जब भी वह यूँ ही बैठी होती, अलग-अलग भाव में खुद का सेल्फ़ी लेती रहना उसका पसन्दीदा काम होता।अपनी फोटो खुद से ही खींचते रहना नायिका को बेहद पसन्द है। कभी-कभार वह अपनी फ़ोटो नायक को व्हाट्सएप कर देती है।और नायक अक्सर ही उसकी फ़ोटो पे कोई छोटी सी कविता दुहरा देता।एक मध्य रात्रि को नायिका ने अपनी तस्वीर नायक को भेजा।दोनों अपनी-अपनी छत पे चाँद को बादलों से आँख मिचौली करते हुए देख रहे थे।पहले तो नायिका इंतजार करती रही कि नायक फिर कोई सुंदर सा पंक्ति सुनायेगा।पर नायक को खामोश देख, उसने पूछ लिया "क्या हुआ?" नायक ने लिखा "तुम्हारी फ़ोटो निहार रहा हूँ"।नायिका का चेहरा खिला।उसने देखा चाँद के आसपास अभी बिल्कुल ही बादलों का ओट नहीं है।वह ऐसे चमक रहा है, जैसे अभी-अभी उसे अपनी चकोर की खबर हुई हो। नायिका ने लिखा "ऐसा भी क्या! रोज तो देखते हो"। उधर नायक ने महसूस किया, चाँद की दूधिया रोशनी में नायिका का दिया हुआ पश्मीना शॉल बेहद ही सुंदर लग रहा है। नायिका की आँखों में उसके सपनों का एक संसार बसता है।जिसे वह अलग-अलग किस्तों में पूरा करती है।उसका बड़ा सपना था कि डल झील ज...
चप्पा-चप्पा...मंजर-मंजर...