ठंड में गहरी नींद आती है, चार-पांच घंटे में ही नींद पूरी हो जाती फिर भी मन होता है कम्बल ओढ़े बेड पर पड़े रहे। ऐसा लगता है ठंड राजाओं का मौसम है। आप कम्बल में पड़े रहे, और सुबह सुबह चाय मिल जाए, नास्ता-खाना मिल जाया करे।
सुबह कब से यादव जी (हमारे होस्ट) गेट खटखटा रहे थे, मैं तकिए में सर गोते उनको इग्नोर मार रहा था। जबकि सुबह के नौ बज गए थे। अन्ततः मैं जागा, यादव जी चाय के साथ ही पचमढ़ी के बारे में बताने लगे।
मध्यप्रदेश का हिल स्टेशन व सतपुड़ा की रानी के रूप में पचमढ़ी की पहचान है। यह पहले गौड़ शासक की जागीर हुआ करती थी जिसे अंग्रेज़ो ने छल कपट से 1840 ई में छीन लिया था। यादव जी बताते है कि गर्मियों के मौसम में यह अंग्रेजों का ठिकाना हुआ करता था। हालांकि बाद में यह क्षेत्र 1967 तक मध्यप्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी रही। परन्तु बाद में श्री गोविंद नारायण सिंह ने पचमढ़ी में राजधानी हस्तांतरण के अभ्यास को बंद करवा दिया।
जब मैं बस से पचमढ़ी में उतरा था, तब शाम के चार बजे होंगे। चारो ओर कोहरा था और ठंड भी लग रही थी। जबकि पिपरिया में मौसम नॉर्मल ही था। पिपरिया तक ट्रेन से पहुँच कर मैंने बस ले लिया था।
तकरीबन 55 किलोमीटर की दूरी को बस ने पांच घंटे में तय किया। और इस दौरान बस लोगों से कोचमकोच भरी हुई सतपुड़ा टाइगर रिजर्व होते हुए ऊपर पचमढ़ी की ओर बढ़ती रही। बेहद मजेदार सफर था। बस से कभी मैं इस तरफ देखता तो कभी उस तरफ और फिर सामने। दोनों तरफ सो हरियाली थी कि पलक झपकना गंवारा लग रहा था। बस में वही कोई सैड सांग चल रही थी। कई जगहों पे ट्रेवल करता हूँ, ज्यादतर जगहों पे बस या ऑटो में सैड सांग ही चल रहे होते है, लगता है दुनिया के सारे ड्राइवरों को प्रेम में धोखा मिला हो।
खैर, बस लोगों से खचाखच भरी होने के बावजूद जब ड्राइवर किसी ट्राइबल को हाथ देते देखता तो वह गाड़ी रोक देता, जबकि अन्य के लिए वह नहीं रोकता था।
जैसे ही बस से मैं उतरा। मेरी आँखें कोहरे के पार देखने की जद्दोजहद करने लगी। कोहरे के कारण दूर तक देखना संभव नहीं था। पर नागद्वारी मेले की वजह से वहाँ काफी लोग थे। बस भी शहर के बाहर ही पुलिस ने रुकवा दिया था सो लंबा वॉक करके मुझे अपने होस्ट तक पहुंचना था। थोड़ी ही आगे बढ़ा होऊंगा कि हल्की बूंदा-बूंदी होने लगी। थोड़ी ठंड लग रही थी पर सबकुछ बेहद सुहावना लग रहा था। बस मन मे एक भय थी कि बैग के अंदर पानी मैकबुक और कैमरे तक न पहुंच जाए।
#ACP_in_Satpuda
सुबह कब से यादव जी (हमारे होस्ट) गेट खटखटा रहे थे, मैं तकिए में सर गोते उनको इग्नोर मार रहा था। जबकि सुबह के नौ बज गए थे। अन्ततः मैं जागा, यादव जी चाय के साथ ही पचमढ़ी के बारे में बताने लगे।
मध्यप्रदेश का हिल स्टेशन व सतपुड़ा की रानी के रूप में पचमढ़ी की पहचान है। यह पहले गौड़ शासक की जागीर हुआ करती थी जिसे अंग्रेज़ो ने छल कपट से 1840 ई में छीन लिया था। यादव जी बताते है कि गर्मियों के मौसम में यह अंग्रेजों का ठिकाना हुआ करता था। हालांकि बाद में यह क्षेत्र 1967 तक मध्यप्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी रही। परन्तु बाद में श्री गोविंद नारायण सिंह ने पचमढ़ी में राजधानी हस्तांतरण के अभ्यास को बंद करवा दिया।
जब मैं बस से पचमढ़ी में उतरा था, तब शाम के चार बजे होंगे। चारो ओर कोहरा था और ठंड भी लग रही थी। जबकि पिपरिया में मौसम नॉर्मल ही था। पिपरिया तक ट्रेन से पहुँच कर मैंने बस ले लिया था।
फ़ोटो : ACP |
तकरीबन 55 किलोमीटर की दूरी को बस ने पांच घंटे में तय किया। और इस दौरान बस लोगों से कोचमकोच भरी हुई सतपुड़ा टाइगर रिजर्व होते हुए ऊपर पचमढ़ी की ओर बढ़ती रही। बेहद मजेदार सफर था। बस से कभी मैं इस तरफ देखता तो कभी उस तरफ और फिर सामने। दोनों तरफ सो हरियाली थी कि पलक झपकना गंवारा लग रहा था। बस में वही कोई सैड सांग चल रही थी। कई जगहों पे ट्रेवल करता हूँ, ज्यादतर जगहों पे बस या ऑटो में सैड सांग ही चल रहे होते है, लगता है दुनिया के सारे ड्राइवरों को प्रेम में धोखा मिला हो।
खैर, बस लोगों से खचाखच भरी होने के बावजूद जब ड्राइवर किसी ट्राइबल को हाथ देते देखता तो वह गाड़ी रोक देता, जबकि अन्य के लिए वह नहीं रोकता था।
जैसे ही बस से मैं उतरा। मेरी आँखें कोहरे के पार देखने की जद्दोजहद करने लगी। कोहरे के कारण दूर तक देखना संभव नहीं था। पर नागद्वारी मेले की वजह से वहाँ काफी लोग थे। बस भी शहर के बाहर ही पुलिस ने रुकवा दिया था सो लंबा वॉक करके मुझे अपने होस्ट तक पहुंचना था। थोड़ी ही आगे बढ़ा होऊंगा कि हल्की बूंदा-बूंदी होने लगी। थोड़ी ठंड लग रही थी पर सबकुछ बेहद सुहावना लग रहा था। बस मन मे एक भय थी कि बैग के अंदर पानी मैकबुक और कैमरे तक न पहुंच जाए।
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