बहुत बार समुद्र के
अलग-अलग किनारों पे
मैं बैठा हूँ, और हरेक दफ़े
समुद्र मुझे उतना ही अशांत और उतावला दिखा है,
जैसे अपनी प्रकृति के अनुकूल
अपनी धारा में किसी को आने नहीं देना चाह रहा हो।
मैं देखता जाता हूँ
किसी नाविक को,
और उसके नाव को
जो निरन्तर संघर्ष करता हुआ
समुद्र की बाहों में समा जाना चाहता है,
बहुत दूर,
जहां तक मेरी नजरें देख सकती है
वहाँ एक चट्टान है,
बड़ी और काली चट्टान,
उतावला समुद्र ये भी नहीं समझता
और वह उससे लगातार टकराता हुआ
चट्टानों को भी अपनी सिमा से खदेड़ देना चाहता है।
बहुत बार जब भी मैं बैठा हूँ
समुद्र किनारे, यही सोचता हूँ
कि समुद्र इतना अशांत क्यों हैं
जबकि हर कोई तो
समुद्र किनारे
आकर शांति पाना चाहता है।
#ACP
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