और देर सुबह जब मैं जगता
पाता कि, अपने हिस्से का बिस्तर सही कर
मेरे माथे तक कम्बल खीच
वह बिस्तर पर नहीं है।
मैं आंख मिजता हुआ बिस्तर पर उठ बैठता
और कुछ देर इधर उधर देखने के बाद भी
जब मेरी नजरें उसे नहीं ढूंढ़ पाती
तो मैं आवाज लगाने लगता
"मोना....वो मोना...
....कहाँ चली गयी?"
और जब कमरों से गूंजती मेरी आवाजें
उसकी कानों से टकराती,
वह वहीं बाथरूम से कहती
"आयी...बस एक मिनट..."
उसकी आवाज मेरी कानों में
किसी सरगम सी पड़ती, और
सहसा ही मेरा ध्यान, कमरे की ओर चला जाता
हफ़्तों से बिखड़ी
किताबें, कपड़ें, और भी न जाने क्या क्या
सब किसी न किसी जगह पर सजी होती
भले ही उन्हें उनकी जगह पर
नहीं रखा गया होता
पर वे सब कहीं न कहीं ऐसे रखी होती
जैसे वहीँ उसकी उपयुक्त जगह थी
मैं कहता उससे,
जब बाथरूम से बालों में
तौलिया लपेटे, वह बाहर आती
"क्यों करती हो इतना,
क्या जरूरी थी कमरा साफ करने की?"
वह मुस्कुराती और
बिना कुछ बोले ही छत की ओर चली जाती।
मैं एकटक
उसे जाते हुए देखता रह जाता।
बहुत दिन बीत गए
उसे गए हुए,
बहुत दिन, और
तब से यह कमरा और मैं
उसकी राह देख रहे है
जैसे आज न कल
वो फिर लौट आएगी
और मेरी बिखरी दुनिया के
हरेक तखे को फिर से संवार देगी |
हरेक तखे को फिर से संवार देगी |
#ACP
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