कोई अपने दरवाजे से बाहर निकलता है फिर बाहर की दुनिया शुरू होती है।अनन्त दुनिया।और कोई बाहर निकल कर बहुत दूर जा सकता है।बहुत दूर।
पर क्या हर बार बाहर निकलनेे के बाद लौट आना ही किसी की नियति होती है?
शाम को घर लौटते हुए नायिका अक्सर यही सोचती है।इतने बड़े शहर में कहीं उसका घर है।घर में एक छोटा सा उसका कमरा है।और कमरे में बहुत सी ऐसी चीज़ें है जो उसने एक-एक कर जुटाए है।एक घड़ी है जो निरंतर टिक-टिक करता हुआ कैलेंडर के दिन को महीनों और फिर सालों में बदलता जाता है।पर बाहर सबकुछ वैसा ही है।कुछ किताबों के दाहिने तरफ टेबल के किनारें एक लैम्प है जो नायिका के किसी सपने का एक कैरेक्टर भर लगता है।एक पंखा है जो छत से लटका नायिका की ओर झाँकता हुआ रोज नायिका से बातें करता रहता है।और कमरे के दूसरी गेट से सटा, जो बालकनी की ओर खुलती है, कुछ गमले रखे है जिसमें लगी फूल की तनाएँ बालकनी की ओर फैली है।
कमरे में एक तरफ बेड के ठीक सामने कुछ फ़ोटो लगे है।पहली फ़ोटो अंजुना बिच की है, जिसके किनारे कोई लड़की ठेहुने पर गाल टिकाए बैठी अनंत की ओर देख रही है, अनंत जहाँ समुद्र का किनारा आकाश से मिलता होगा।।दूसरी फ़ोटो, सुनसान रेगिस्तान में तारों की ओर आसमान में झाँकती एक लड़की की है।तीसरी फ़ोटो, घने वनों के बीच से गुजरती पेरियार नदी (केरला) की है और अंतिम फ़ोटो डल झील की है जो पूरी तरह जमी हुई है।
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Photo - ACP |
ये चारों फ़ोटो नायिका के सपनों का एक छोटा सा फ्रेम है।जब वह सोने जाती है,नींद लगने तक लेटी-लेटी इन तस्वीरों को निहारती रहती है।और जब जगती है तो भी सबसे पहले उसकी नजर इन तस्वीरों पे जाती है।
वह कल्पना कर रही है कि एक दिन वह इन जगहों पे होगी।कोई एक दिन ऐसा आयेगा जब वह अपने कमरे से निकल बाहर चली जायेगी।पर वह सोच रही है कि बाहर वह कितनी दूर तक जाएगी।बाहर का तो कोई अंत ही नहीं है।कोई बाहर जाएगा भी तो कितनी दूर जा सकेगा।लौटकर वह अपनी नियति के पास ही आएगा।फिर ये नियति क्या है? कहीं अपने इस कमरे तक लौट आना ही उसकी नियति तो नहीं? क्या पहले से सबकुछ तय है? तो फिर उसका जाना भी तय रहा होगा और यह भी तय रहा होगा कि वह कहाँ से लौटकर वापस आ जायेगी।फिर वह गयी ही क्यों थी?यानी उसका जाना भी पहले से ही तय था।
नायिका कभी-कभी उनींदी आंखों से बहुत कुछ ऐसा सोचती है जो उलझाव मात्र है।वह सोचती रहती है जबतक कि नींद ना आ जाये।वह अब भी सोच रही है कि किसी का कुछ करना, कहीं जाना क्या पहले से तय होता है? और अगर कोई बाहर निकले ही न तो?
मसलन नायिका लिख रही है, तो क्या कोई कह सकता है उसका लिखना पहले से ही तय था।और अगर वह लिखती हुई रुक जाए? कलम को एक ओर रख दे? तो भी क्या कोई ये कहेगा कि ये भी पहले से तय था।
नहीं, कोई बाहर निकल कर बहुत दूर तक जा सकता है।बाहर की कोई सीमा नहीं है, इसलिए नायिका लौटकर अपने इस कमरे में आये ही यह जरूरी नहीं।ये चंद तस्वीरें तो महज उसके सपनों की रेखाचित्र है जो कभी बढ़ता हुआ एक संपूर्ण ग्लोब की तरह हो जायेगा।किसी दिन यूँ ही वह अपने कमरे से निकल जायेगी, जब सारी धरती अपनी होगी।और सारा आकाश खुला होगा उड़ने को।
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