शुरू शुरू में हिमाक्षी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था कि मैं उसके साथ हॉस्पिटल आऊं। हाँ, मेरे जिद्द को वह टाल नहीं पाती थी। और मैं उसके साथ आ जाता। रात में बहुत कम ही पेसेंट आते। बस एकाध, पूरी रात भर में। फिर भी ऐसा नहीं होता कि वह सो जाए। और इस मामले में वह ज्यादा ही चौकस रहती। उसकी एक आदत थी, कि जब भी उसकी आंख लगने लगती, अपने बॉडी के एक हिस्से में वह जोर से चुटी काटती। ऐसा करने पर उसे लगता था कि उसकी नींद भाग जाएगी। हाँ, जब मैं साथ आने लगा तब शायद कुछ चीज़ें आसान हो गयी। मैं दुनिया भर की बातें करता रहता, और वह एकटक सुनती रहती। कभी कभी मैं इस बात पर आपत्ति भी करता कि आखिर वह क्यों कुछ नहीं बोलती। बस हाँ.... हूँ। इससे आगे भी तो कुछ होगा। पर मैं उसके साथ रहते हुए समझ गया था कि उसका कम बोलना अपने जीवन के प्रति कितना बड़ा विद्रोह है। जिस उम्र में मैं दुनिया भर की फिल्में देख रहा था, मौज मस्ती कर रहा था, उस उम्र में लड़की होने की जिम्मेदारी पूरी करने में वह लगी थी। रात दिन मेडिकल के टर्म्स में माथा फोड़ती। और एक लंबे संघर्ष के बाद उसे जो मिला है उसे वह खोना नहीं चाहती। और आज कमो-बेस वह एन्जॉय भी कर रही है। कभी सप्ताह के दिन भर न जाने कितनों का अपनेपन से इलाज करती है तो कभी नाईट ड्यूटी पर रहती है।
पहले पहल हिमाक्षी को लगता था कि कुछ दिन साथ आने के बाद मैं खुद ही नहीं आने लगूँगा। आखिर रात रात भर जागना किसे पसन्द हो। पर जब भी मैं उसके साथ हॉस्पिटल जाता, मुझे लगता कि मैं रात भर उसकी आँखों मे ही तो जागता हूँ। इसलिए मेरे लिए जागना सहज था। सप्ताह के किस दिन उसकी नाईट ड्यूटी लगेगी, यह पहले से तय नहीं होता था। कल अगर नाईट ड्यूटी करनी है तो आज बता दिया जाता था। फिर कल होकर हिमाक्षी दिन भर फ्लैट पर ही रहती। और दुनियाभर की कामों को उसी दिन निपटाने में लगी रहती। फिर शाम को हॉस्पिटल के लिए भी निकल जाती। मैं कहता उससे कि जिस दिन नाईट ड्यूटी हो, ये दुनियाभर की कामों को क्यों निपटाने में लगी रहती हो। आराम करो, रात भर जगती हो। जवाब में वह केवल मुस्कुराती। मुझे उसका मुस्कुराना, अमावस की रात में चाँद के खिलने जैसा लगता था।
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मुझे याद है जब मैं उससे ट्रीटमेंट के लिए हॉस्पिटल आना शुरू किया था, तब भी वह कम ही बोलती थी। ज्यदातर मौकों पे या तो अपनी आंखों से बात करती, तो कभी भौंह इधर से उधर करती तो कभी मुस्कुरा देती।
आज हॉस्पिटल नहीं जाना है, यह जानने के बावजूद भी वह सुबह उठ जाती। पूरे कमरे को साफ करती। हैंगर पर टंगे ज्यदातर कपड़ो को उठा कर वाशरूम में रख आती, उसे साफ करती। दिवाल पर टंगे पेन्टिंग्स व फोटोग्राफ को उतार कर पोछती और फिर से उसे करिन से सजाती। बुक सेल्फ में बुक को फिर से नए तरीके से रखती और जब मैं जागता, देखता किचेन में वह नास्ता तैयार कर रही है। अब तक कमरे की हालत देख कर मैं समझ जाता था कि आज मैडम की नाईट ड्यूटी है। शुरू शुरू में, मैं उसे यह सब करने से मना भी करता था। पर धीरे धीरे लगने लगा कि उसने अपनी खुशी को इतने छोटे छोटे कामों में ही ढूढ़ा है, तो उसे करने देना चाहिए। सप्ताह में कमोबेस तीन दिन उसकी नाईट ड्यूटी हुआ करती और जब भी नाईट ड्यूटी होती वह अपना दिन ऐसे ही बिताती। और जब हम सुबहे-सुबहे नाईट ड्यूटी से लौट रहे होते, वह बेहद उत्साह में एक फ़ोटो क्लिक करती और इंस्टाग्राम पोस्ट बनाती। इस तरह हरेक नाईट शिफ्ट को वह यादगार बना लेना चाहती थी।
