मुबारक जी ने जिस तरह से नागद्वारी के बारे में बताया था, लग रहा था यह बहुत भव्य और चमत्कृत मेला होगा। इसलिए हम पूरी तैयारी से निकलना चाहते थे। मैंने दो बार कैमरा बैटरी चेक किया, माइक्रोफोन वैगरह सब सही थे। रात को जल्दी सोना था, फिर भी कुछ लिखते हुए एक बज ही गए और स्वभावतः सुबह नींद नहीं खुली।
तकरीबन साढ़े एग्यारह में हम पहाड़ों की ओर निकल गए। जैसे-जैसे पहाड़ों की ओर बढ़ते गए, उत्सुकता उफान मारने लगी। धुन्ध और हरियाली से ढ़का पहाड़ बहुत खूबसूरत दिख रहा था। सबसे ऊंची चोटी को देख लोग कह रहे थे कि वहीं पहुंचना है। इतनी ऊंचाई को चढ़ना है, देख कर रोमांचक भी लग रहा था और ऐसे भी कि कितने समय में वहाँ पहुंच पाएंगे। फिर वहाँ से सबकुछ कैसा दिखता होगा। जब हिमालय में घूम रहा था, तो ऐसे ही एकदिन पहाड़ पर चढ़ने निकल गया, जितना चढ़ता जाता पहाड़ उतना और ऊंचा होता जाता। जैसे पहाड़ के सामने जाकर यह एहसास होता होता है कि मनुष्य कितना बौना है।
पचमढ़ी से लगभग छह किलोमीटर अंदर पहाड़ों की ओर तक जिप्सी छोड़ देती है। खतरनाक रूट होने के कारण उधर कोई भी अपने प्राइवेट वाहन से नहीं जा सकता। केवल वहाँ वही जिप्सी जा सकती है, जिसे अनुमति मिली हुई है। और जहाँ जिप्सी छोड़ती है, वहां से पैदल अंदर जंगल की ओर यात्रा शुरू होती है। मेले के कारण जंगलों में भी एक रौनक थी, जिससे पूछो सब नागपुर से ही थे। पिछली यात्रा से इतना समझ गया था कि पहाड़ों पे हमेशा कम से कम सामान लेकर चढ़ना है। मेरे पास कैमरा व उससे जुड़े सारे इक्यूपेंट्स थे। इसलिए पीठ पर थोड़ी बहुत भार लग रही थी।
जंगल में प्रवेश करते ही हरियाली ने मन मोह लिया। मैं जगह-जगह रुक जा रहा था। फिर दूर पहाड़ों की ओर देखता। पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी अब भी उतनी ही दूर थी। ऐसा माना जाता है कि शिव को जब भस्मासुर ने खदेड़ा था, तब शिव उसी ऊंची चोटी पर जाकर छुपे थे। और शिव की पत्नी शती के रूट नागपुर से माना जाता है। इसलिए ही नागपुर के लोग यहाँ इस मेले में आते है, वे शिव को अपना बहनोई मानते है और खूब नाचते-गाते, ड्रिंक-गांजा पीते हुए शिव से मिलने इस मेले में आते है। उनका संबंध शिव से वैसा ही है जैसे अपने समाज में बहन के पति से होता है, इसलिए वे खूब चुहल करते है।
उन्हें ऊपर पहुंचने की कोई जल्दी नहीं है, सब बच्चे-बूढ़े महिला और यहाँ तक कि लगड़े लोग भी इतनी उत्सुकता से पहाड़ों को रेंगते हुए आगे बढ़ रहे थे, कि सबकुछ चमत्कार जैसा था। एक तो तीतर-बितर जंगल और पहाड़, फिर लोगों का उत्साह। गजब। सो अब समय था कि लोगों के उत्साह और पहाड़ों के समाज को रिकॉर्ड किया जाए, उन्हें अपने कैमरे में संजोया जाए। मैंने बैठने की एक जगह ढूंढ़ी और कैमरा सेट करना शुरू किया। माइक्रोफोन वैगरह लगाने के बाद अंत मे बैटरी लगाने की बारी थी। मैंने कैमरा ऑन किया, कैमरे ने उतने ही बेपरवाही से कोई रेस्पॉन्स नहीं दिया। मैं थोड़ा सा भयभीत होने लगा। फिर से बैटरी लगाया। चेंज करके दूसरा बैटरी लगाया। फिर तीसरा। कैमरा ऑन नहीं हुआ। अचानक से जैसे एक गहरी उदासी ने मुझे घेर लिया कि ये क्या हो गया।
