भाग : 12
और अब छह दिनों के बाद भटकता हुआ दिन के लगभग 11 बजे काज़ा पहुंचा। काज़ा पहुंचने के दौरान अनायास ही मैं सोचता रहा था कि काज़ा के बाद क्या करूँगा। पर अगले ही पल उतने ही आसानी से मैं इस बात को पीछे भी कर देता और सोचता आगे देखेंगे। यात्रा करते हुए मैं इन अनायास प्रश्नों से भी मुक्त होने के प्रयास में रहता हूँ जो जाने अनजाने हमारी सुरक्षा को लेकर मन मे चलती रहती है। अब इतना समझ गया था कि प्रकृति सबका ख्याल रखती है इसलिए कुछेक बातों को उनके भरोसे छोड़ देना चाहिए। शाम तक कहीं न कहीं ठिकाना मिल ही जाएगा।
चोंगा से जिस बस में बैठा था, उसी बस में पीछे रिकोंगपिओ से भी आया था। सो इस दौरान ड्राइवर व कंडक्टर से अच्छी दोस्ती हो गयी थी। उन्हीं लोगों ने बताया कि काज़ा में अक्षय कुमार शूटिंग के लिए आये हुए है और इस वजह से वहां बहुत भीड़ है और सारे होम स्टे व होटल भी बुक होंगे। मैं आगे कुछ सोच ही रहा था कि उन्होंने कहा या तो आप मूड चले जाओ या समनम। वहां आप मोनेस्ट्री में रह लेना या सस्ता होम स्टे मिल जाएगा आपको।
आईडिया अच्छा लगा, और पता चला वह बस ही काज़ा से चार बजे कुंगरी गांव की ओर जाएंगी। मैंने सोचा देखते है, चार बजे तक क्या मूड बनता है। फिर ड्राइवर व कण्डक्टर का नंबर लिया और शहर की ओर निकल आया।
Photo #ACP |
जैसा पहले लगा था कि काज़ा भीड़भाड़ वाली जगह होगी, क्योंकि यह टूरिस्ट स्पॉट है। पर यहां लोग बहुत कम ही थे। अभी टूरिस्ट लोगों का आना शुरू नहीं हुआ था। शहर से थोड़ी दूर मोनेस्ट्री दिख रही थी। जहाँ जहाँ भी कम भीड़भाड़ वाली जगह पे पहुंच पाया हूँ, वहाँ बुद्धिस्ट लोग पहले से पहुंचे हुए है। हिन्दूत्व-इस्लाम धर्म तो लड़ाई-झगड़े व दंगों के लिए सीमित रह गयी है अब। जबकि बुद्धिज्म आज भी आकर्षित करती है। पहाड़ों से गुजरते हुए मैन कई जगहों पे देखा था, पहाड़ों में वे एक छोटा सा केव बना कर चुपचाप साधनारत थे।
और बुद्धिज्म को जब आप नजदीक से देखेंगे-समझेंगे तो आपको पता चलेगा कि यह धर्म से ज्यादा एक प्रकार की लर्निंग है। धर्म अपने कई आडम्बरों में आपको जकड़ लेता है जबकि ज्ञान आपको मुक्त करता है।
एक गली से दूसरी गली और फिर कुछेक गलियों के बाद मैंने काज़ा को एक नजर में भाँपा और यूँ ही भटकता हुआ "सोल कैफे" पहुंचा। बाहर से सामान्य दिखने वाला यह कैफ़े अंदर जाकर बहुत खास लगा। चारोओर अच्छे से सजी इस कैफ़े के एक कोने में पानी रखी थी। मैंने अपना बैग उतारा। कंधा एकदम से दर्द कर रहा था। मन हो रहा था सीधा लेट ही जाऊं यहाँ। पानी पीने के कुछेक देर बाद तक मैं इधर उधर ही नजर दौराता रहा। बुक सेल्फ में कई किताबें थी। मैंने उनका नाम भी नहीं सुना था, उल्टा पल्टा फिर रख दिया। हाँ, एक दिलचस्प गेम वहां रखी हुई मिली, मेमोरी गेम। सोचा समय मिलेगा तो खेलेंगे आज। पर अभी तो भूख लगी है।
