जब सोया हुआ आदमी
नींद की आगोश से जगा दिया जाता है
तो भी क्या वह सपनो से बाहर आ पाता है
सोने से पहले और
सोने के बाद कि दुनिया में
सपनों का एक संसार बसता है
क्या आदमी कभी उससे मुक्त हो पायेगा
या तमाम उम्र उन सपनों की लकीरें उसका पीछा करती रहेगी
आदमी आधा जिंदगी जाग कर
और
आधा जिंदगी सोकर बिता देता है
पर क्या उन जागे हुए जिंदगी में भी
वह जगा होता है?
या जागते हुए भी
वह अपने देखे सपनों की ही दुनिया मे होता है
उसका देखा सपना ही उसका संसार है
बाकि जो वो देख रहा है
वह तो किसी और की ख्वाबों का बासिन्दा है।
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