"हरेक दफे जब आती हो तुम, लगता है तुम्हारा सौंदर्य पहले से और निखर गया है।कितना भी आंखों में बसा लूँ तुम्हें, अगली बार तुम उतनी ही अलग और नयी दिखती हो।"
"अच्छा।तो क्या इसलिए ही जब भी आती हूँ, यूँ ही निहारते रहते हो।कुछ बोलते नहीं।"
"क्या बोलूँगा मैं।इतना देख लेने भर से जी कहाँ भरता है मेरा।"
"तो आंखों में भर लिया करो मुझे।"
"तुम तो आंखों में भी नहीं समाती।"
"और तुम कौन से समा जाते हो।"
Photo - Vergel tolentino |
नायिका नायक के हाथों पे कोई अज्ञात सी आकृति बना रही है।जो हर चौथे दिन मिट जाती है ताकि फिर से नायिका उन आकृतियों को नए रूप में गढ़ सके।सहज ही नायिका आगे कहती है-
"और अगर कभी कहीं मैं अचानक से गायब हो गयी तो?"
"तो? क्या!"
"तो क्या! तुम मेरी याद में कविता नहीं लिखोगे?"
"नहीं।मैं कुछ नहीं लिखूंगा।सब छोड़ दूंगा।"
"क्यों! क्यों कुछ नहीं लिखोगे?"
"बस नहीं लिखूँगा।बोल तो दिया।"
"तो क्या करोगे मेरी याद में?"
"कुछ नहीं।बस खुद को भुला दूँगा।"
"लो ये भी कोई बात हुई।"
कहती हुई नायिका ने नायक का हाथ झड़क दिया
"मैं नहीं बनाती कोई आकृति।"
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