"और उस रात हुआ क्या था अयान, ठीक से याद भी तो करो। लंबी दूरी से भटकता आया मार्को की आंख ही तो लग गयी थी। और इसी बीच वो जंगली सांप आकर उन्हें काट खा गया।"
"हां, पर..."
"हां, पर क्या! नेचर का सबसे प्योर फॉर्म हमें आकर्षित तो करता ही है आयन। देखो न वॉटरफॉल को देखकर हम कितने खुश होते है। या घना जंगल मे भटकना हो या नदी किनारे बैठना सबकुछ हमें ऐसा लगता है जैसे यहीं बैठे रह जाएं और देखते रहे।"
"तुम सही कहती हो। पर क्या तुम्हारा ये मतलब है कि हमें एक्सप्लोर नहीं करना चाहिए।"
"मतलब क्या है, ये मैं कैसे कह सकती हूं अयान। ये तो तुम पे है कि तुम क्या समझ रहे हो। तुम्हें घूमना पसन्द है। ऐसे ही निकल जाना और भटकते रहना पसंद है, मैं इसको लेकर जजमेंटल नहीं हूं। हो सकता है तुम कुछ तलाश रहे होंगे और वहीं तलाश तुम्हें भटकाता है। तुम्हें इस शहर से दूर ले जाता है। कई बार हमें यह भी तो नहीं पता होता न कि हम भटक क्यों रहे है? हमारी तलाश आखिर है क्या?"
"फिर भी, मैं भटकते रहना चाहता हूं। बिन वजह भी तो भटकाव हो सकती है।"
"बिल्कुल हो सकती है अयान। पर अपने जिस गौरवपूर्ण इतिहास पे हमें गर्व है, उस काल मे भी तो हम भटक ही रहे थे। हमने सभ्यता की खोज से लेकर आज तक के विकास को इतिहास के पन्नों में महसूस किया है। उन्हें जाना-समझा है। आखिर हम उन्हें विकास ही तो कहते है और गौरव भी करते है।"
"हां, पर यह कैसा विकास हुआ कि हमने नदी, पेड़ जंगल को काटना, उन्हें नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया।"
"यह एक वाजिब सवाल है। पर इसका जुड़ाव हमारी डिस्कसन से कम है।"
"वो कैसे?"
"देखो! सभ्यता का विकास कैसे हुआ तुम बखूबी जानते हो। जंगलों में रहना क्या इतना आसान था? भले ही आज हमें जंगल आकर्षित करता है। और इसकी अलग वजह है। प्रकृति से बनें हम देखो न, आज जल जंगल से कितने दूर हो गए है। कितने कट गए है। हमने कुछ ज्यादा विकास कर लिया। इतना कि प्रकति से पूरी तरह कट गए।"
"पर यही तो मैं भी कह रहा हूँ।"
"हां! पर तुम एक बात और भी कह रहे हो। और वह यह कि तुम भटकते रहना चाहते हो। कहीं ठहरना नहीं चाहते।"
"हां, बिल्कुल!"
"जरा सोचो कि आखिर जंगलों में भटकता मानव ने एकजुट होना क्यों शुरू किया? उन्होंने क्यों बस्ती बसाई? क्यों समाज बनाए? क्यों खेती शुरू की?"
"अपनी सुविधा के लिए।"
"बिल्कुल! अपनी सुविधा के लिए। हमेशा जंगल में भटकना किसी के लिए सहज नहीं था। कोई भी जंगली जानवर किसी भी वक्त आक्रमण कर सकता था। और फिर कितने जमीनी जानवर ऐसे भी तो है जिसे हम जानते भी नहीं और वे खतरनाक भी है। ऐसे में क्या संभव था कि यूँ ही भटकते रहे और कहीं सो जाएं?"
"शायद नहीं!"
