बहुत से लोगों को मैं जानता हूँ
और उनमें बहुत से लोग
मुझे भी जानते है
फिर भी मैं
कभी कभी अकेला बच जाया करता हूँ
मेरे पास कोई नही होता
और कुछ लोग पास होकर भी बहुत दूर ही होते है।
मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूँ
जिनसे मैं चैट कर सकता हूँ
फेसबुक पे मेरे छह सौ दोस्त है
फिर भी कभी कभी
मैं तन्हा बच जाया करता हूँ।
मैं चैट को ऑन कर देता हूँ
और घण्टो उनमें झांकता रहता हूँ
मैं तय नहीं कर पाता कि
मैं किसको मैसेज करूँ
और उधर से भी किसी का मैसेज नही आता।
मेरे कांटेक्ट लिस्ट में भी बहुत से नंबर सेव है
मैं उन गलियों में भी घूम आता हूँ
और
अंत मे उकता कर मोबाइल एक साइड में रख देता हूँ।
पर तन्हाई मुझे कचोटती रहती है
मैं समझ नही पा रहा होता हूँ कि
क्या करूँ,
फिर मैं मोबाइल उठा लेता हूँ
और सोचता हूँ कि माँ को कॉल करूँ
माँ,एकमात्र है जो मुझे समझ सकती है
इसलिए मैं उनको भी कॉल नही करूँगा
वे भाँप जाएंगी कि
मैं परेशां-परेशां सा हूँ
और मुझसे ढ़ेरो सवाल पूछने लगेगी
मैं इस स्तिथि में हूँ नहीं कि
उनके सवालों का जवाब दे सकूँ।
फिर मैं सोचता हूँ कि कहीं बाहर चला जाऊं
पर अंदर की तन्हाई तो बाहर भी सन्नाटा ही लाएगी
इसलिए मैं घर मे ही बैठा रह जाता हूँ।
अब मैंने तय किया है कि
मैं किसी से बात नही करूँगा
परन्तु यह स्थिति मुश्किल होगी,
इसलिए इस बार मैं कलम और कागज उठा लेता हूं।
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