भाग - ३ ( इतने बड़े जहाँ में लोग अपना कितना सारा वक़्त छोटे से कमरे में बिता देते है।) कुछ देर उसने पर्ची को घूरा , फिर मेरी ओर पर्ची बढ़ाते हुए बोली " तुमने कल ही पर्ची बनवाया था ?” मैंने कुछ नहीं बोला बस उसे फ़ॉलो करता हुआ उसके केबिन तक आ गया। एक बड़े से लम्बे - कम चौड़े रूम को दो असमान भागों में बाँटा गया था। बड़े हिस्सें में ट्रीटमेंट किए जाते जबकि छोटे वाले हिस्से में डॉक्टर के बैठने के लिए मेज़ - कुर्सी रखी हुई थी जो गेट से लगा हुआ था। डॉक्टर कुर्सी पे बैठ गयी , फिर उसने एक रजिस्टर निकाला और कुछ देर तक देखती रही। तब तक मैं इधर - उधर देखने लगा , अंदर कोई और भी मरीज़ था , उसकी केवल आवाज़ मैं सुन पा रहा था। एक छोटे से दीवाल से कमरें को दो भागों में बाँटा गया था और जिधर से अंदर जाने का रास्ता था , डॉक्टर वहीं बैठी हुई थी। मेरी नज़र इधर - उधर होती हुई दीवालों पर लगे पोस्टरों पे टिक गयी। पोस्टरों में दाँतों के ...
चप्पा-चप्पा...मंजर-मंजर...