अब किसी तरह खुद में वही शुरुआती उत्साह लाना था और आगे बढ़ना था। अब ये सही ही है, "चमत्कार को रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता"
#ACP_in_Satpuda
तकरीबन साढ़े एग्यारह में हम पहाड़ों की ओर निकल गए। जैसे-जैसे पहाड़ों की ओर बढ़ते गए, उत्सुकता उफान मारने लगी। धुन्ध और हरियाली से ढ़का पहाड़ बहुत खूबसूरत दिख रहा था। सबसे ऊंची चोटी को देख लोग कह रहे थे कि वहीं पहुंचना है। इतनी ऊंचाई को चढ़ना है, देख कर रोमांचक भी लग रहा था और ऐसे भी कि कितने समय में वहाँ पहुंच पाएंगे। फिर वहाँ से सबकुछ कैसा दिखता होगा। जब हिमालय में घूम रहा था, तो ऐसे ही एकदिन पहाड़ पर चढ़ने निकल गया, जितना चढ़ता जाता पहाड़ उतना और ऊंचा होता जाता। जैसे पहाड़ के सामने जाकर यह एहसास होता होता है कि मनुष्य कितना बौना है।
पचमढ़ी से लगभग छह किलोमीटर अंदर पहाड़ों की ओर तक जिप्सी छोड़ देती है। खतरनाक रूट होने के कारण उधर कोई भी अपने प्राइवेट वाहन से नहीं जा सकता। केवल वहाँ वही जिप्सी जा सकती है, जिसे अनुमति मिली हुई है। और जहाँ जिप्सी छोड़ती है, वहां से पैदल अंदर जंगल की ओर यात्रा शुरू होती है। मेले के कारण जंगलों में भी एक रौनक थी, जिससे पूछो सब नागपुर से ही थे। पिछली यात्रा से इतना समझ गया था कि पहाड़ों पे हमेशा कम से कम सामान लेकर चढ़ना है। मेरे पास कैमरा व उससे जुड़े सारे इक्यूपेंट्स थे। इसलिए पीठ पर थोड़ी बहुत भार लग रही थी।
फ़ोटो : ACP |
जंगल में प्रवेश करते ही हरियाली ने मन मोह लिया। मैं जगह-जगह रुक जा रहा था। फिर दूर पहाड़ों की ओर देखता। पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी अब भी उतनी ही दूर थी। ऐसा माना जाता है कि शिव को जब भस्मासुर ने खदेड़ा था, तब शिव उसी ऊंची चोटी पर जाकर छुपे थे। और शिव की पत्नी शती के रूट नागपुर से माना जाता है। इसलिए ही नागपुर के लोग यहाँ इस मेले में आते है, वे शिव को अपना बहनोई मानते है और खूब नाचते-गाते, ड्रिंक-गांजा पीते हुए शिव से मिलने इस मेले में आते है। उनका संबंध शिव से वैसा ही है जैसे अपने समाज में बहन के पति से होता है, इसलिए वे खूब चुहल करते है।
उन्हें ऊपर पहुंचने की कोई जल्दी नहीं है, सब बच्चे-बूढ़े महिला और यहाँ तक कि लगड़े लोग भी इतनी उत्सुकता से पहाड़ों को रेंगते हुए आगे बढ़ रहे थे, कि सबकुछ चमत्कार जैसा था। एक तो तीतर-बितर जंगल और पहाड़, फिर लोगों का उत्साह। गजब। सो अब समय था कि लोगों के उत्साह और पहाड़ों के समाज को रिकॉर्ड किया जाए, उन्हें अपने कैमरे में संजोया जाए। मैंने बैठने की एक जगह ढूंढ़ी और कैमरा सेट करना शुरू किया। माइक्रोफोन वैगरह लगाने के बाद अंत मे बैटरी लगाने की बारी थी। मैंने कैमरा ऑन किया, कैमरे ने उतने ही बेपरवाही से कोई रेस्पॉन्स नहीं दिया। मैं थोड़ा सा भयभीत होने लगा। फिर से बैटरी लगाया। चेंज करके दूसरा बैटरी लगाया। फिर तीसरा। कैमरा ऑन नहीं हुआ। अचानक से जैसे एक गहरी उदासी ने मुझे घेर लिया कि ये क्या हो गया।
अब किसी तरह खुद में वही शुरुआती उत्साह लाना था और आगे बढ़ना था। अब ये सही ही है, "चमत्कार को रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता"
#ACP_in_Satpuda
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