चाँद अब भी कितना दूर दिखता है मुझे
जबकि अभी अभी वह मेरे पास से उठकर गया है
जब दूर होता है वह
आसपास एक धूंधली छाया होती है उसके
और जब पास होता है
तब चाँदनी की रात हो जैसे
बहुत बार उसके दूर चले जाने के बाद
मैं सोचता हूँ
आखिर रोक क्यों नहीं लिया मैंने उसे
पर रोक लेना भी क्या सही होता?
चले जाने पर जो उसकी खुशी है
और फिर वापस आने का
जो उसका उत्साह है
उसी में तो हमारे प्रेम का प्रवाह है
और प्रवाह को रोक लेना
क्या नदी को नाला बनाना न हुआ!
तो बहुत बार सोचने,मन होने के बावजूद
मैं उसे नहीं रोकता
मैं हर बार की जुदाई सहते हुए
उसके आने के उमंग को
जीना चाहता हूं
मैं उस लम्हा को जीना चाहता हूँ
जो उसके आने की खबर से मेरे अंदर कौंधती है
मैं उसकी चेहरे के उस उत्साह को जीना चाहता हूं
जो उत्साह वह हमारे रिश्ते में महसूस करती है
हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता ही
हमारे रिश्ते की खूबसूरती है
इसलिए मैं उसे कभी नहीं रोकना चाहता
यूँ ही उसके जाने के बाद की विरह को महसूस कर
उसके आने के उत्साह को जीना चाहता हूँ।
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