TAKSHANG आते हुए हम काफी थक गए थे।हमारा कार्ड भी भूटान में काम नहीं कर रहा था।लास्ट ट्रांसेक्शन हमने जयगांव में किया था,तब शायद भूटान इतना एक्सपेंसिव होगा हमें अंदाजा नहीं था, सो निकाले गए पैसों में मात्र अब होटल का रेंट देना भर बचा था।
हमने तय किया कि इधर से भी हम बिना टैक्सी ही होटल चलेंगे।पर जिस मस्ती में हम TAKSHANG आये थे, उसने हमारा सारा ऊर्जा सोख लिया था।और अब रास्ते में किसी से लिफ्ट लेना ही विकल्प था।
फ़ोटो : ACP |
हमने सोचा कि पहाड़ी से उतरकर लिफ्ट मांगा जाए।उतरना आसान होता है और जल्दी ही हम नीचे आ गए।थोड़े से मैदानी एरिया में आते ही तेजी से गुजरती एक कार हमसे कुछ दूरी पर जाकर रुकी।हम दौड़ कर उसके पास गए।फिर क्या!
उसने जिस अंदाज में हमें लिफ्ट दिया, दिलचस्प था।हरियाणा में यात्रा करते हुए भी लिफ्ट मांगने-मिलने के कई किस्सों से मैं गुजरा हूँ और वे सभी दिलचस्प रहे।खैर, वे युवा दोस्त भूटान टूरिज्म में कार्यरत है।उनसे बातचीत से पता चला कि उन्होंने भी भारत के कई हिस्सों का भ्रमण किया है।और यहां भूटान के विकास में इंडियन गवर्मेन्ट का अहम योगदान है।
अंत में हमने अपनी कार्ड वाली समस्या उनसे शेयर किया।फिर उनके बताए अनुसार उसी शाम पारो में हमारा ट्रांसक्शन हो गया।दरअसल हमने किसी के थ्रू अपने कार्ड से कुछ अतिरिक्त रकम देकर ट्रांसेक्शन होटल वाले के एकाउंट में करवाया और फिर होटल का रेंट कैश में हमारे पास बच गया।
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