【माँ घर के अंदर ही रहती है
बाहर, सिर्फ माँ की यादें होती है।】
कितनी-कितनी बार
मैंने कहा है माँ से
बाहर चलने को,
पर हर बार माँ टाल दिया करती
कहती,
"कितना काम पड़ा है।"
हमेशा माँ ऐसा ही कहती थी
मैं जिद्द करता फिर भी,
वह यही कहती।
माँ घर के अंदर ही रहती
बाहर, सिर्फ माँ की यादें होती है।
दिनभर से लेकर देर रात तक
माँ घर भर में ही
इधर से उधर भागती रहती
और अगले दिन
तड़के सुबह ही जग कर
घर बुहारने लग जाती।
घर के छोटे से बड़े
बुहारने से लेकर पुताई तक का काम
मां ही करती थी
कौन से खेत में
क्या बुआई करनी है
और कटाई के वक्त तक मे भी
सबपर माँ ही ध्यान देती।
पर कभी भी
उन्होंने चारदीवारों से बाहर कदम नहीं रखा।
माँ ने अपनी दुनिया चारदीवारी में ही बसा लिया था
उन्हें देख लगता था,
मेरी बाहर की दुनिया भी कितनी छोटी है
पर उन दीवारों के बीच रहते हुए ही
माँ ने मुझे बाहर के तौर तरीके सिखाए
चारदीवारों से ऊपर की आसमां में
उड़ने का हौसला दिया और
ढ़ेर सारे सपने दिए।
जिनपर सवार हो
मैं बहुत दूर निकल आया
इतनी दूर कि,
माँ की उन चारदीवार को
समय रहते मैं ढाह ही नहीं पाया।
आज सबकुछ है मेरे पास
पर माँ नहीं,
जो इन चारदीवारों से बाहर
मेरे साथ चल सके,
मुझे मार्केट में
सब्जी ख़रीदना सीखा सके,
सड़क चलते मुझे डांट सके
कि मैं खरीदारी में कितना बुरा हूँ
और मुझे आदेश देते हुए बोले कि
कल से मैं ही जाऊंगी सब्जी लेने।
पर आज माँ नहीं है
जो मुझे ऐसा कहें, और
उनके ऐसा कहने पर
मैं दुहरा सकूँ कि
मेरे लिए बाजार से वह मुरी-कचरी जरूर लेती आये।
आज माँ होती तो
मैं उन्हें उनकी
किसी पसंदीदा जगह घुमाने ले जाता
जहां वह अक्सर जाना चाहती थी
उन चारदीवारों को लांघकर।
पर आज माँ नहीं है
आज चारदीवारों से बाहर
माँ की सिर्फ यादें है
माँ खुद नहीं।
#ACP
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