वह राधिका थीं और अक्सर हम उसके नाम के पीछे आप्टे लगा दिया करते।यानी राधिका आप्टे।वह बस बिना कुछ बोले तिरछी नजरों से देख लिया करती और शायद इसी वक्त वह अधिक बोल रही होती।हमने कभी उसे बोलते हुए नहीं सुना;कभी नहीं।वह क्लास में नई थीं तब भी नहीं और आज भी नहीं।चुपचाप क्लास के निर्धारित समय पर आती और तय समय पर चली जाती।सभी कहते कि बड़ी ही एट्यूटूड हैं उसमें।कभी किसी से बात ही नहीं करती।पर शायद हममें भी एट्यूटूड था कि हम उसके पास कभी नहीं गए।वह क्लास में अक्सर पीछे बैठा करती।न शिक्षक कुछ उससे पूछते और ना ही कभी वह किसी प्रश्न के जवाब में खूद बोला करती।समय बीतता गया,धीरे धीरे सभी ने उसकी चुप्पी को कई नाम दे दिए।वह घमंडी हैं,एट्यूटूड वाली हैं,सुंदर हैं इसलिए बात नहीं करती जैसी कई विशेषताओं को उसकी चुप्पी को सबने अपनी-अपनी अभिव्यक्ति दे दी।और अंततः जब वह चुप ही रहती तो सभी उसे राधिका आप्टे बुलाने लगते और तब उसकी आँखें सबसे ज्यादा बोलती।मैं तब उसकी आँखों में झाकता।लगता जैसे उनमें उतर जाउ और उसकी आँखों से उसकी चुप्पी का राज पूछ लूँ।
समय बीतता गया और मैं उसकी आँखों की गहराई में उतरता गया परन्तु उसकी चुप्पी का राज नहीं समझ सका।क्लास में अब भी लड़के उसे लेकर अप्रत्यक्षत: मजाक किया करते;मुझसे अब यह देखा नहीं जाता।और कभी कभी तो मैं इसका खुलकर विरोध करता।और तब जब उसकी आँखों में झाकता तो वह कुछ नहीं बोल रही होती।उसकी आँखें तब एक दम शांत होती।लगता इस शांत झील में उतरना सबसे आसान हैं।और मैं उनमें कुद पड़ता और घंटों तैरा करता।लड़को के लिए मजाक का विषय अब केवल सिर्फ वह नहीं रह गई थीं।अब राधिका आप्टे के साथ मेरा भी नाम जोर दिया गया था।मैं खुश था इसलिए नहीं कि राधिका आप्टे के साथ मेरा नाम जोर दिया गया था बल्कि इसलिए कि राधिका के साथ मेरा नाम जुर गया था।उसकी आँखों में झाकते हुए कभी कभी लगता कि वह भी मेरी आँखों में उतरना चाह रही हैं।
फिर मैं उससे कभी कभी हैलो कह देता।वह मुस्कुरा देती पर कुछ न बोलती।
मैंने 'दिल से' देखी थीं।
फिर मैं उससे कभी कभी हैलो कह देता।वह मुस्कुरा देती पर कुछ न बोलती।
मैंने 'दिल से' देखी थीं।
_ _ _सुनिए_ _ _ आपका नाम क्या हैं_ _ _।
वह कुछ नहीं बोली।कागज के एक टुकड़े पर बस पेन से स्केच बनाती रही.
_ _ _मेरा नाम अयान हैं।आपके साथ पढ़ता हूँ।आप तो जानती हैं न !!_ _ _बताईए न आपका नाम क्या हैं।चलिए अपनी माँ का नाम ही बता दिजिए_ _।
वह मेरी ओर मुड़ी।खामोश।लगा कुछ बोलेगी।पर एकदम खामोश ।इस बार तो उसकी आँखें भी नहीं बोल रही थीं।
_ _ _छोड़िए।अपनी किसी दोस्त का ही नाम बता दीजिए_ _ ।आप कुछ बोल क्यों नहीं रही।कुछ भी बोलिए न।प्लीज_ _ _।
वह अब भी खामोश।
_ _ _चलिए छोड़िए।कुछ मदद कर सकता हूँ आपकी।बताइए न।जैसे कि इन लड़को को पीटूँ जो आपको राधिका आप्टे बुलाते हैं_ _ बताईए न।कुछ भी कर सकता हूँ_ _।
वह मुस्कुराई।लगा कुछ बोलना चाह रही हैं।पर मुस्कुरा कर ही रह गई।मैं भी हँसने लगा।
_ _ _कहीं ऐसा तो नहीं कि आपने न बोलने की व्रत ले रखी हो_ _ _।
वह केवल मुस्कुरा दिया करती।धीरे धीरे लगने लगा कि वह कुछ छुपा रही हैं।बोलना नहीं चाहती।मैं उसके साथ तो बैठता पर कुछ ज्यादा नहीं बोलता।मैं शायद 'दिल से' का अमरकान्त नहीं था।हमारे बीच एक फासला जगह लेने लगी पर हमारे साथ बैठने की फासलों में कमी नहीं आई।वह अक्सर मेरी ओर मुस्कुरा देती पर मैं नहीं मुस्कुरा पाता।और ना ही ऐसा करने का एक्टिंग कर पाता।
कुछ दिनों बाद वह क्लास में अनुपस्थित रहने लगी।मैंने गौर नहीं किया।परंतु लगातार दो सप्ताह के उसके अनुपस्थिति ने मुझे बेचैन कर दिया।मैंने काफी साहस करके आफिस का दरवाजा खटखटाया।
_ _ _ जी सर।वो_ _वो _ _राधिका पढ़ने नहीं आती आजकल_ _।
वर्ग शिक्षक ने मुझे घुरा।
क्या नाम हैं तुम्हारा?
