जब हमें एक भारतीय ने लताड़ा
तकरीबन छह घंटे के सफर के बाद हम रात के साढ़े नौ बजे थीम्फू में उतरे थे।उतरने के तुरंत बाद ही हमारे सामने कई प्राथमिक चुनौती थी।मसलन होटल ढूंढ़ना, ठंडी के कपड़े खरीदना,और फिर खाना खाना।
ऐसा लग रहा था सब कहीं एक जगह ही हो जाये तो कितना अच्छा हो।पर ऐसा नहीं ही हुआ।हमें बस स्टैंड से होटल ढूंढ़ने तक में ही लगभग आधे घंटे से ज्यादा लग गए।होटल ढूंढ़ने के दौरान हमने एक भारतीय का सहारा लेना चाहा पर उन्होंने हमें यह कह कर लताड़ दिया कि हमने Make My Trip का इस्तेमाल क्यों नहीं किया? उन्होंने हमें साफ कह दिया कि इस समय होटल नहीं मिलेगा। हमारे पास बहस करने का टाइम नहीं था।
दरअसल भूटान में एक नियम है कि रात के दस बजे के बाद दुकान वैगरह बंद कर दिए जाते है।बाहर घूमना भी सेफ नहीं होता क्योंकि उस वक्त ड्रग एडिक्टेड युवा सड़को पर अपनी गुंडागर्दी दिखा सकते है।
फाइनली हमें एक होटल मिल गया और हमनें वह भी न मिले इस ख्याल से अन्य एक दो होटल जाने के बाद ही उसे बुक कर लिया।इतनी ठंड थी कि पानी छूने का इरादा नहीं हो रहा था।फिर भी फ्रेश होकर हम बाहर आ गए।थीम्फू की संरचना किसी यूरोपीय फ़िल्म जैसी लग रही थी।
अब हमें खाने के लिए रेस्टोरेंट ढूंढ़ना था।और हम जिस किसी रेस्टोरेंट में जाते, जवाब मिलता "क्लोज"।कई बार "क्लोज" सुनने के बाद हमारी भूख और बढ़ गयी थी।हम थीम्फू की सड़कों पर इधर से उधर भागते रहे।अब कहीं खाने को मिलेगा इसका आसार कम ही था।
अंत में हमने एक रेस्टोरेंट के मैम से कुछ रिक्वेस्ट किया।महिलाएं हमारी भावनाओं को जल्दी ही समझ जाती है।उन्होंने क्लोज का बाहर लोगों लगने के बाद भी हमारे लिए कुछ भोजन तैयार करवाने को मान गई।उनके खुद के बेटे ने भोजन बनने में सहयोग किया।बाहर ज्यादातर जगहों पर भारतीय होने का फायदा होता है।लोग हमारे प्रति कुछ ज्यादा उदार होते है।
हमनें उनकी संसाधन के अनुरूप ही आर्डर दिया।मंगवाए गए वेज बिरयानी में अंडा भी मिक्स था।जब से यात्रा करने लगा हूँ, मेरे वेजिटेरियन होने को समय-समय पर चुनौती मिलता रहा है जिसके प्रति मैं बेहद सकारात्मक रहा हूँ।यात्रा में ही मेरी यह समझ विकसित हुई है कि जीवित रहने के लिए कुछ भी खाया जा सकता है।वेजेटेरियन होना आपके स्वंतन्त्रता का लिमिटेसन है।
फाइनली हम खाना खाकर ठिठुरते हुए होटल आ गए।उस मैम ने हमें बता दिया था कि कल हम ठंड के कपड़े कहाँ से खरीद सकते है।बस के सफर ने वैसे भी हमें थका दिया था,कंबल में घुसते ही हमें नींद आ गयी।
#ACP_in_Bhutan
तकरीबन छह घंटे के सफर के बाद हम रात के साढ़े नौ बजे थीम्फू में उतरे थे।उतरने के तुरंत बाद ही हमारे सामने कई प्राथमिक चुनौती थी।मसलन होटल ढूंढ़ना, ठंडी के कपड़े खरीदना,और फिर खाना खाना।
ऐसा लग रहा था सब कहीं एक जगह ही हो जाये तो कितना अच्छा हो।पर ऐसा नहीं ही हुआ।हमें बस स्टैंड से होटल ढूंढ़ने तक में ही लगभग आधे घंटे से ज्यादा लग गए।होटल ढूंढ़ने के दौरान हमने एक भारतीय का सहारा लेना चाहा पर उन्होंने हमें यह कह कर लताड़ दिया कि हमने Make My Trip का इस्तेमाल क्यों नहीं किया? उन्होंने हमें साफ कह दिया कि इस समय होटल नहीं मिलेगा। हमारे पास बहस करने का टाइम नहीं था।
दरअसल भूटान में एक नियम है कि रात के दस बजे के बाद दुकान वैगरह बंद कर दिए जाते है।बाहर घूमना भी सेफ नहीं होता क्योंकि उस वक्त ड्रग एडिक्टेड युवा सड़को पर अपनी गुंडागर्दी दिखा सकते है।
photo : ACP |
फाइनली हमें एक होटल मिल गया और हमनें वह भी न मिले इस ख्याल से अन्य एक दो होटल जाने के बाद ही उसे बुक कर लिया।इतनी ठंड थी कि पानी छूने का इरादा नहीं हो रहा था।फिर भी फ्रेश होकर हम बाहर आ गए।थीम्फू की संरचना किसी यूरोपीय फ़िल्म जैसी लग रही थी।
अब हमें खाने के लिए रेस्टोरेंट ढूंढ़ना था।और हम जिस किसी रेस्टोरेंट में जाते, जवाब मिलता "क्लोज"।कई बार "क्लोज" सुनने के बाद हमारी भूख और बढ़ गयी थी।हम थीम्फू की सड़कों पर इधर से उधर भागते रहे।अब कहीं खाने को मिलेगा इसका आसार कम ही था।
अंत में हमने एक रेस्टोरेंट के मैम से कुछ रिक्वेस्ट किया।महिलाएं हमारी भावनाओं को जल्दी ही समझ जाती है।उन्होंने क्लोज का बाहर लोगों लगने के बाद भी हमारे लिए कुछ भोजन तैयार करवाने को मान गई।उनके खुद के बेटे ने भोजन बनने में सहयोग किया।बाहर ज्यादातर जगहों पर भारतीय होने का फायदा होता है।लोग हमारे प्रति कुछ ज्यादा उदार होते है।
हमनें उनकी संसाधन के अनुरूप ही आर्डर दिया।मंगवाए गए वेज बिरयानी में अंडा भी मिक्स था।जब से यात्रा करने लगा हूँ, मेरे वेजिटेरियन होने को समय-समय पर चुनौती मिलता रहा है जिसके प्रति मैं बेहद सकारात्मक रहा हूँ।यात्रा में ही मेरी यह समझ विकसित हुई है कि जीवित रहने के लिए कुछ भी खाया जा सकता है।वेजेटेरियन होना आपके स्वंतन्त्रता का लिमिटेसन है।
फाइनली हम खाना खाकर ठिठुरते हुए होटल आ गए।उस मैम ने हमें बता दिया था कि कल हम ठंड के कपड़े कहाँ से खरीद सकते है।बस के सफर ने वैसे भी हमें थका दिया था,कंबल में घुसते ही हमें नींद आ गयी।
#ACP_in_Bhutan
Comments
Post a Comment