"फिर मानव ने जंगल को अपने हिसाब से व्यवस्थित किया। उसे काटा। नदियों पे पुल बनाए। खाने योग्य पत्तियों को पहचाना। और अंततः अपनी एक बस्ती बसाई। एक घर बनाया। जो चारदीवारी के अंदर उसे सुरक्षा देती है।"
"हां, फिर ऐसे में कोई जंगली सांप या जानवर अंदर शायद न आ पाए।"
"संभवतः! पर यही विकास है सभ्यता की। और हमने ये सब अपनी सुविधा के लिए ही तो किया है।"
"मैं इन चीज़ों को समझता हूं। फिर भी मुझे लगता है कि जल जंगल मुझे आकर्षित करते है। अपनी ओर खीचते है। और इसलिए ही मैं भटकते रहना चाहता हूं।"
"मैं तुम्हारे भटकाव को समझती हूं अयान। और इसको लेकर मैं संवेदनशील भी हूँ। पर मैं बस ये कह रही हूं कि खुद के भटकाव का कारण यह कतई ही मत दो कि ये विकास, ये शहर, महानगर से तुम ऊब गए हो।"
"हां, ये सही भी तो है। मुझे यहां सबकुछ एक निश्चित फॉर्म में घटित होता हुआ प्रतीत होता है। लगता है सब मशीन बन गए है।"
"मुझे भी लगता है, अयान। आज भी बहुत से गांव ऐसे है जहाँ लोग बेहद साधारण जिंदगी जीते है। यह अपना अपना चुनाव है। पर जिस नगर और जो व्यवस्था तुम्हें बोर करती है, उसे निश्चित ही तुम्हें छोड़ देना चाहिए। हरेक व्यवस्था एक वक्त के बाद बोरिंग हो जाती है अयान। उसमें तटस्थता आ जाती है। पर यह लोगों ने अपनी सुविधा के लिए बनाया है। स्वीकार किया है।"
"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।"
"मैं भी यही कहूंगी कि समझो ही मत। हर चीज़ को समझने की कोशिश ही विकास का यह भयावह रूप है। हमने जिंदगी में होने से ज्यादा जिंदगी को प्लान्ड किया है।"
"हां, सही।"
"इसलिए भटकते रहो। शायद एक दिन तुम खुद ठहर जाना चाहोगे। बाहर की भटकाव अंदर की खोज है अयान। हमें तब तक भटकना सही लगता है जब तक हम खुद में ही न उतरे हो।"
"सही कह रही हो। तो क्या समुद्र के इस किनारे से हमें आगे साथ में सफर नहीं करनी चाहिए?"
"शायद नहीं, अयान। जीवन को लेकर हमारे अपने-अपने प्रश्न है। और उन्हें हमें खुद ही ढूंढ़ने है। सोचो न मैं निकलती ही नहीं तो तुम जैसे एक यात्री से मिलती ही नहीं।"
"हां, यात्रा का एक यह भी एडवांटेज है।"
"बिल्कुल। इसलिए हमें यात्रा को एक खास रुख बिल्कुल नहीं देना चाहिए। हमारे हिस्से का यही वक्त था अयान। अब शायद हमें अपनी-अपनी राह पे निकल जाना चाहिए।"
"बिल्कुल।"
【द्वारका के तट पे दो यात्रियों की बातचीत】
#ACP
"हां, पर..."
"हां, पर क्या! नेचर का सबसे प्योर फॉर्म हमें आकर्षित तो करता ही है आयन। देखो न वॉटरफॉल को देखकर हम कितने खुश होते है। या घना जंगल मे भटकना हो या नदी किनारे बैठना सबकुछ हमें ऐसा लगता है जैसे यहीं बैठे रह जाएं और देखते रहे।"
"तुम सही कहती हो। पर क्या तुम्हारा ये मतलब है कि हमें एक्सप्लोर नहीं करना चाहिए।"
"मतलब क्या है, ये मैं कैसे कह सकती हूं अयान। ये तो तुम पे है कि तुम क्या समझ रहे हो। तुम्हें घूमना पसन्द है। ऐसे ही निकल जाना और भटकते रहना पसंद है, मैं इसको लेकर जजमेंटल नहीं हूं। हो सकता है तुम कुछ तलाश रहे होंगे और वहीं तलाश तुम्हें भटकाता है। तुम्हें इस शहर से दूर ले जाता है। कई बार हमें यह भी तो नहीं पता होता न कि हम भटक क्यों रहे है? हमारी तलाश आखिर है क्या?"
"फिर भी, मैं भटकते रहना चाहता हूं। बिन वजह भी तो भटकाव हो सकती है।"
"बिल्कुल हो सकती है अयान। पर अपने जिस गौरवपूर्ण इतिहास पे हमें गर्व है, उस काल मे भी तो हम भटक ही रहे थे। हमने सभ्यता की खोज से लेकर आज तक के विकास को इतिहास के पन्नों में महसूस किया है। उन्हें जाना-समझा है। आखिर हम उन्हें विकास ही तो कहते है और गौरव भी करते है।"
"हां, पर यह कैसा विकास हुआ कि हमने नदी, पेड़ जंगल को काटना, उन्हें नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया।"
"यह एक वाजिब सवाल है। पर इसका जुड़ाव हमारी डिस्कसन से कम है।"
"वो कैसे?"
