मुझे याद है कि एक बार मैं दक्षिण भारत की यात्रा पे था और इरोड नामक छोटे से शहर में ठहरा हुआ था। बल्कि शहर के बजाय क़स्बा कहना ज़्यादा उपयुक्त होगा।तो,इरोड मुझे बेहद ख़ूबसूरत लगी थी, मुझे वहाँ की सड़कों पे रात को टहलना बहुत भाता था ,और ऐसी ही एक और शहर थी केरला की, सुल्तानबथेरी। तो जैसे जैसे मैं भारत के अलग अलग हिस्सों को देखता गया, यह लिस्ट कुंगरी, रिकांगपिओ से होते हुए और लंबी होती गयी कि कभी न कभी यहां ऐसे जगहों पे आकर बस जाऊँगा और इस शहर में अपना एक घर बनाऊंगा। बाद में लगातार ट्रेवलिंग से यह समझ पाया कि यह निहायत ही कितनी बेकार सोच थी।
ऐसी ही एक खूबसूरत जगह है पचमढ़ी। पचमढ़ी से ठीक पहले घने जंगल के बीच, रास्ते किनारे एक तालाब पड़ता है, इसी तालाब किनारे अरूंदती रॉय ने अपना एक प्लॉट खरीदा था जो एक लंबे विवाद के बाद कैंसिल हो गया, वे वहाँ घर नहीं बना पाई। MP में ग्रीन बेल्ट को लेकर बेहद सख्त कानून है। और पूरा MP इतना हरा-भरा है कि कहीं बस जाने का मन तो सहज ही हो जाता है। और खासकर पचमढ़ी में। पर हमारी सभ्यता ने जंगलों से गाँव और फिर नगर तक की यात्राएं अपनी सुविधा के लिए ही किया है, अब बढ़ती हमारी महत्वकांक्षाओं ने दिल्ली, मुम्बई जैसे जगहों को रहने लायक नहीं छोड़ा। इसी होड़ में हमने जानवरों के समाज को भी नुकसान पहुंचाया है, फिर जंगलों में घर निर्माण के फैसले को क्या कहा जाए, अरूंदती रॉय की विद्वता क्या छुपी है, वे तो इनबातों को समझती ही होगी।
खैर, पिछले साल जब भोपाल आया था, तब किसी कैपिटल सिटी को इतना सुंदर होना, शहर के अंदर-अंदर इतने झील का होना, सबकुछ ने मुझे बेहद प्रभावित किया था। भोपाल शहर की हवा नगरों सी नहीं लगती। नगर में होते हुए भी यहाँ गाँव सी हरियाली है। तभी शायद मेरे प्रिय कवि Geet को यहाँ रहना भाया हो।
और फिर गीत को पढ़ते हुए भी बुद्ध औऱ विदिशा व सांची को ज्यादा जान पाया। इसलिए ही जब ग्रैजुएट होने के बाद मौका मिला, तो सबसे पहले तय किया कि पूरे MP को एक्स्प्लोर करूँगा।
और इसी क्रम में सतपुड़ा से पहचान बढ़ी। सतपुड़ा की पहाड़ी को देख कर लगता है कि किसी पेंटर ने कैनवास पे केवल हरा रंग का स्केच उकेरा है और बीच-बीच में स्लेटी रंग डाल दिए है। इतने लंबे पेड़ और घने जंगल। जबकि हिमालय इतना हरा-भरा न होकर बर्फों का चादर ओढ़े हुए है। हिमालय के एक दूर-दराज गाँव, कुंगरी में जब मैं कुछ दिन रुका था तब एक वक्त के बाद बर्फ, पहाड़ और नदी सबकुछ उबाऊं लगने लगी थी, लग रहा था कोई तत्व मिस है यहाँ, और फिर एक हरियाली के कारण बार-बार मन मैदानों की ओर लौट आना चाहता था। धीरे-धीरे समझ पाया कि भले ही हमने जंगलों से दूरी बना ली है, पर हमारे जीने के लिए, जिंदा रहने के लिए जंगल का होना, हरियाली का होना कितना जरूरी है। जल-जंगल और पहाड़ सब हमारे अंदर रहते है तभी बाहर हम इनसे ज्यादा कनेक्ट कर पाते है।
अब जब सतपुड़ा में निकल आया हूँ तो लगता है यहाँ जल-जंगल में हिमालय सा एहसास भी है, और हरियाली भी। फिर मेरे अंदर एक कौतूहल भी उठती है कि अब तक मैंने सतपुड़ा की पहाड़ियों में किसी साधु-मुनि के तपस्या की खबरें क्यों नहीं सुनी!!