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हिमाक्षी को उन फोटोग्राफ्स से विशेष लगाव था, जिसे मैंने क्लिक किया होता। हमारे फ्लैट की दीवारों पे कई फोटोग्राफ्स लगे थे, जिसे मैंने अपनी अलग अलग ट्रिप के दौरान क्लिक किया था। हाँ, जब कभी मैं उसके नाईट ड्यूटी वाले दिन थोड़ा पहले जग जाता, चुपचाप देखता जाता कि वह क्या क्या करती है। मुझे ऐसा लगता था कि उसे काम करता हुआ देखना मेरे लिए मेडिटेशन जैसा है। बड़ी ही देर तक वह किसी फोटोग्राफ को निहारती रहती। बार बार उसे पोछती। और जब उसके बालों का एक लट उसकी आँखों के बगल से झांकने लग जाता तब उसे एहसास होता कि कब से वह तस्वीर को निहारे जा रहा है। और यह सब, कमरे के एक कोने से अपनी उपस्थिति का एहसास कराए बगैर मैं चुपचाप देखता रहता। हमारे बेड रूम में मैंने केवल उसकी ही तस्वीरों को लगा रखा था। इस बात पे वह खूब लड़ी भी थी। पर अंततः मैं जीत गया था और उसे इस बात के लिए राजी करने में कामयाब हुआ था कि बेड रूम में उसकी ही तस्वीर लगी रहेगी। ऐसा करते हुए मैंने तर्क दिया था कि जब भी मैं उसे देखता हूँ मुझे लगता है कि मैं खुद को देख रहा हूँ। जबकि थक हार कर हॉस्पिटल से वह शाम को घर लौटती, खाना खाने और एकलम्बी बातचीत के बाद, उबासी के पलों में जब मैं उसे अपनी बाहों में भर लेता, मेरी बाँहों में दांत गड़ाते हुए वह कहती "पता है, मैं अपनी तस्वीरों में कभी होती ही नहीं हूं। मुझे नहीं पता कि इतने तल्लीनता से तुम मेरी फ़ोटो क्यों क्लिक करते रहते हो। जब भी मैं तुम्हारे कैमरे की ओर देखती हूँ, मुझे लगता है तुम मुझमें उतर रहे हो और हौले हौले मेरा पूरा बदन तुम्हारा हो जाता है"
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तब उसके HOD डॉक्टर राघवन हुआ करते थे। नॉर्थ-ईस्ट इंडिया में एक साउथ इंडियन डॉक्टर। उतने ही उदार और दोस्ताना स्वभाव से भरे हुए। जब शुरू शुरू में मैं हिमाक्षी के साथ हॉस्पिटल आने जाने लगा था तब भी जब सब मुझे बड़ी ही शसंकित निगाह से देखा करते, डॉक्टर राघवन की नजर मुझपे ऐसे मुस्कुराते हुए ही पड़ती जैसे वे मुझे जानते हो। बाद में जब मैं नाईट ड्यूटी पर भी हिमाक्षी के साथ आने लगा था तब शायद डॉक्टर राघवन ने हिमाक्षी से मेरे बारे में एक बार पूछा था। हालांकि रोज रोज जब मैं नास्ता या लंच देने हॉस्पिटल आया करता, तब भी उन्होंने कभी नहीं पूछा। तब हिमाक्षी ने राघवन को क्या बताया था, मैंने उससे कभी नहीं पूछा। नाईट ड्यूटी के दौरान हम दोनों इमरजेंसी डिपार्टमेंट में बैठे रहते, हमें कोई टोकता नहीं था।
सुबह फ्रेश होकर हिमाक्षी हॉस्पिटल आ जाती और मैं आराम से उठता, नास्ता तैयार करता और फिर हॉस्पिटल की ओर निकल जाता। उसे नास्ता देता और फिर वापस फ्लैट पर आ जाता। कुछ काम करता। मसलन कभी लिखने बैठ जाता तो कभी कोई पेंटिंग्स बनाने में लग जाता। तो कभी मूड होता कुछ नया बनाने को फिर किचेन में लगा रहता कोई नई डिश तैयार करने में। और कभी कभार तो ऐसा भी होता कि नयी डिश बनाने के चक्कर में मैं काफी लेट हो जाता। जब भी हॉस्पिटल लेट से पहुंचता, हिमाक्षी मुस्कुराती और कहती "आज जरूर कुछ नया बनाया होगा तुमने।"
रेगुलर फ़ूड के मुकाबले उसका आकर्षण नयी डिश के प्रति ज्यादा था। मैं देखता था कि जब भी उसकी नाईट ड्यूटी होती, शाम को वह मुझे किचेन में घुसने तक नहीं देती। लगी रहती। क्या बनाया है, कोई मदद चाहिए, कुछ भी मैं पूछता, बिना जवाब दिए लगी रहती। बस तब केवल मुझे मना करने के लिए बोलती कि अंदर मत आओ। तो मुझे भी तब पता चलता कि आखिर उसने बनाया क्या है जब नाईट ड्यूटी वाली रात हम हॉस्पिटल पहुंचते और देर रात को वह अपना टिफिन खोलती। फिर पूरे सूने इमरजेंसी डिपार्टमेंट में उसके खाने की खुश्बू फैल जाती। हॉस्पिटल में दवाओं व अन्य चीज़ों की मिक्स खुश्बू हुआ करती है, और जब उन खुश्बुओं में हिमाक्षी के खाने की खुश्बू मिक्स होती, मेरा मन होता कि मैं उन खुश्बुओं को अपनी सांसों में कैद कर लूं। फिर जब मैं एक लंबी सांस अंदर खींचता तो मेरी ओर देखती हुई हिमाक्षी अपनी भौंह को ऊपर नीचे करती। मैं समझ जाता कि पूछ रही है खाना कैसा बना है??
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