कुसुम जी कहती है “हम अपनी परवरिश के दौरान जिन चीज़ों को अपने आसपास घटते देखते है, उसका हमारी चेतना पर गहरा असर होता है। मिथिला पेंटिंग की खूबसूरती भी इसी से बरकरार है। और हम महिलाओं ने इसको और भी खूबसूरती से रचा बसाया है।” दिल्ली हाट के “बिहार मेला” में मेरे लिए मुख्य आकर्षण मिथिला पेंटिग्स रही। आज से पहले तक लगता था कि मिथिला पेंटिंग का मुख्य केंद्र ही रामायण की अलग अलग कहानियाँ है। पर आज इस मेले में भ्रमण के दौरान मिथिलांचल की विभिन्न पेंटिग्स को देख पाया जिनका विषय महज रामायण न होकर मिथिला संस्कृति की अन्य झलकियाँ भी थी। कुसुम जी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता है। और उन्होंने पेंटिंग्स के गुर अपनी सासु माँ से सीखा। वह कहती है कि “अपने परिवार में रहते हुए मैंने पेंटिग नहीं की क्योंकि वहाँ ऐसा माहौल नहीं था। बाद में शादी के बाद मैंने इसे अपनी सासु माँ से सीखा।” और इस तरह मिथिला क्षेत्र से बाहर जानेवाली लड़कियां और शादी के बाद मिथिला क्षेत्र में आने वाली महिला परंपरागत रूप से इस कला को जीवित रखे हुए है। इसी संदर्भ में यह बात बेहद उपयुक्त लगती है कि महिलाएं क...
चप्पा-चप्पा...मंजर-मंजर...