"देखो! सभ्यता का विकास कैसे हुआ तुम बखूबी जानते हो। जंगलों में रहना क्या इतना आसान था? भले ही आज हमें जंगल आकर्षित करता है। और इसकी अलग वजह है। प्रकृति से बनें हम देखो न, आज जल जंगल से कितने दूर हो गए है। कितने कट गए है। हमने कुछ ज्यादा विकास कर लिया। इतना कि प्रकति से पूरी तरह कट गए।"
"पर यही तो मैं भी कह रहा हूँ।"
"हां! पर तुम एक बात और भी कह रहे हो। और वह यह कि तुम भटकते रहना चाहते हो। कहीं ठहरना नहीं चाहते।"
"हां, बिल्कुल!"
"जरा सोचो कि आखिर जंगलों में भटकता मानव ने एकजुट होना क्यों शुरू किया? उन्होंने क्यों बस्ती बसाई? क्यों समाज बनाए? क्यों खेती शुरू की?"
"अपनी सुविधा के लिए।"
"बिल्कुल! अपनी सुविधा के लिए। हमेशा जंगल में भटकना किसी के लिए सहज नहीं था। कोई भी जंगली जानवर किसी भी वक्त आक्रमण कर सकता था। और फिर कितने जमीनी जानवर ऐसे भी तो है जिसे हम जानते भी नहीं और वे खतरनाक भी है। ऐसे में क्या संभव था कि यूँ ही भटकते रहे और कहीं सो जाएं?"
"शायद नहीं!"
"फिर मानव ने जंगल को अपने हिसाब से व्यवस्थित किया। उसे काटा। नदियों पे पुल बनाए। खाने योग्य पत्तियों को पहचाना। और अंततः अपनी एक बस्ती बसाई। एक घर बनाया। जो चारदीवारी के अंदर उसे सुरक्षा देती है।"
"हां, फिर ऐसे में कोई जंगली सांप या जानवर अंदर शायद न आ पाए।"
"संभवतः! पर यही विकास है सभ्यता की। और हमने ये सब अपनी सुविधा के लिए ही तो किया है।"
"मैं इन चीज़ों को समझता हूं। फिर भी मुझे लगता है कि जल जंगल मुझे आकर्षित करते है। अपनी ओर खीचते है। और इसलिए ही मैं भटकते रहना चाहता हूं।"
"मैं तुम्हारे भटकाव को समझती हूं अयान। और इसको लेकर मैं संवेदनशील भी हूँ। पर मैं बस ये कह रही हूं कि खुद के भटकाव का कारण यह कतई ही मत दो कि ये विकास, ये शहर, महानगर से तुम ऊब गए हो।"
"हां, ये सही भी तो है। मुझे यहां सबकुछ एक निश्चित फॉर्म में घटित होता हुआ प्रतीत होता है। लगता है सब मशीन बन गए है।"
"मुझे भी लगता है, अयान। आज भी बहुत से गांव ऐसे है जहाँ लोग बेहद साधारण जिंदगी जीते है। यह अपना अपना चुनाव है। पर जिस नगर और जो व्यवस्था तुम्हें बोर करती है, उसे निश्चित ही तुम्हें छोड़ देना चाहिए। हरेक व्यवस्था एक वक्त के बाद बोरिंग हो जाती है अयान। उसमें तटस्थता आ जाती है। पर यह लोगों ने अपनी सुविधा के लिए बनाया है। स्वीकार किया है।"
"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।"
"मैं भी यही कहूंगी कि समझो ही मत। हर चीज़ को समझने की कोशिश ही विकास का यह भयावह रूप है। हमने जिंदगी में होने से ज्यादा जिंदगी को प्लान्ड किया है।"
"हां, सही।"
"इसलिए भटकते रहो। शायद एक दिन तुम खुद ठहर जाना चाहोगे। बाहर की भटकाव अंदर की खोज है अयान। हमें तब तक भटकना सही लगता है जब तक हम खुद में ही न उतरे हो।"
"सही कह रही हो। तो क्या समुद्र के इस किनारे से हमें आगे साथ में सफर नहीं करनी चाहिए?"
"शायद नहीं, अयान। जीवन को लेकर हमारे अपने-अपने प्रश्न है। और उन्हें हमें खुद ही ढूंढ़ने है। सोचो न मैं निकलती ही नहीं तो तुम जैसे एक यात्री से मिलती ही नहीं।"
"हां, यात्रा का एक यह भी एडवांटेज है।"
"बिल्कुल। इसलिए हमें यात्रा को एक खास रुख बिल्कुल नहीं देना चाहिए। हमारे हिस्से का यही वक्त था अयान। अब शायद हमें अपनी-अपनी राह पे निकल जाना चाहिए।"
"बिल्कुल।"
【द्वारका के तट पे दो यात्रियों की बातचीत】
#ACP
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