भाग : 5
सुबह आठ बजे के आसपास मेरी नींद खुली। मैंने अलसाए मन से ही मोबाइल में टाइम देखा। अभी आठ ही बज रहे थे, यानी और सोया जा सकता था। अभी तक मैं केवल तीन घंटे ही सो पाया था। रात को बस में भी ठीक से नहीं सोया था। सोचा, थोड़ी देर और सो लेता हूँ फिर अचानक से उठ बैठा और फ्रेश होने चला गया।
कितनी भी नींद लगी हो, नहाने से सब गायब हो जाती है। और मैं जान गया था कि किसी भी शहर को देखने के लिए सुबह सुंदरतम समय होता है। इसलिए किसी भी हालत में मैं सोए नहीं रहना चाहता था।
रिकोंगपिओ, जिसे आजतक न मैंने मैप पे देखा था और न ही इसका नाम, कहीं सुना था। भटकते हुए आज मैं यहाँ पहुंच गया था। फ्रेश होकर जब बाहर निकला और पोस्ट ऑफिस के सामने वाली गली होते हुए आगे बढ़ा, तो सबसे पहला आकर्षण रिकोंगपिओ की गलियां थी। ऊंचाई से नीचे जाने के लिए बनी छोटी-छोटी सीढ़ियों का स्लोप, जो न तो स्लोप है और न ही पूरी तरह सीढियां। चलते हुए बेहद मजेदार महसूस होती है।
थोड़ी नीचे उतर कर देखा, आर्मी का एक बड़ा कैम्प है और पीछे बर्फों से ढँका पहाड़ सूरज की रोशनी में चमक रहा है। सबकुछ मिलकर एक सुंदर सिनेमैटिक दृश्य बना रहा था। मैंने कुछ क्लिक्स किए। पता करने पर मालूम हुआ कि आगे चाइना बॉर्डर है, इसलिए यहाँ इतनी बड़ी आर्मी कैम्प है।
ठंड इतनी भर थी कि एक स्विटर से काम चलाया जा सके, इसलिए सनलाइट न तो सुखद लग रही थी और न ही इरिटेटिंग। गालियां छानते हुए मैं एक रेस्टोरेंट में पहुंचा, भूख भी लगी ही थी, पता करने पर पता चला उनके पास केवल आलू का पराठा है। सुबह सुबह पराठा खाना, ओह! मैं बाहर निकल आया और किसी और खाने की जगह ढूंढ़ने लगा।
Photo : #ACP |
मेन चौक के पास में ही "Little Chef Restaurent" है। इस रेस्टोरेंट की खास बात ये है कि यहाँ ऊपर बैठते हुए सामने पहाड़ और दूसरी ओर छोटी सी पूरी शहर दिखती है। रेस्टोरेंट में जाने पर देखा, जितने भी काम करने वाले थे सभी मेरी ही उम्र के या मुझसे छोटे थे। पहले मैंने एक कप कॉफी के लिए कहा और फिर किचेन जाकर उन लोगों से बात करने लग गया। सभी नेपाल से थे। नेपाल में पिछली आपदा के बाद ज्यादातर नेपाली मजदूर हिमाचल में दिख जाते है। मैंने उनलोगों से पूछा वे यहां तक किस रूट से आते है, जवाब में सबसे कम उम्र के सेफ ने बताया कि वे सभी एक साथ हरिद्वार या गोरखपुर होते हुए आते जाते है। उनलोगो का सपना है कि वे इतना अर्न करे कि एकदिन वे फिर से अपना घर बना पाए। त्रासदी के सामने आज भी उनकी उम्मीद ज्यादा मजबूत दिखती है।
थोड़ी देर बात करते रहने के बाद मैंने पूछा कि उनलोगों ने अभी तक कुछ खाया या नहीं। फिर हमसब ने साथ बैठकर खाया। मैं कुछ देर तक उनलोगों से बात करता रहा फिर बाहर निकल आया।
रिकोंगपिओ में भटकते हुए फिर से एक युवा दोस्त से मिला। मैंने पूछा वे क्या करते है, और उतनी ही बेबाकी से उन्होंने कहा, वे कुछ नहीं करते। पता चला उनके पिता ठिकेदार है और हिमालय में जमीन बेचने का काम भी करते है। रिकोंगपिओ ज्यादा बड़ा नहीं है, दोपहर तक मैंने ज्यादातर जगहों पे घूम लिया। लोगों से बात किया। बात करने पर पता चलता है कि बिहार उत्तरप्रदेश के लोगों के प्रति यहां के लोगों में धीरे-धीरे रोष उतपन्न हो रहा है क्योंकि उन्हें लगता है इन मजदूरों के आने से उनके यहां कुछ असामाजिक गतिविधियों का चलन बढ़ा है। कभी कभी लगता है कि हम बिहार के लोगों ने कभी सही गवर्मेंट को नहीं चुना। न वे हमें नौकरी दे पाए और न ही सम्मान।
दोपहर तक मैं होटल आ गया और अगले पड़ाव की तैयारी करने लगा।
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