वे पानी में जहर मिला देते है।
मुबारक जी के पास एक साइकल थी। और यह दिलचस्प था कि अब मैं पचमढ़ी की गलियों को साइकल से नाप सकूँगा। कोहरे और ढलान नुमा सड़क के कारण मुबारक साइकल देने में थोड़े घबरा इसलिए रहे थे कि कहीं कोई हादसा न हो जाएं। पहले दिन जब मैं पचमढ़ी पहुँचा था तब एक रेस्टोरेंट में इनसे मुलाकात हुई थी। अधेड़ उम्र के मुबारक जी की पैदाइश पचमढ़ी की ही है, और इन्होंने अपने सामने पचमढ़ी और इसके आसपास के जल-जंगल और आदिवाशियों को इतिहास का हिस्सा बनते देखा है। पहाड़ों की यही खास बात होती है कि उम्र का असर शरीर पर नहीं दिखता। आप स्वच्छ और एनरजेटिक वातावरण में रहते है, फिर इसका असर सीधा बॉडी पर तो होता ही है। शायद इसलिए ही मुबारक अपने उम्र को मात देते नजर आते। रात के खाने के दौरान मुबारक ने आदिवाशियों के बारे में भी कई दिलचस्प बातें बताई।
वे बताते है कि सतपुड़ा के घने जंगल में आज भी कई आदिवाशी समूह रहते है जबकि कईयों को सरकार ने मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया है। आदिवाशी इतनी आसानी से अपनी जमीन नहीं छोड़ते इसलिए सरकार ने पैसों का तगड़ा प्रलोभन दे कर जंगल से उन्हें बाहर निकाला है। मुबारक बताते है कि कई दफे ये लोग प्रलोभव में आकर पानी मे जहर मिला देते है और जब टाइगर पानी पीने के लिए आता है वह जहर के प्रभाव में मारा जाता है। फिर ये लोग जिनके लिए काम करते है, वो आकर टाइगर ले जाता है। पकड़े जाने पर पहली पार्टी तो बच जाती है, पर आदिवाशी जेल में सड़ते रहते है।
यूँ तो ग्रीन बेल्ट में निर्माण पर रोक है, पर सरकार ने इन आदिवाशियों को सड़क किनारे ही बसाया है। मिट्टी के घरों में ये लोग रहते है, सतपुड़ा के पहाड़ियों में ट्रेवल करते हुए सड़क किनारे इन्हें देखा जा सकता है।
मुबारक जी ने एक और खास बात जो बताई वो थी, नागद्वारी मेले के बारे में। यह मेला अपने-आप में इतना विशिष्ट है कि इसके बारे में अलग से बहुत कुछ लिखा जा सकता है। ताज्जुब की बात ये है कि कल्चर का इतना प्रभावी हिस्सा होने के बावजूद बहुत कम लोगों को इसके बारे में पता। जिनको पता भी है, उनमें पिचानवे फीसदी लोग केवल महाराष्ट्र से है। और जिस तरह मुबारक बता रहे थे, मन ही मन मैंने तय कर लिया था कि अगली ही सुबह नागद्वारी के लिए निकल जाएंगे।
#ACP_in_Satpuda
मुबारक जी के पास एक साइकल थी। और यह दिलचस्प था कि अब मैं पचमढ़ी की गलियों को साइकल से नाप सकूँगा। कोहरे और ढलान नुमा सड़क के कारण मुबारक साइकल देने में थोड़े घबरा इसलिए रहे थे कि कहीं कोई हादसा न हो जाएं। पहले दिन जब मैं पचमढ़ी पहुँचा था तब एक रेस्टोरेंट में इनसे मुलाकात हुई थी। अधेड़ उम्र के मुबारक जी की पैदाइश पचमढ़ी की ही है, और इन्होंने अपने सामने पचमढ़ी और इसके आसपास के जल-जंगल और आदिवाशियों को इतिहास का हिस्सा बनते देखा है। पहाड़ों की यही खास बात होती है कि उम्र का असर शरीर पर नहीं दिखता। आप स्वच्छ और एनरजेटिक वातावरण में रहते है, फिर इसका असर सीधा बॉडी पर तो होता ही है। शायद इसलिए ही मुबारक अपने उम्र को मात देते नजर आते। रात के खाने के दौरान मुबारक ने आदिवाशियों के बारे में भी कई दिलचस्प बातें बताई।
वे बताते है कि सतपुड़ा के घने जंगल में आज भी कई आदिवाशी समूह रहते है जबकि कईयों को सरकार ने मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया है। आदिवाशी इतनी आसानी से अपनी जमीन नहीं छोड़ते इसलिए सरकार ने पैसों का तगड़ा प्रलोभन दे कर जंगल से उन्हें बाहर निकाला है। मुबारक बताते है कि कई दफे ये लोग प्रलोभव में आकर पानी मे जहर मिला देते है और जब टाइगर पानी पीने के लिए आता है वह जहर के प्रभाव में मारा जाता है। फिर ये लोग जिनके लिए काम करते है, वो आकर टाइगर ले जाता है। पकड़े जाने पर पहली पार्टी तो बच जाती है, पर आदिवाशी जेल में सड़ते रहते है।
यूँ तो ग्रीन बेल्ट में निर्माण पर रोक है, पर सरकार ने इन आदिवाशियों को सड़क किनारे ही बसाया है। मिट्टी के घरों में ये लोग रहते है, सतपुड़ा के पहाड़ियों में ट्रेवल करते हुए सड़क किनारे इन्हें देखा जा सकता है।
मुबारक जी ने एक और खास बात जो बताई वो थी, नागद्वारी मेले के बारे में। यह मेला अपने-आप में इतना विशिष्ट है कि इसके बारे में अलग से बहुत कुछ लिखा जा सकता है। ताज्जुब की बात ये है कि कल्चर का इतना प्रभावी हिस्सा होने के बावजूद बहुत कम लोगों को इसके बारे में पता। जिनको पता भी है, उनमें पिचानवे फीसदी लोग केवल महाराष्ट्र से है। और जिस तरह मुबारक बता रहे थे, मन ही मन मैंने तय कर लिया था कि अगली ही सुबह नागद्वारी के लिए निकल जाएंगे।
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