शहर इश्क़ नहीं सीखा पाता, इश्क़ शहर में रहना सीखाता है।
कई वर्ष हो गए नायक को इस शहर में रहते हुए।पर अक्सरहाँ कुछेक महीनों पर चिराग दिल्ली से लेकर ITO की ट्रैफिक हो या रोज सुबह उठकर मेट्रो की सफर से कॉलेज पहुँचना हो, सब उसे उबाउं लगने लगती।फिर वह बैग लेकर निकल जाता कहीं।कहीं, किसी रास्ते पर जो इस शहर से दूर ले जाती हो।
पर आजकल बहुत दूर निकल कर भी वह इसी शहर में छूट सा जाता है।उसे महसूस होता है कि उसका कुछ हिस्सा इसी शहर में छूट गया है।वह हिस्सा जो बाहर का है ही नहीं, उसे वह कहीं और कैसे ढूंढेगा।जैसे अब किसी फूल की खुश्बू फैली हो इस शहर में और जैसे-जैसे वह दूर जाता हो उसे उस गमक का सुखद एहसास कमने लगता हो।जैसे वह जितनी भी सांसे लेता है, वे सारे ऑक्सीजन अब इसी शहर में बच गए हो।और जैसे इस शहर में ही कोई सूरज निकलता हो और फिर कोई सूरजमुखी का फूल खिलता हो।
इस बार नायक नायिका से कहता है "आज आ जाओ न, मिलने के लिए।कल चला जाऊँगा"। उधर नायिका घर के साफ-सफाई से कुछेक पल निकाल व्हाट्सएप खोल लेती है।बड़े से लाठी में बंधे झाड़ू को एक तरफ रख वह लिखती है "घर में बहुत काम है।कुछेक कमरों में पेंट भी करने है।कैसे आऊंगी"। नायक जानता है कि नायिका महज उसकी प्रेमिका मात्र नहीं है।उसके और भी कर्तव्य है।वह किसी की बेटी है, और किसी की बहन भी।
पर फिर भी नायक प्रेमी है।इसलिए उसका चेहरा उतर जाता है।वह कुछ नहीं लिखता।उधर नायिका फिर से झाड़ू लेकर सफाई में लग गयी है।पर उसका ध्यान फ़ोन पे अटका है।वह द्वंद में है कि चली जाऊं या नहीं।काम भी तो बहुत है।वह धूल से सने हाथ को झारती है और मोबाइल उठा लेती है।वह देखती है नायक अब भी ऑनलाइन है।उधर नायक नायिका के व्हाट्सएप पेज को निहार रहा है, जैसे वह जानता था कि नायिका आयेगी ही।
Photo - ACP |
नायिका लिखती है "कल कहाँ जा रहे हो?" और वह भेजने को होती ही है कि मम्मी की आवाज उसे सुनाई देती है।मम्मी उसे बुला रही है।जरूर कोई और काम आ पड़ा होगा।इधर वह अपनी लिखी मैसेज को भेज, सीधा उधर भागती है जिधर से मम्मी की आवाज आयी थी।
नायक को थोड़ा गुस्सा आता है कि नायिका ऐसे बार-बार गायब हो जाती है।वह व्हाट्सएप बन्द कर देता है।पर फिर उसे ख्याल आता है कि नायिका उसके जाने के बारे में पूछ रही थी।वह फिर से व्हाट्सएप खोलता है और लिखता है "तुमसे दूर।बहुत दूर"।
अगले दिन नायक कहीं जा रहा है।किसी रास्ते पर।दूर, बहुत दूर कोई मंजिल है जहाँ वह पहुँचेगा, कुछ दिन बितायेगा और फिर शायद वापस आ जायेगा।पर जैसे-जैसे जाने का समय नजदीक आता जा रहा है वह अंदर ही अंदर पिघलने लगा है।मन जैसे बोझ बन गया हो किसी पहाड़ सा, जिसे उठा कर वह दूर कैसे ले जा पायेगा।बाहर निकलते हुए, सड़क की भीड़भाड़ की कोलाहल से लेकर मेट्रो की आवाज उसे कोई ऐसी संगीत लग रही है जो उसे रुक जाने को कह रही हो।नायक सोचता है रुक जाऊँ।
कोई है अब इस शहर में जिसके लिए रुका जा सकता है।जिसके लिए घंटों ट्रैफिक में फंसा जा सकता है।जिसके लिए रोज कैंपस जाया जा सकता है।वह चाहता है कि वह रुक जाए।
अंततः वह तय करता है कि नायिका से बात करें।वह उसका नंबर कुछ देर तक देखता रहता है।नंबर के साथ नायिका का फ़ोटो भी लगा है, जिसमें नायक बेसुध सा नायिका की गोद में सर रखे सोया हुआ है और नायिका हाथ में किताब उठाए पढ़ रही है- "प्रेम गिलहरी दिल अखरोट"।
वह कॉल लगा देता है और फिर काट देता है।वह जानता है कि नायिका की आवाज सुन वह और बिफर जाएगा।जबकि नायिका ने हमेशा ही उसके यात्रा को सराहा है।वह तो चाहती है कि नायक पूरी दुनिया घूम आये पर भावना ही तो व्यक्ति को मनुष्यता के नजदीक लाता है।नायक भावना की आवेश में बह जाएगा।
और फिर अचानक उसके मोबाइल पे नायिका का एक SMS डिस्प्ले होता है-
"मुझे पता है, जहाँ तक मेरी नजर जायेगी उससे दूर नहीं जाओगे"।
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