आसमान बहुत बड़ा होता है पर हम उतना ही देख पाते है जितना कि हमारी दो नजरे देखने का प्रयास करती है।नायक के सामने सारा आकाश है पर वह देख रहा है, एक चाँद को और उसके आसपास एक भी तारे को नहीं।
कुल मिलाकर आसमान के एक छोटे से हिस्से को जिसमें चाँद के करीब कोई एक भी तारा नहीं है।चाँद पूरा है आज, एकदम से साफ आसमान में।आसमान उतना ही साफ और सुंदर दिख रहा है जैसे किसी न अभी अभी धोकर चमकाया हो जैसे।
नायक सोच रहा है कि यही चाँद नायिका के छत से भी दिखता होगा? और क्या नायिका भी इतना ही आसमान देखती होगी? एक चाँद को और कुछ आसमान को।
बीते कई दिनों से नायक की बात नायिका से नहीं हुई है।कोई एक भी अपनी-अपनी व्यस्तता से समय निकाल कर दूसरे को कॉल नहीं कर पाए है।इधर नायक को रोज देर रात को ही ध्यान आता है कि वह आज भी नायिका से बात नहीं कर पाया है।और फिर उसका नायिका से बातचीत करने की तलब अचानक से बढ़ जाती है।
वह चाँद के बड़े से आकर को देखता है जिसपे नायिका सर रखकर सोयी हुई है।गहरी नींद में।उसके बाल कुछ इस तरह बिखरे है कि उसका चेहरा पूरी तरह नहीं दिख रहा।हाँ, उसकी सांसों की गति से नाक के पास बिखरी बालों में कुछ हरकत हो रही है।नायक जानता है कि नायिका को अपने बिखरे बाल बिल्कुल पसंद नहीं।इसलिए वह सोचता है कि चाँद पर चला जाये और उसके बालों को समेट कर सुंदर सा जुड़ा बना दे।पर वह चाहता है कि इससे पहले वह नायिका को जगा दे कि वह देख पाए कि उसके बाल कैसे बिखरे है और ये कितने खूबसूरत लग रहे है।
Photo - ACP |
नायक सोचता है कि नायिका खुद को इस स्थिति में देख क्या सोचेगी।क्या झट से वह अपने बाल संवार लेगी।और इतने धीरे से सांस लेने लगेगी कि बालों में कोई हरकत ही न हो।नायक चाहता है कि वह नायिका को दिखाए कि वह सोते हुए कितनी क्यूट लगती है।वह सोच रहा है कि नायिका को वह कैसे जगाए कि वह बिना जागे ही खुद को सोये हुए देख सके।
नींद सबकी अपनी-अपनी होती है।कोई किसी के नींद में उसके सहमती से ही आ-जा सकता है।नायक नायिका के नींद द्वार को खटखटाता है।वह करवट बदल लेती है।नायक फिर से आहट करता है।उधर नायिका आँख खोले बगैर ही कहती है "तुम आते हुए दरवाजा मत खटखटाया करो।प्रवेश तो तुम्हारा हो ही चुका है हर जगह।और फिर तब तो तुमने आते हुए नहीं पूछा था"।
नायिका उघाई हुई सी इतनी लंबी बोल जाती है।नायक कुछ बोले बगैर चुपके से नायिका के नींद द्वार में सांसे फंसा अंदर आ जाता है।वह आकर नायिका के बगल में लेट जाता है और उसके बिखरे बालों को एक तरफ करते हुए बोलता है "सुनो न!" जवाब में नायिका खिसक कर थोड़ा और करीब आ जाती है।करीब, इतने कि एक-दूसरे की सांसो को गिना जा सके।
नायक कहता है "सुनो न!"
नायिका सुनती है "हउँ.."
नायक कहता है "चलो न, चाँद की छत पे बैठते है"।
नायिका सुनती है "रात अभी काफी बाकी है"
नायक कहता है "ऐ, जागो न!"
नायिका सुनती है "एक साथ होना कितना सुखद है"
नायिका सुनती है "हउँ.."
नायक कहता है "चलो न, चाँद की छत पे बैठते है"।
नायिका सुनती है "रात अभी काफी बाकी है"
नायक कहता है "ऐ, जागो न!"
नायिका सुनती है "एक साथ होना कितना सुखद है"
रात्रि का यह अंतिम पहर है।सूरज दूर से दौड़ता आता ही होगा और चाँद कुछ ही पलों में इतनी दूर चला जायेगा कि अगली रात को वह फिर से फलक पे वापस आ सके।नायक सोच रहा है कि सुबह होते ही वह नायिका को कॉल करेगा।
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