मैंने अपनी एक उम्र में
बहुत सी कविताएं लिखी है,
और अक्सर ही उन कविताओं को
मैं अपनी प्रेमिका को भेज दिया करता था
क्योंकि वे उन्हीं के लिए लिखी गयी होती थी।
जीवन के युवावस्था में
वह मेरी जिंदगी में आयी
और हमने खूब उड़कर प्रेम किया
फिर पता नहीं क्यों,
एक दिन वह चली गयी?
उनके जाने के बाद भी
मैं कविता लिखता ही रहा
कभी उन्हें मनाने की कोशिश करता
तो कभी उनके जाने की
कारणों को कविता में तलाशता
तो कभी उनसे लौट आने की गुहार भी लगाता
पर वह फिर लौट कर कभी नहीं आयी
मैं कविता लिखता रहा
पर न जाने क्यों,
धीरे-धीरे
मेरा मन लिखने से उचटने लगा
और मैंने लिखना छोड़ दिया।
फिर एक लंबे अरसे तक
मैंने कभी कोई कविता नहीं लिखा।
वह दिसम्बर का कोई तारीख रहा होगा,
जब यूँ ही भटकते हुए मैं कन्याकुमारी पहुंच गया था,
और डूबती दिन के,
अंतिम पहर में समुद्र किनारे टहल रहा था,
समुद्री जल दूर से भागती हुई आती और
मेरी पाँव को भींगो वापस चली जाती
मैं समुद्र के इस शरारत को देख ही रहा था
कि अचानक से मुझे मेरी माँ याद आ गयी।
मेरी माँ ने कभी कोई समुद्र नहीं देखा,
पता नहीं, जब वह पहली बार समुद्र देखती
तो क्या कहती?
या समुद्र की ठंडी हवा जब उनके चेहरे को छूती
तब उन्हें किसका याद आता?
शायद बाउजी का?
या अपने किसी प्रेमी का?
माँ ने आँखों को लंबी उम्र तक
बूढ़ी होते देखा था,
जबकि बाउजी की आंखें जवान थी
तभी वे चल बसे थे।
मैं हमेशा माँ से पूछना चाहता था
कि, जब भी आँगन में कोयल गाती है,
पुरवइया हवा चलती है,
या जब सर्द रातों में जिस्म को
कोई और तन्हा कर रहा होता है
तब उन्हें किनका याद आता है?
माँ कमतर ही बोलती थी,
हाँ, जब कभी बाउजी खलिहान में ही सो जाते
और मैं खूब जिद्द करता तो
कुछ सुनाने लग जाती
और कब सुबह हो जाती पता ही नहीं चलता।
मेरी बड़ी दिली ख़्वाइस थी कि
मैं माँ को कहीं किसी ऐसे जगह पे ले जाऊँ
जहाँ दिन-रात और बाउजी से परे
माँ बस बोलती जाए,
बोलती जाए।
बहुत दिन हो गए
मां को गए हुए,
अन्दाजतन जितने वर्ष के बाउजी थे
उतने वर्ष।
पता नहीं आज
जब वह मेरे साथ
समुद्र किनारे आती
और उन्हें समुद्र की ठंडी हवा छूती
या दूर से दौड़ता आता जल
उनके पांव को स्पर्श करता
तब वह पहले-पहल क्या कहती?
उनके चेहरे पे क्या भाव आते?
क्या वह वहीं किनारे बैठ कर
मुझे घंटो अपनी जीवन की कहानियां सुनाती?
जो भी हो,
पर वह अपनी प्रेम कहानी के बारे में
मुझे जरूर बताती।
#ACP
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