"आदमी का दिमाग उसके शरीर से भी बड़ा होता होगा।बहुत बड़ा।इसलिए ही उसकी सहज जिज्ञासा हमेशा कायम रहती है।वह सोचता जाता है, निरंतर प्रश्न करता जाता है।"
लक्ष्मी नगर से 336 नंबर की बस में लोधी गार्डेन के लिए बैठी नायिका ऐसा ही सोच रही है जब नायक उससे सहज ही पूछ बैठता है "क्या हाथी भी यूँ सड़को पे चलता हुआ, रेड लाइट पे रुक जाता होगा।"
नायिका एक पल को नायक के इस प्रश्न से अकचकाती है पर जब नायक उसे बस की खिड़की से बाहर देखने को कहता है तो वह नायक के जिज्ञासा का कारण समझ पाती है।बाहर वह देखती है एक हाथी को।और उस बड़े से हाथी के ऊपर बैठे एक मतवाले अदना से आदमी को।
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ITO की ओर दोनों मस्ती में जा रहे है।उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जिस सड़क पे वे इतने मतवाले होकर चले जा रहे है उसपे अन्य बहुत सी तेज गाड़ी उसी ओर भाग रही है जिधर की हाथी और ऐसे में उनके धिमे चाल को कोई ठोकर भी मार सकता है।और अगर हाथी बीच सड़क पे गिर जाए तो क्या होगा? या वह आदमी जो हाथी के ऊपर मस्ती में बैठा है? क्या तब भी लोग खूब हॉर्न बजाएंगे।नायिका यह भी सोच रही कि हाथी ने कुछ पहना क्यों नहीं है, उसे भी तो ठंड लगती होगी? और कुछ वह सोच पाती इससे पहले ही नायक उसे टोकता है।
ITO पे लंबी जाम लगी है।गाड़ियों में बैठे कुछ लोग उड़ कर ट्रैफिक के उस पार चले जाना चाहते है इसलिए वे लगातार हॉर्न बजा रहे है।नायिका चिल्ला कर कहना चाहती है कि उड़कर क्यों नहीं चले जाते तुमलोग पर वह कह पाती है नायक से "चलो, कहीं और चलते है"।
और नायक का हाथ पकड़े वह उतर जाती है बस से।
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