प्रिय चोर,
मुझे आपके समुदाय से हमदर्दी रही है। ऐसे वक्त में जब सरकार तक लूटने पर लगी हो, मेट्रो के फेयर अप्रत्याशित रूप से बढ़ रहे हों, डीटीसी की हालत खस्ता हो, बेरोज़गारी हो और एक छुपी हुई अव्यवस्था भी चारों ओर कायम हो तो माना जा सकता है कि आपने कोई बड़ा जुर्म नहीं किया है। वैसे आपके प्रोफेशन का जो ग्लैमर है, मैं उससे भी प्रभावित होता हूं। आपका समुदाय तो मुख्यमंत्री तक की गाड़ी यूं ही गायब कर देता है, तो हम किस खेत की मूली हैं, हम तो और आसानी से कट सकते है।
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मुझे याद है जब संत राम-रहीम पकड़े गए थे तो मैंने अपने आसपास के लोगों और सफर करते हुए बहुत से लोगों को उनके वैभव के बारे में बात करते हुए, यह कहते सुना था कि बाबागिरी भी अच्छी प्रोफेशन हो सकती है, ट्राइ करना चाहिए। जहां पूंजी ही ईमान को एक हद तक तय कर रही हो, वहां लोगों का ऐसा सोचना गलत हो सकता है क्या? पता नहीं। हां, पर आपके प्रोफेसन में अब और भी प्रगति होगी ऐसा मुझे लगता है।
पिछली बार मेट्रो के फेयर बढ़ने से रोज़ाना लगभग दो लाख यात्रियों ने मेट्रो को बाय-बाय कहा था और इस बार की बढ़ोतरी तो और भी कमर तोड़नी वाली है। ऐसे में लोग मेट्रो से बसों की तरफ आएंगे ही, क्योंकि कहीं न कहीं रोज़ तो उन्हें पहुंचना ही है। अब अगर लोग मेट्रो से बस की ओर आएंगे तो इससे आपकी सम्भवनाएं और बढ़ेंगी ही। डीटीसी में तो पहले से ही बहुत भीड़ होती है, अब और होगी तो आप आसानी से चोरी कर पाएंगे।
“स्टूडेंट के पर्स में ज़्यादा पैसा होता है क्या? उसमें जो था वो कई तरह के कार्ड थे। कॉलेज कार्ड, लाइब्रेरी कार्ड, पैन कार्ड और सरकारी खिलौना यानि कि आधार कार्ड।”
अब चोरी होने के बाद हम पुलिस के पास तो जाते ही हैं। सुना है आप लोगों की उनसे अच्छी मिलीभगत होती है। चलिए दो समुदाय मिलकर कोई काम करें तो काम के होने की संभावना बढ़ ही जाती है। फिर भी आपके समुदाय के प्रति मैं हमदर्दी तो रख सकता हूं पर पुलिसिया समुदाय के प्रति मुझे गुस्सा आता रहा है। इसी कारण मैं उन्हें एक असामाजिक संस्था मानता हूं और क्यूं ना मानू, आखिर सरकार उन्हें रोज़गार और पैसे देती है। आपको तो बेरोजगार ही रखा है सरकार ने। आपको अच्छी शिक्षा नहीं दी सरकार ने। आपके माँ-बाप का भी पता नहीं। आप कहां पले-बढ़े, किस हालात में, मुझे ये भी नहीं पता तो आपकी स्थिति के लिए सरकार भी ज़िम्मेदार है। शायद इसका बदला आप हम मासूमों का जेब काट कर लेते हैं।
अब बताइए, स्टूडेंट के पर्स में कहीं ज़्यादा पैसा होता है क्या? उसमें जो था वो कई तरह के कार्ड थे। कॉलेज कार्ड था, लाइब्रेरी कार्ड था, पैन कार्ड था और सरकार का खिलौना यानि कि आधार कार्ड था। इन सबसे तो आपको कुछ मिलने से रहा, पर मैं बेचारा मारा जाऊंगा। मुझे इन सभी कार्ड को बनवाने के लिए फिर से मत्था मारना होगा, इधर से उधर दौड़ना होगा। वो कहेगा कि उधर से साइन करवा के लाओ तो ये कहेगा इसका एक कॉपी जेरॉक्स भी लेकर आओ। आपने भी तो कोई ना कोई कार्ड बनवाया ही होगा, माथा-पच्ची क्या आपको नहीं पता?
खैर, अब तो जाने दीजिए। इस अर्थव्यवस्था में जहां सबको किसी भी हाल में प्रगति ही करनी है, आप भी करें। पुलिस भी कर रही है, कुछ लोग भी कर रहे हैं, सरकार भी कर रही है।
तो सब अपने-अपने हिसाब से प्रगति कर ही रहे हैं इसलिए एक प्रगति की उम्मीद आपके समुदाय से भी है मुझे। और वह है कि आपके चोर समुदाय ने भी समझदारी में प्रगति की होगी। गलत मत समझियेगा बंधू, कई बार लोग ऐसा कहने पर बुरा मान जाते हैं तो आप बुरा ना मानकर कृपया थोड़ा समझदारी दिखाइयेगा। पर्स में कई कार्ड ऐसे हैं, जिस पर मेरा नंबर और पता है, आप उन कार्ड्स को पोस्ट कर दीजिएगा या नहीं तो फोन ही कर दीजिएगा, हम ही आ जाएंगे।
उम्मीद है कि आप इस नेक काम को अंजाम देंगे, एडवांस में आपको शुक्रिया भेज रहे हैं।
अब जो मान लीजिए मुझे, वही
आर्यन
आर्यन
#ACP
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