अब तक कोई बाहर नहीं आया इसलिए मैं ही अंदर चला गया। कैफ़े के मेन कमरे से अंदर की ओर रास्ता खुलती थी जो पहले दो कमरे में और फिर सीधा किचेन की ओर जाती थी। मैं किचेन की ओर बढ़ा। वहां एक भाई थे। कुछ बना रहे थे। थोड़ी देर उनसे बातचीत हुई। पता चला यह कैफ़े वालंटियर बेस्ड है, मैंने पूछा उनसे कि क्या मैं अपना बैग यहां शाम तक के लिए रख सकता हूँ। उन्होंने सहजता से हां कह दिया। मैंने मेन्यू देखा, ज्यदातर मेरे लिए अननोन फ़ूड ही थे। कुछ मैंने पहले ट्राइ किया था। फिर भी मुझे मेन्यू में कुछ पसन्द नहीं आया। मैं कुछ इंडियन फ़ूड खाना चाहता था, इसलिए केवल कॉफी का आर्डर देकर बाहर आ गया। और बैग से छोटा बैग निकाल कर कैमरे की सेटअप करने लगा। पूरी यात्रा में मनाली के बाद आज ही कैमरा निकाल पाया था। बड़े बैग को अंदर दूसरे कमरे में रख दिया। फिर कॉफी पीने के बाद काज़ा को देखने निकल आया।
कई कैफ़े व रेस्टोरेंट वाले से पूछ-पूछ कर मैं उनके छत पर जाता रहा और पहाड़ व काज़ा की फोटोज खींचता रहा। इसी दौरान एक सामान्य से रेस्टोरेंट में खाना भी खाया जिसके बदले उन्होंने मुझे अस्सी रुपये चार्ज किये। खाना भी टेस्टी था, इसलिए खाने के बाद मैं पीछे किचेन की ओर गया। सेफ़ से बातें हुईं। वहां सभी खाना बनाने वाले उत्तरप्रदेश के रामपुर से थे। मैं सोच रहा था रोजगार की तलाश में लोग कितने दूर-दूर तक आते है। कुछ देर बातचीत के बाद मैं घूमता फिरता मोनेस्ट्री पहुँचा। बाहर बाहर मोनेस्ट्री को देखता रहा और इस दौरान ही कुछेक बौद्ध सन्यासी से बातचीत हुई। मैं लंबी बातचीत करना चाहता था क्योंकि कॉलेज में जब बुद्धिस्ट फिलॉसफी पढ़ा था, तब धरातलीय दर्शन से जोड़कर समझने की इक्छा हुई थी। पर बौद्ध सन्यासी अधिक बातचीत के मूड में नहीं दिख रहे थे। कुछेक मिनटों बाद ही उन्होंने बाय-बाय कह दिया।
मोनेस्ट्री से थोड़ी और ऊँचाई पर एक मंदिर थी। सोचा उधर भी टहल लिया जाए और मैं ऊपर चढ़ने लगा। जितना ऊपर चढ़ता, काज़ा ऊपर से और सुंदर दिखता। मैं सबकुछ पहले मिनटों देखता और फिर कैमरे में क्लिक करता। और ऊपर जाने से देखने पर काज़ा और सुंदर दिखता, मैं फिर क्लिक करता। जब मंदिर के लगभग पास पहुंचा ही था कि कई कुत्तों के भौंकने की आवाज मेरे कानों में पड़ी। मैं एकदम से डर गया। आसपास दूर-दूर तक कोई नहीं था। और देखते ही देखते कई कुत्ते अचानक से मेरी ओर आने लगे। मैं तो एकदम से सुन्न हो गया। भौंकते हुए वे नजदीक आते गए, मेरी धड़कने और तेज़ हो गयी। क्या करूँ, समझ नहीं आ रहा था। भागने तो था ही नहीं। मैंने जल्दी से कैमरे को गले मे टांगा और बालों पर शॉल लपेट लिए। कई बार मेरे बालों के कारण भी कुत्ते भौंकने लगते है। मैं चुपचाप नीचे बैठ गया। उनमें से एक ब्राउन कलर का कुत्ता मेरे अधिक नजदीक आया और उसने मुझे सूंघना शुरू किया। कुछेक देर तक वह मेरे स्विटर को भी छूता रहा फिर मैंने साहस करके उसके सर पर हाथ फेरा और चू-चू की आवाज लगाया। ऐसा हम गांव में किया करते थे जब किसी कुत्ते को पास बुलाना होता था। अगले पल कुत्ता चला गया था।
जब मंदिर पहुंचा तब समझा कि इतने सारे कुत्ते क्यों भौंकने लगे थे। सीढ़ियों और मंदिर के गेट को देखकर महसूस हुआ कि यहाँ अब कोई आता जाता नहीं है। काफी पुरानी आवाजाही के निशान मात्र थे अब। इसलिए शायद अब कुत्ते वहां रहने लगे थे। मैं नीचे उतरने लगा था। साढ़े तीन हो गए थे। मैंने "सोल कैफ़े" वाले भाई को धन्यवाद कहा और बैग लेकर बस स्टैंड की ओर निकल आया।
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