समय से भी किसी को शिकायत हो सकती है क्या।भला इतना शांत, चुपचाप किसी भी हालात में अपने काम मे लगे रहने वाला, समय।पर अपने नायक को इनदिनों थोड़ी बहुत शिकायत है समय से।
उसका मानना है कि जब भी नायिका उससे मिलने आती है, समय कुछ तेज चलने लगता है।वह नायक की परवाह ही नहीं करता।और न ही उसके प्रेम की परवाह करता है।नायक के अनुसार ऐसे किसी भी चीज़, व्यक्ति या वस्तु को समाज में रहने का कतई अधिकार नहीं है।
अब नायक समय पे थोड़ा सा झल्लाता तो है पर समय का रुख वैसे ही बेपरवाह।तो नायक अंततः नायिका से ही कहता है "बस पांच मिनट और रुक जाओ न! फिर चली जाना"
उस दिन नायिका उठ खड़ी हुई और जिद्द करने लगी कि आज न रुकूँगी।भला नायक का पांच मिनट कभी खत्म हुआ है।घण्टों की मुलाकात के बाद भी अंत मे जब नायिका जाने लगे तो पाँच मिनट चाहिए ही नायक को।
तो नायिका जानती है इस बात को।शाम को मम्मी नवरात्रि की पूजा करेगी न, इसलिए उसका होना वहाँ जरूरी है।अब इस बात को कैसे समझाए वह नायक को।तो वह कहती है "जो बात है ऐसे ही बताओ न"।नायक कहता है "नहीं,पास आकर बैठो फिर बताऊंगा"।
Photo - ACP |
नायिका पास बैठ जाने के बाद के सम्मोहन से वाकिफ है।वह कहती है "मैंने चप्पल पहन लिया है और यह टाइट भी है।खोलना पहनना मुश्किल भरा है"। जवाब में नायक कहता है "बस पांच मिनट"। नायक बड़ी ही बेचैनी से नायिका की ओर देख रहा है।और नायिका भी ऐसे देख रही है जैसे वह अपने जाने की कारण को न बताते हुए भी बता देना चाहती हो।जैसे वह कह रही हो घंटो से तो तुम्हारे पास ही बैठी थी।और जैसे नायक कह रहा हो "अभी-अभी तो आयी हो"।
नायक कहता है "चप्पल खोलना, इतनी दूर मिलने आने इतना मुश्किल थोड़े ही है।खोल दो न।"
और जवाब में असमंजस की स्थिति देख नायिका कहती है 'अब जाने भी दो न! कल फिर मिलूंगी'
नायक उतनी ही अधिरता से कहता है 'कल का क्या भरोसा?'
और जवाब में असमंजस की स्थिति देख नायिका कहती है 'अब जाने भी दो न! कल फिर मिलूंगी'
नायक उतनी ही अधिरता से कहता है 'कल का क्या भरोसा?'
यह सुनते ही नायिका की भौंह तन जाती है और वह कुछ कहने को होती ही है कि नायक आगे अपनी बात पूरी करता है 'मैं रहूँ या न रहूँ'।
दोनों के बीच अब भी अपनी-अपनी बातें है।नायक नायिका से पास आकर बैठ जाने को कह रहा है।वह कह रहा है कि बस पाँच मिनट के लिए पास आकर बैठ जाओ,फिर चली जाना।और उधर नायिका कह रही है "अब जाना होगा।काफी वक्त हो गया है।मम्मी नाराज होगी।भईया भी घर आ गए होंगे।"
नायक कह रहा है "बस पांच मिनट।"
नायिका कह रही है "नहीं, अब जाना होगा।"
नायिका कह रही है "नहीं, अब जाना होगा।"
ऐसे न जाने कितने पांच मिनट अबतक बीत चुके है।न नायक "पाँच मिनट और" की जिद्द छोड़ रहा है और न ही नायिका उसकी जिद्द को पूरी कर पास आ-जा रही है।
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