#ACP_in_Satpuda
ऐसी ही एक खूबसूरत जगह है पचमढ़ी। पचमढ़ी से ठीक पहले घने जंगल के बीच, रास्ते किनारे एक तालाब पड़ता है, इसी तालाब किनारे अरूंदती रॉय ने अपना एक प्लॉट खरीदा था जो एक लंबे विवाद के बाद कैंसिल हो गया, वे वहाँ घर नहीं बना पाई। MP में ग्रीन बेल्ट को लेकर बेहद सख्त कानून है। और पूरा MP इतना हरा-भरा है कि कहीं बस जाने का मन तो सहज ही हो जाता है। और खासकर पचमढ़ी में। पर हमारी सभ्यता ने जंगलों से गाँव और फिर नगर तक की यात्राएं अपनी सुविधा के लिए ही किया है, अब बढ़ती हमारी महत्वकांक्षाओं ने दिल्ली, मुम्बई जैसे जगहों को रहने लायक नहीं छोड़ा। इसी होड़ में हमने जानवरों के समाज को भी नुकसान पहुंचाया है, फिर जंगलों में घर निर्माण के फैसले को क्या कहा जाए, अरूंदती रॉय की विद्वता क्या छुपी है, वे तो इनबातों को समझती ही होगी।
फ़ोटो : संजय सैलानी |
खैर, पिछले साल जब भोपाल आया था, तब किसी कैपिटल सिटी को इतना सुंदर होना, शहर के अंदर-अंदर इतने झील का होना, सबकुछ ने मुझे बेहद प्रभावित किया था। भोपाल शहर की हवा नगरों सी नहीं लगती। नगर में होते हुए भी यहाँ गाँव सी हरियाली है। तभी शायद मेरे प्रिय कवि Geet को यहाँ रहना भाया हो।
और फिर गीत को पढ़ते हुए भी बुद्ध औऱ विदिशा व सांची को ज्यादा जान पाया। इसलिए ही जब ग्रैजुएट होने के बाद मौका मिला, तो सबसे पहले तय किया कि पूरे MP को एक्स्प्लोर करूँगा।
और इसी क्रम में सतपुड़ा से पहचान बढ़ी। सतपुड़ा की पहाड़ी को देख कर लगता है कि किसी पेंटर ने कैनवास पे केवल हरा रंग का स्केच उकेरा है और बीच-बीच में स्लेटी रंग डाल दिए है। इतने लंबे पेड़ और घने जंगल। जबकि हिमालय इतना हरा-भरा न होकर बर्फों का चादर ओढ़े हुए है। हिमालय के एक दूर-दराज गाँव, कुंगरी में जब मैं कुछ दिन रुका था तब एक वक्त के बाद बर्फ, पहाड़ और नदी सबकुछ उबाऊं लगने लगी थी, लग रहा था कोई तत्व मिस है यहाँ, और फिर एक हरियाली के कारण बार-बार मन मैदानों की ओर लौट आना चाहता था। धीरे-धीरे समझ पाया कि भले ही हमने जंगलों से दूरी बना ली है, पर हमारे जीने के लिए, जिंदा रहने के लिए जंगल का होना, हरियाली का होना कितना जरूरी है। जल-जंगल और पहाड़ सब हमारे अंदर रहते है तभी बाहर हम इनसे ज्यादा कनेक्ट कर पाते है।
अब जब सतपुड़ा में निकल आया हूँ तो लगता है यहाँ जल-जंगल में हिमालय सा एहसास भी है, और हरियाली भी। फिर मेरे अंदर एक कौतूहल भी उठती है कि अब तक मैंने सतपुड़ा की पहाड़ियों में किसी साधु-मुनि के तपस्या की खबरें क्यों नहीं सुनी!!
#ACP_in_Satpuda
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