दिन से कहती आ रही थी "आज भी न मिल पाऊँगी, घर पर बहुत काम है"
"अच्छा!" प्रेमी ने बुझे मन से कहा।उसे आगे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या बोले।पर वह बोलना चाहता था,सुनना भी चाहता था क्योंकि वह जानता था एक बार कॉल कट जाने के बाद वही विरह की अग्नि।
कुछ देर तक तो दोनों एकदूसरे की खामोशी ही सुनते रहे।फिर प्रेमिका ही बोली "दो दिन पहले ही तो मिली थी,फिर काम खत्म होते ही आऊंगी न!"
"दो दिन पहले! पता है,मोना।दो दिन में कितने पहर होते है।और उन पहरों में कितनी लम्हा होती है...."।
प्रेमिका कुछ न बोली।उसने केवल अपने बेचैन प्रेमी की धड़कने सुनी। "....और मोना! अगर उन एक-एक लम्हों में हज़ार-हज़ार बार भी मेरी धड़कने धड़कती है तो तुम अंदाजा लगा पाओगी कि कितना बेचैन होता हूँ मैं तुम्हारे बगैर"
प्रेमिका ने इस बार भी कुछ नहीं कहा।
'ऐ मोना! कुछ बोलो न!'
"क्या बोलूं?"
"कुछ भी,जो भी तुम चाहो"
"मेरे चाहने से कहां कुछ होता है,वरना आज आ न जाती मिलने"।
इससे ज्यादा न प्रेमी कुछ सुनने को आतुर था और न ही प्रेमिका के पास शब्द थे।
©ACP
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