जी।........अमरकान्त।जी नहीं सर अयान।
उन्होंने फिर से मुझे घुरा।कुछ देर की खामोशी के बाद बोले 'वह हाॅस्पिटल में हैं'।
मैं चौका 'हाॅस्पिटल में हैं'!!क्यों _ _?
वह मेरे ओर ऐसे देख रहे थे मानो मैंने कुछ बड़ी बात पूछ लिया हो।
'किस हाॅस्पिटल में'?
उन्होंने बेरुखी से हाॅस्पिटल का नाम बताया।
मैं तुरंत हाॅस्पिटल पहुँचा।काफी मशक्कत के बाद मैं उसके वार्ड में जा पाया।मैंने डाॅक्टर को विश्वास दिलाया कि मैं राधिका का नजदीकी हूँ तभी मैं अंदर जा पाया।वह अब भी खामोश स्टेचर पर लेटी थीं।उसकी आँखें बंद थीं।सफेद चादर गले तक पसरी हुई थी।हमारे सिवा वहाँ कोई नहीं था।मैंने उसकी हाथों को अपनी हाथ में ले लिया।एक गहरी सिहरन मेरे बदन में दौर गई।मैं उसकी चेहरे को निहारता रहा।थोड़ी देर में डाॅक्टर आईं।वह मेरे हाथ में उसकी हाथ को देख मुस्कुराई।मैंने राधिका का हाथ छोड़ दिया।
मैं तुरंत हाॅस्पिटल पहुँचा।काफी मशक्कत के बाद मैं उसके वार्ड में जा पाया।मैंने डाॅक्टर को विश्वास दिलाया कि मैं राधिका का नजदीकी हूँ तभी मैं अंदर जा पाया।वह अब भी खामोश स्टेचर पर लेटी थीं।उसकी आँखें बंद थीं।सफेद चादर गले तक पसरी हुई थी।हमारे सिवा वहाँ कोई नहीं था।मैंने उसकी हाथों को अपनी हाथ में ले लिया।एक गहरी सिहरन मेरे बदन में दौर गई।मैं उसकी चेहरे को निहारता रहा।थोड़ी देर में डाॅक्टर आईं।वह मेरे हाथ में उसकी हाथ को देख मुस्कुराई।मैंने राधिका का हाथ छोड़ दिया।
'क्या नाम हैं आपका?' उन्होंने वहाँ बैठते हुए पूछा।
'जी अयान'।
वह मुस्कुराई।मुझे लगा मेरे नाम पर मुस्कुरा रही हैं।
'क्या हुआ'
'कुछ नहीं।मैं जानती थीं आप जरुर आओगे'।
'अच्छा।आप कैसे जानती थीं'।
'राधिका ने बताया था'।
'बड़ी बेवफा हैं आपकी राधिका।मुझसे तो कभी बात ही नहीं करती।
डाॅक्टर मुस्कुराई।
'तो कब तक उठ बैठेगी राधिका'।मैंने डाॅक्टर से पूछा।
'महिनो भी लग सकते हैं और साल भी'
'मै समझा नहीं'
'आपको अभी बहुत कुछ समझना हैं।राधिका के सर में एक्सिडेंट से गहरी चोट आई हैं'
'एक्सिडेंट'।मैंने उन्हें बीच में ही टोका।
'हाँ'।इतना कह कर वह मेरे हाथों में एक कागज थमा कर चली गई।जाते-जाते बोल गई राधिका ने दिया है।मैंने राधिका की ओर देखा;गुस्सा भी आया कि मुझसे कभी बात क्यों नहीं की।वह बंद आँखों से धिमा साँस ले रहीं थीं।मैंने उसकी चेहरे पर हाथ फेरा।मन कर रहा था कि उसे एक थप्पड़ जर दूँ,आखिर मुझसे बात न करने की क्या बेरुखी थीं।
मैंने उसकी एक हाथ को पकड़े ही दूसरे हाथ से कागज का टूकड़ा खोला।सिर्फ एक पंक्ति दर्ज थीं वहाँ।नजर घुमी और मेरे हाथ से उसका हाथ छूट गया।आँखों में बाढ़ आ गई।इतनी तेज बाढ़ की अब बच निकलने की कोई तमन्ना न थी।
वह अंतिम लाईन थीं-
वह अंतिम लाईन थीं-
_ _ _माफ करना।मैं बोल नहीं सकती_ _ _
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