"क्या दुनिया की सारी नायिकाओं का भाई एक जैसा होता है।अपनी बहन पे नजर रखने वाला।उसके एक-एक पल का हिसाब रखने वाला।कहाँ जा रही है, किससे मिल रही है? सब पर तिरछी नजर रखने वाला।और वक्त बे वक्त अपनी बहन को डांट देने वाला"।
नायक अपनी नायिका के भाई के बारे में सोच रहा है।जो उसकी कहानी में किसी विलेन की तरह है।पर जिसमें नायक अब भी बदलाव की संभावना देख रहा है।वह उन तमाम संभावनाओं पे विचार कर रहा है जिससे नायिका के भाई को नायिका के स्वतंत्रता की कीमत समझाया जा सके।उसे बता सके कि देखो नायिका तुम्हारी बंधन से बाहर कितनी उन्मुक्त है, कितनी खुश है।
इधर नायिका बीमार है और उधर नायक व्हाट्सएप और फ़ोन कर लेने भर से संतुष्ट नहीं हो रहा।नायक को लगता है हालचाल भी भला क्या फ़ोन पे जाना जा सकता है, ऐसी स्थिति में तो पास से ही कुछ जाना जा सकता है।इसलिए ही जब नायिका फ़ोन पर कहती भी है 'मैं अब ठीक हूँ' तो नायक पलट कर कहता है कि 'तुम्हारी आवाज ही बता रही है कि तुम स्वस्थ नहीं हो'।
नायक बात करते हुए नायिका को स्वास्थ्य संबंधी एक-दो टिप्स देता है।वह घंटो विकिपीडिया पे माथा खपाता है और नायिका को लगे रोग का पूरा इतिहास, भूगोल जान लेने का प्रयास करता है।पर फिर भी उसे मलाल है कि काश वो डॉक्टर होता।फिर क्या वो रोग को एक पल भी ठहरने देता! न, इतनी मजाल थी रोग की।
कोई छोटी से छोटी अस्वस्थतता हो या अचानक लग आयी कोई रोग, किसी मेहमान की तरह होती है।ऐसे अवसर पर आप अपने संबंधों की घनिष्टता को और ज्यादा करीब से महसूस करते है।मम्मी पास ही बैठी होती है।पापा भी लगातार चिंतित होते है।दोस्त-यार भी व्हाट्सएप कर ही लेते है।आसपास से संबंध अच्छे है तो वे भी आकर खबर ले ही लेते है।और अगर आप ज्यादा अल्हड़ है तो पड़ोस के बच्चे पास ही बैठे रहते है।
नायिका बीमार है।तीन दिन से।वह कॉलेज आ नहीं सकती और नायक नायिका के घर जा नहीं सकता।ऐसे में दोनों का न मिल पाना एक-दूसरे के लिए बेचैनी है।नायक नायिका से कहता है "मैं आ रहा हूँ मिलने।तुम पास वाली पार्क में आ जाना"। नायिका नायक के मिलने की अधिरता को समझती है पर फिर भी इस हालत में बाहर जाना न जाने कितने प्रश्नों का सामना करना होगा।मम्मी तो मान भी जाएगी पर भईया तो खा ही जायेंगे।वे तो जैसे घर पर बैठे ही है नजर रखने के लिए।
नायिका अपनी असमर्थतता जाहिर करती है "कैसे आ पाऊँगी।102 डिग्री बुखार है"। नायक सुनता है।पर वह नायिका की बात कम सुनता है और ज्यादा उसे वही सुनाई देता है जो वह अभी सुनना चाहता है कि 'ठीक है आ जाओ, मिलते है'। पर नायिका के न आ पाने की असमर्थता से ज्यादा वह मिलने की अधिरता में है। और यह बात नायिका भी समझती है। वह तो खुद भी चाहती है कि चली जाऊँ उड़ कर। पर!
इधर नायक को लगता है रोग का टिके रहना किसी अपने के पास न होने के कारण संभव हो पाता है।इसलिए वह चाहता है कि इस अवस्था में नायिका के पास रहे।उसकी सर को सहलाता रहे।उसे ढ़ेर सारी मुल्ला नसरुद्दीन वाला जोक सुनाये।पर सच्चाई यही है कि इस हालात में वे मिल नहीं सकते।
नायक कुछ सोचता है और फिर नायिका से कहता है 'ठीक है।लेकिन कभी तुम मेरे पास बीमार क्यों नहीं पड़ जाती'।
नायक की बातें सुन नायिका मुस्कुराती है।
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