दार जी को कहानी सुनाने का बड़ा शौक था।इसलिए वे बोलते जाते।इस बात से अनभिज्ञ कि कोई उन्हें सुन भी रहा है या नहीं।जब घंटों वे खेत में काम किया करते और मैं उनके लिए पनपियाई लेकर जाता तब भी वे बोलते हुए मिलते।किसी को कुछ सुना रहे होते।मेरे लिए वहां कोई नहीं होता पर दार जी लगातार किसी से बात कर रहे होते।मसलन तामे जा रहे खेत की मिट्टी से या पास की झाड़ियों से।मैं भी वहाँ बैठा, उन्हें सुनता रहता।उनके खा लेने पर भी।पर दार जी को कभी फर्क ही नहीं पड़ा किसी के होने और न होने से।वे बस किसी काल की कोई कथा बोलते जाते।कोई आधा वाक्य, कोई आधी कविता या कोई छूटी हुई कहानी।
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